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हनुमान्जीकी उपासना और अचूक सिद्धि

कलियुगमें श्रीहनुमान्जीकी उपासना और भक्ति सभी प्रकारकी इच्छाओंको सहज पूर्ण करनेवाली है। जो व्यक्ति सकाम या निष्कामभावसे श्रीहनुमन्तकी पूजा करता है, उसे सद्यः फल प्राप्त होता है; उसकी सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं और वह सर्वदा प्रसन्नचित्त होकर रहने लगता है। मैं भी हनुमान्जीका एक साधारण साधक हूँ। मेरी तुच्छ श्रद्धा तथा लगनपर श्रीहनुमान्जीने मुझपर बड़ी भारी कृपा की। तत्सन्दर्भकी आप-बीती कथा यहाँ लिख रहा हूँ।

पिछले कई वर्षोंसे मुझे परमहंस परिव्राजकाचार्य दण्डी स्वामी श्रीरामेश्वराश्रमजीसे हनुमान्जीके बारेमें विस्तारसे सुननेको मिला। उस वर्ष स्वामीजी पुनः मेरे यहाँ पधारे, उस समय भी मुझे उनसे बातें करनेका सुअवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने अपने व्याख्यानद्वारा मुझे श्रद्धालु बना • दिया और उसी दिनसे मैंने नियमित पाठ करना प्रारम्भ किया। संस्कृतज्ञ होनेके कारण स्वामीजीने मुझको 'हनुमत्कवच' तथा 'हनुमान चालीसा का पाठ करनेकी आज्ञा प्रदान की। मैंने नियमित पाठ प्रारम्भ कर दिया। पंचमुखी तथा एकमुखी कवचका पाठ करनेके उपरान्त मैंने एकादश बार हनुमानचालीसाका पाठ प्रारम्भ किया तथा मंगलवार और शनिवारको मन्दिरमें जाकर श्रीहनुमान्जीकादर्शन करना प्रारम्भ किया।

एक दिन शामके समय मैं मन्दिरमें गया और हनुमानचालीसाका उच्च स्वरसे पाठात्मक अनुष्ठान करने लगा। लगभग ११ बजेके समय (रात्रिमें) मुझे पहले कुछ प्रकाश दिखायी पड़ा। पुनः हनुमान्जीकी विशाल आकृति दिखायी दी। उस समय मुझे मन्दिरकी प्रस्तर प्रतिमा नहीं नजर आ रही थी। मैंने अपना पाठ जारी रखा और मुझे यह अनुभव हुआ कि 'अब मुझपर हनुमान्जीकी कृपा हो गयी है।' तदनन्तर मूर्ति लुप्त हो गयी और वही प्रतिमा शेष रही। मेरा पाठ पूर्ण हो गया और मैं घर लौटते समयदुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे ते ते ॥ -की पुनरावृत्ति करता रहा और मुझे पूर्ण शान्ति प्राप्त हो गयी। उन्होंकी कृपासे मेरे कई असम्भव कार्य स्वतः सिद्ध हो गये हैं। अतः मेरा यह निवेदन है कि श्रद्धा-विश्वासपूर्वक श्रीहनुमान्जीकी सेवा करके लाभ उठावें; क्योंकि दुनियामें कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जो इनकी कृपासे न सिद्ध हो सके। कृपाके समुद्र हनुमानजी स्वयं अपने भक्तोंकी कामनाओंको पूर्ण कर दिया करते हैं।

[ पं० श्रीसभापतिजी मिश्र 'साहित्यरत्न']



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hanumaanjeekee upaasana aur achook siddhi

kaliyugamen shreehanumaanjeekee upaasana aur bhakti sabhee prakaarakee ichchhaaonko sahaj poorn karanevaalee hai. jo vyakti sakaam ya nishkaamabhaavase shreehanumantakee pooja karata hai, use sadyah phal praapt hota hai; usakee sabhee baadhaaen door ho jaatee hain aur vah sarvada prasannachitt hokar rahane lagata hai. main bhee hanumaanjeeka ek saadhaaran saadhak hoon. meree tuchchh shraddha tatha laganapar shreehanumaanjeene mujhapar bada़ee bhaaree kripa kee. tatsandarbhakee aapa-beetee katha yahaan likh raha hoon.

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ek din shaamake samay main mandiramen gaya aur hanumaanachaaleesaaka uchch svarase paathaatmak anushthaan karane lagaa. lagabhag 11 bajeke samay (raatrimen) mujhe pahale kuchh prakaash dikhaayee pada़aa. punah hanumaanjeekee vishaal aakriti dikhaayee dee. us samay mujhe mandirakee prastar pratima naheen najar a rahee thee. mainne apana paath jaaree rakha aur mujhe yah anubhav hua ki 'ab mujhapar hanumaanjeekee kripa ho gayee hai.' tadanantar moorti lupt ho gayee aur vahee pratima shesh rahee. mera paath poorn ho gaya aur main ghar lautate samayadurgam kaaj jagat ke jete . sugam anugrah tumhare te te .. -kee punaraavritti karata raha aur mujhe poorn shaanti praapt ho gayee. unhonkee kripaase mere kaee asambhav kaary svatah siddh ho gaye hain. atah mera yah nivedan hai ki shraddhaa-vishvaasapoorvak shreehanumaanjeekee seva karake laabh uthaaven; kyonki duniyaamen koee aisee vastu naheen hai, jo inakee kripaase n siddh ho sake. kripaake samudr hanumaanajee svayan apane bhaktonkee kaamanaaonko poorn kar diya karate hain.

[ pan0 shreesabhaapatijee mishr 'saahityaratna']

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