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स्मर्तृगामी भगवान् श्रीकार्तवीर्यकी कृपानुभूति

श्रीदत्तो नारदो व्यासः शुकश्च पवनात्मजः । कार्तवीर्यश्च गोरक्षः सप्तैते स्मर्तृगामिनः ॥

अर्थात् भगवान् दत्तात्रेय, देवर्षि नारद, पुराणाचार्य वेदव्यासजी, महामुनि शुकदेव, श्रीहनुमान्जी, सहस्रबाहु कार्तवीर्यार्जुन और योगिराज गोरखनाथजी ये सातों स्मरण करते ही आ जाते हैं।

भारतीय धर्मग्रन्थोंमें भगवान् श्रीकार्तवीर्यको नष्टवस्तुप्रदाता और त्वरित फलप्रद बताया गया है। यहाँ उन्हींकी कृपासे सम्बन्धित एक घटना प्रस्तुत है |

पच्चीसवर्षीय मेरा मझला पौत्र विश्वपति आध्यात्मिक विचारोंसे ओत-प्रोत रहता है। उसे धार्मिक ग्रन्थोंके अध्ययनमें रुचि है। कभी-कभी वह महात्माओंके सत्संग प्रवचनोंमें भी भाग लेता रहता है। विश्वपति गतवर्ष घरवालों तथा अपने इष्ट मित्रोंको बिना बताये ही कहीं तीर्थाटनके लिये चला गया।

हमने अपनी सभी रिश्तेदारियोंमें ढूँढ़ा एवं आसपास के धार्मिक स्थलोंमें भी, किंतु कहीं कोई सूचना नहीं मिली। महात्माओंके उन आश्रमोंसे भी सम्पर्क किया गया, जहाँ वह पहलेसे आता-जाता रहा है। इस प्रकार डेढ़ महीना यूँ ही व्यतीत हो गया। कोरोना महामारीकी भयानक स्थिति भी हमें डरा रही थी।स्थानीय एवं आसपासके पुलिस स्टेशनोंपर भी गुमशुदीकी रिपोर्ट दर्ज करायी गयी, किंतु कोई जानकारी नहीं मिली। समझमें नहीं आ रहा था कि क्या करें। अन्तमें मैंने एक धर्माचार्यसे सम्पर्क किया और कोई उपाय करनेकी विनती की।

उन्होंने उसके पहननेका कुर्ता, लाल चन्दनका टुकड़ा और अनारकी कलम मँगवायी तथा उसपर लिखा

ॐ ह्रीं कार्तवीर्यार्जुनो नाम राजा बाहुसहस्त्रवान् ।

तस्य स्मरणमात्रेण गतं (हृतं) नष्टं च लभ्यते ॥ उसके पहने हुए कुर्तेपर उक्त मंत्र लिखवाकर हम अपने गाँव आ गये और उनके बतानेके अनुसार हाथ चक्कीके दोनों पाटोंके बीचमें कुर्ता रखकर चक्कीको ऊपरसे दूसरे कपड़ेसे ढक दिया । ३ दिनतक सुबह-शाम उसको अगरबत्तीकी धूप करते रहे। तब कुछ ऐसा चमत्कार हुआ कि वह एक सप्ताह के भीतर ही सकुशल घर आ गया। हमने वह कपड़ा और चक्कीके पाट अलग रख दिये, प्रसन्नतासे मिठाई-प्रसाद बाँटने लगे और सहस्रबाहु अर्जुन तथा उनके गुरु भगवान् दत्तात्रेयजीका जय-जयकार करने लगे।

[ श्रीमती नर्बदादेवीजी मिश्रा ]



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[ shreematee narbadaadeveejee mishra ]

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