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भगवान की कृपया उनका सावभाव है, कोई व्यापार नहीं

आनन्दघन भगवान्की कृपावृष्टिसे ही दृश्यमान जगत् प्रपंचके विविध स्तम्भ मानक चन्द्रादित्य-धरणी-गगन जलवायु तथा सृष्टि-संचार और उद्गम- पालन- प्रलयादिके घटनाक्रम घटित होते हैं, उनके संकल्पसे 'थिति लय पालन प्रलय कहानी' घटित होती है-यथा- 'अम्बोधिः स्थलतां स्थलं जलधितां०' तदवत् जगत्के अनेकविध विश्ववैचित्र्यमें परमाद्भुत शौर्य, क्रौर्य, कारुण्य, कैशोर्य, कौमार्य, लावण्यकृपासिन्धु दयासिन्धु सौन्दर्यसारसर्वस्व माधुर्यसारसर्वस्वादि सकलमंगलगुणगणाधिष्ठातृ श्रीसर्वेश्वर प्रभुका ही कृपा प्रसाद आब्रह्म कीट- पर्यन्त प्राण एवं चैतन्यतादि गुणोंके रूपमें व्याप्त है, सर्वत्र समभावसे स्तुत्य 'समदरसी है नाम तुम्हारो चाहो तो पार करो 'इत्यादिसे समलंकृत सर्वाधिष्ठान समदृक् सार्वभौम सर्वसुहृद् श्रीहरि अर्हेतुककृपासिन्धु हैं । ईश्वरीय कृपाका प्रभाव जीवका पुरुषार्थ या पराक्रम नहीं अपितु अकारणकरुण, करुणावरुणालयरूप ईश्वरका स्वभाव ही है। जो स्वाभाविक स्वरूपसे 'बिनु हेतु सनेही' हेतुरहित अकारण करुणा करते हैं- जबकि जगत्-प्रपंचमें कार्यके पीछे कारण रहता ही है। यथा—'स्वार्थमूलाः सर्वाः क्रियाः' आदिद्वारा कृताकृतमें स्वार्थ तथा कारण विद्यमान रहता है।

भगवद्कृपाका कोई हेतु नहीं है, भगवान्‌का यह व्यापार न होकर स्वभाव है। इस स्वभावसे ही वह परमसत्ता मातृरूपेण, बुद्धिरूपेण या प्रत्यगभिन्न चैतन्यादि चिन्मयतारूपमें आब्रह्म पिपीलिकान्त तनुसमूहमें प्राणशक्तिरूपमें विराजमान रहती है, ईश्वरीय कृपानुभूतिका प्रत्यक्ष प्रमाण भी सन्त-महापुरुष- आचार्य एवं अकिंचनजन भगवद्भक्तोंको होता तो है, लेकिन वे स्वात्माभिरमणयुक्तहरिभक्तिरसमें तल्लीन साधक उसका प्रचार-प्रसार सप्रयत्न

नहीं करते और तो भी ऐसा स्वतः हो जाता है। भक्तिसूत्र 'अनिर्वचनीयं प्रेमस्वरूपम्' वाण्यातीत विषय 'मुकास्वादनवत्' हो जाता है। आधुनिक यन्त्र मशीन कल एवं विविध वैज्ञानिक परिवेशमें रचे-बसे लोगोंको ईश्वरीय चमत्कार अर्थात् 'कृपानुभूति' भले ही कुछ शब्दों में या वैचारिक भेदसे अप्रामाणिक लग सकती है 'बुद्धिभ्रमत्वात्', लेकिन वास्तविक धरातलपर ऋतम्भरा प्रज्ञासे पवित्र मन, बुद्धि, प्राणके संयोगसे विचार करनेपर पदे पदे या कि श्वास श्वासमें भगवत्कृपा लक्षित होती है- आधुनिकजन धर्मको 'स्वीट् पाइजन' कहनेवाले नास्तिक एवं अर्धनास्तिकजन भी अन्ततः ईश्वरकृपा कटाक्षपातके लिये लालायित हो ही जाते हैं-जहाँ आधुनिक विज्ञान टेक्नोलॉजीकी सर्वोत्तम, सर्वोत्कृष्ट या महंगी से महँगी चिकित्सा विधि प्रयासयुक्त होकर भी असक्रिय किंवा फेल हो जाती है, वहीं कृपाकी किरण, कृपानुभूतिका लेशमात्र समस्त आपदाशमन, शत्रुदमन कर देता है, और रोगोन्मूलक असाध्यताको सहज, सरल, साध्य, सुबोध एवं सफलीभूत कर देता है। अपने स्वयंके जीवनके साठ वर्षोंमें कई बार मैंने अपनेको निःसहाय और जीवनाशशेष पलोंमें, संकटापन्न क्षणों में ईश्वरकृपाका प्रसाद अनुभव किया है। आज इस भगवत्कृपाभिलाषी कृपाकिंकरका जो भी कुछ स्वत्व या अस्तित्व दिखायी दे रहा है, यह कृपानुभूतिका ही प्रत्यक्ष प्रभाव है।

यस्य कृपालेशमात्रेण जडो भवति पंडितः
अथवा 'मूकं करोति वाचालं' या कि
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे *****इति शम्



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bhagavaan kee kripaya unaka saavabhaav hai, koee vyaapaar naheen

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athava 'mookan karoti vaachaalan' ya ki
jaakee kripa pangu giri langhe *****iti sham

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