⮪ All भगवान की कृपा Experiences

भगवत्कृपासे रोगनिवृत्ति

मैं सन् २००० ई० के नवम्बर माहमें एक शादी में कानपुर गया था। मेरे साथ मेरे बड़े भाई भी थे और एक सेवक भी था। हम लोगोंको एक ऐसे मकानमें ठहराया गया, जो बहुत दिनोंसे बन्द था, मगर उसे उन्होंने पुताई आदि कराकर साफ-सुथरा कर दिया था। बिछावनके अच्छे बिस्तर जमीनमें थे, साफ-सुथरे थे, परंतु उस घरकी खिड़कियोंमें लगी जाली जगह-जगह टूट गयी थी, इसलिये मच्छर बहुत आ रहे थे, इससे हम लोगोंको नींद नहीं आ रही थी। रात लगभग जागते हुए ही व्यतीत हुई और इसके कारण बार-बार पानी भी पीना पड़ा। टंकीमें पुराना पानी था, जो कि दूषित हो गया था।

जब कानपुरसे लौटकर इटावा अपने घर आया और एक सप्ताह भी नहीं निकला कि तेज बुखार और पेटमें भयंकर दर्द प्रारम्भ हो गया। डॉक्टरकी दवा प्रारम्भ हुई और सुबह-शाम इन्जेक्शन लग रहे थे, परंतु कोई लाभ नहीं हो रहा था। इस तरह मुझे पीड़ा सहते ६ दिसम्बर से १७ दिसम्बर हो गया। १७ दिसम्बरकी रातमें मुझे सपना हुआ कि भगवान् कह रहे हैं कि तुम्हारे पेटमें दूषित पानी पीने से फोड़ा हो गया है, ग्वालियर जाओ और इलाज कराओ।

१८ दिसम्बरकी सुबह जैसे ही घरके सभी लोग जगे तो मैंने सपनेकी बात कहते हुए ग्वालियर जानेकी बात कही और वहाँ मेरे साथ मेरी पत्नी भी गयी। ग्वालियर में एक डॉक्टरको दिखाया। उन्होंने अल्ट्रासाउण्ड कराया तो पता लगा कि लिवरमें एक बहुत बड़ा एवसिसफोड़ा हो गया है, उससे लगभग आधेसे अधिक लिवर खराब हो गया है। उसकी दवा प्रारम्भ हुई। एक बहुत पावरफुल एन्टीबॉयोटिक इन्जेक्शन सुबह एवं शाम दोनों समय ग्लूकोजमें मिलाकर लगाया जाता था। लगभग दो या ढाई घण्टा सुबह-शाम लगता था, यह दवा लगभग एक सप्ताह चली। उन दिनों मेरी यह हालत हो गयी थी कि दिनभरमें केवल एक प्याला दूध ले पाता था। चायकी खुशबू एवं रोटीकी गन्धसे मन दूर भागता था।

एक सप्ताहके बाद मेरा ऑपरेशन एक चिकित्सालयमें हुआ, दो सर्जन थे। उस दिन मैंने अपने बड़े बेटेको ग्वालियर बुला लिया था। दोनों सर्जनने सीरिंजद्वारा लीवरसे पस निकाला, जो लगभग ३५० एम० एल० के लगभग था और उसको मेलागामन टेस्टके लिये तुरंत भेजा गया। डॉक्टरोंने कहा कि लगभग दस प्रतिशत पस अभी रह गया है, जो दवासे नष्ट हो जायगा।

मैं बारह दिन बाद एक जनवरीको इटावा आ गया परंतु डॉक्टरने दस दिन बाद फिर बुलाया था और यह क्रम लगभग दो माह चला। बराबर अल्ट्रासाउण्ड कराया जाता था और मैं ठीक होता गया तथा फिरसे पूरा लिवर लगभग तीन माहमें बन गया, यद्यपि दवा बराबर छः माह चली।

इस तरह भगवान्‌की आज्ञामयी कृपासे ही इलाज लिये ग्वालियर गया और ठीक होकर आ गया।

[ श्रीगिरिराज नारायणजी ]



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bhagavatkripaase roganivritti

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[ shreegiriraaj naaraayanajee ]

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