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पितर आते हैं हमारे घर पितृपक्षके अवसरपर

हमारे देशमें पितृपक्षका विशेष महत्त्व है, इस अवसरपर हिन्दू-समाज अपने पितरोंको यादकर श्रद्धासहित उनकी तिथिपर तर्पण तथा पिण्डदान करता है। यह परम्परा आदिकालसे चली आ रही है। कई लोग तो इस परम्पराकी आलोचना करते हैं तथा तर्क देकर कहते हैं कि जो इस धरतीसे चला गया, वह क्या पिण्ड तथा तर्पणको प्राप्त करने वापस आयेगा ? लेकिन यह श्राद्ध और तर्पणकी परम्परा शास्त्रसम्मत है तथा इसका एक विशेष महत्त्व है। इस बारेमें मैं एक आपबीती सच्ची घटना बताता हूँ, जो इस प्रकार है

मेरे भाईकी मृत्यु सन् १९७९ ई० में हुई। इसके तीन साल बाद मेरी भाभीकी भी अचानक मई, सन् १९८२ ई०में मृत्यु हो गयी। हम हर साल पितृपक्षमें अपने घरपर अपने पितरोंका श्रद्धापूर्वक पिण्डदान तथा तर्पण करते हैं। भाभीकी मृत्युके एक वर्ष बादसन् १९८३ ई०के पितृपक्षमें हमने अपने सभी पितरोंकी पुण्यतिथियोंके अनुसार उनका श्राद्ध किया, पर हम अपनी भाभीका श्राद्ध करना भूल गये। न उनका पिण्डदान कर सके, न ही तर्पण। हम उनकी पुण्यतिथि ही भूल गये थे। ठीक पितृपक्षके समाप्त होनेसे दो दिन पहले मेरी नाबालिग भतीजी (जो मेरी भाभीकी छोटी लड़की थी) की तबीयत खराब हो गयी। उसे कोई बीमारी नहीं थी, अचानक एक दिन वह असामान्य होकर कुछ बोलने लगी तथा रोने लगी और रो रोकर कहने लगी कि 'मैं तुम्हारी भाभी हूँ। हाय ! मैं पितृपक्षमें भी भूखी-प्यासी हूँ, तुमलोगोंने न तो मेरे लिये पिण्डदान किया, न ही तर्पण। मैं श्राद्धके अवसरपर हर द्वारपर गयी, पर किसीने न मुझे पूछा; न मुझे तर्पण देकर तृप्त किया और न पिण्डदानसे मेरी भूख ही मिटायी । घरपर सभी पितरोंको यादकिया गया, उनके लिये तर्पण तथा पिण्डदान हुआ; पर मेरा किसीने न नाम लिया न मुझे आमन्त्रित किया। मैं भूखी एवं प्यासी हूँ।'

वास्तवमें बात सही थी। हम भाभीकी पुण्यतिथि ही

भूल गये थे। इस कारण उनका श्राद्ध करना भूल गये।

इस घटनासे हम दंग रह गये, तब अमावस्याके दिन (पितृपक्षकी अन्तिम तिथिको) उनका विधि विधानसे श्राद्ध एवं तर्पण किया गया। उस दिन वे पुनः प्रकट हुईं तथा भतीजीके माध्यमसे कहने लगीं- मैं अब तृप्त होकर जा रही हूँ ।

इसके बाद मेरी नाबालिग भतीजी सामान्य हो गयी, आज वह मेरी भतीजी अपने बच्चोंके साथ आनन्दपूर्वक जीवन बिता रही है।

इस प्रकारकी घटनाएँ प्रायः होती रहती हैं,जिनसे श्राद्धकी प्रामाणिकता सिद्ध होती है। श्राद्धमेंदिया गया पिण्ड नाम, गोत्र, हृदयकी श्रद्धा, उचित संकल्प एवं मन्त्रद्वारा पितरोंतक पहुँच जाता है। जैसे सृष्टिके अन्य कार्य ईश्वरीय व्यवस्थाके अनुसार होते हैं, वैसे ही इस कार्यके लिये भी विश्वेदेव एवं अग्निष्वात्त देवता होते हैं। श्राद्धकर्ममें दिया गया पिण्ड पितरोंको उनकी वर्तमान योनिके अनुरूप भोज्यपदार्थमें परिवर्तित होकर मिलता है।

भूखे-प्यासे पितर अपनी सन्ततिसे श्रद्धापूर्वक पिण्डदानकी अपेक्षा करते हैं, जिससे उनकी -प्यास भूख-प‍ मिटती है और श्राद्ध करनेवालेको सन्तान, आयु, आरोग्य और ऐश्वर्यकी प्राप्ति होती है। श्राद्ध श्रद्धाका विषय है, वह धनाभावमें भी किया जा सकता है। शास्त्र तो यहाँतक कहते हैं कि पितरोंके नामपर घास काटकर गायको खिला देनेसे भी श्राद्ध पूर्ण हो जाता है, अतः श्राद्ध अवश्यकरणीय है।

[ श्रीजगदीशप्रसादजी ]



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pitar aate hain hamaare ghar pitripakshake avasarapara

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mere bhaaeekee mrityu san 1979 ee0 men huee. isake teen saal baad meree bhaabheekee bhee achaanak maee, san 1982 ee0men mrityu ho gayee. ham har saal pitripakshamen apane gharapar apane pitaronka shraddhaapoorvak pindadaan tatha tarpan karate hain. bhaabheekee mrityuke ek varsh baadasan 1983 ee0ke pitripakshamen hamane apane sabhee pitaronkee punyatithiyonke anusaar unaka shraaddh kiya, par ham apanee bhaabheeka shraaddh karana bhool gaye. n unaka pindadaan kar sake, n hee tarpana. ham unakee punyatithi hee bhool gaye the. theek pitripakshake samaapt honese do din pahale meree naabaalig bhateejee (jo meree bhaabheekee chhotee lada़kee thee) kee tabeeyat kharaab ho gayee. use koee beemaaree naheen thee, achaanak ek din vah asaamaany hokar kuchh bolane lagee tatha rone lagee aur ro rokar kahane lagee ki 'main tumhaaree bhaabhee hoon. haay ! main pitripakshamen bhee bhookhee-pyaasee hoon, tumalogonne n to mere liye pindadaan kiya, n hee tarpana. main shraaddhake avasarapar har dvaarapar gayee, par kiseene n mujhe poochhaa; n mujhe tarpan dekar tript kiya aur n pindadaanase meree bhookh hee mitaayee . gharapar sabhee pitaronko yaadakiya gaya, unake liye tarpan tatha pindadaan huaa; par mera kiseene n naam liya n mujhe aamantrit kiyaa. main bhookhee evan pyaasee hoon.'

vaastavamen baat sahee thee. ham bhaabheekee punyatithi hee

bhool gaye the. is kaaran unaka shraaddh karana bhool gaye.

is ghatanaase ham dang rah gaye, tab amaavasyaake din (pitripakshakee antim tithiko) unaka vidhi vidhaanase shraaddh evan tarpan kiya gayaa. us din ve punah prakat hueen tatha bhateejeeke maadhyamase kahane lageen- main ab tript hokar ja rahee hoon .

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[ shreejagadeeshaprasaadajee ]

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