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कुलपरम्परा छोड़नेसे हानि

आजके तथाकथित वैज्ञानिक युगमें लोग देवी देवताओंको कपोल-कल्पना मानने लगे हैं और उनके पूजन-अनुष्ठान-सम्बन्धी परम्पराओंको दकियानूसी अन्धविश्वास कहते हैं; परंतु जब हम किसी रोग आदिसे ग्रस्त होकर वैज्ञानिक चिकित्सासे थक जाते हैं, तब अपनी भूलका अहसास करते हैं और तभी परमपिताकी उपस्थितिकी अनुभूति हमको होती है।

ऐसी ही एक घटना मेरे भी जीवनमें घटी। यूँ तो घटनाको ४९ साल हो गये, किन्तु आज भी उसकी स्मृति मेरे मनको रोमांचित कर देती है। मेरी शादी राजस्थानके दौसा जिलेके अन्तर्गत लालसोट नामक एक कस्बेमें हुई थी। ये मेरे पिताश्री की जन्मभूमि है, जो छोटी ब्रह्मकाशीके नामसे विख्यात है। किसी समय यहाँ दस हजार ब्राह्मणोंकी आबादी थी, साथ ही यह सन्तोंकी तपोभूमि भी रही है। यहाँ सन्त गुजरानन्दजी, आत्मानन्दजी एवं अन्य रामायण एवं भागवतके विद्वानोंका वास रहा है। मेरी शादी १ दिसम्बर १९६१ ई० को सम्पन्न हुई थी। शादीके चार-पाँच दिन बाद पिताश्रीने अपने व्यवसाय-नगर गोंदिया, जो कि महाराष्ट्रकी पूर्वी सीमापर स्थित है, जानेकी मानसिकता बनायी और इसके लिये सामानोंको बाँधनेका काम भी शुरू हो गया। लेकिन रातमें ही मुझे खूनके दस्त शुरू हो गये। थोड़ी देरमें ही शौचकी हाजत होती और केवल खूनके सिवाय कुछ नहीं होता था, ऐसेमें सबका घबरा जाना स्वाभाविक हीथा। कस्बेमें एक बंगाली डॉक्टर था, जो सरकारी अस्पतालमें प्रधान था, वहाँ मुझे इलाजके लिये ले जाया गया। सब तरहके इलाजके बाद भी कुछ असर नहीं हुआ। दो दिनोंके बाद पिताजीको स्वप्न हुआ, उसमें हमारी कुलदेवीने शादी होनेके बाद भी बिना सिर झुकाये लौट जानेकी योजना बनानेपर उन्हें प्रताड़ित किया, तब हमारे पिताजीको भी अपनी गलतीका अहसास हुआ। उन्होंने तत्काल रातको ही मेरे ऊपरसे एक सिक्का उतारकर रखा और माताजीसे प्रार्थना की कि हे माँ! मुझसे भूल हो गयी, मैं बेटा-बहू दोनोंको तेरे दरबारमें सिर झुकाने लाऊँगा, मुझे क्षमा करो। जैसे ही पिताजीने मेरे सिरपर हाथ रखकर उपर्युक्त वचन कहे कि तत्काल ही चमत्कार हुआ, मुझे दस्तमें जहाँ खून निकलता था, वह ऐसे बन्द हो गया, जैसे कुछ था ही नहीं।

प्रातः काल ही पिताजीने हम दोनोंको हमारी कुलदेवी खुर्रामाता एवं ब्याईमाताके स्थानपर भेजनेकी व्यवस्था की। ब्याईमाताका स्थान तो पहाड़ोंमें है, जहाँ पहुँचनेके लिये मुख्य सड़कसे करीब डेढ़-दो मील पैदल चलना पड़ता है, किंतु हमने बिना किसी तकलीफके दोनों माताओंके दर्शन किये तथा प्रसाद लिया। इस घटनाको लगभग ४९ वर्ष हो गये, किंतु आजतक फिर कभी भी मुझे इस तरहकी तकलीफ नहीं हुई और माताजीका अनुग्रह हमपर हमेशा बना रहा।
[ श्रीप्रकाशजी पुरोहित ]



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kulaparampara chhoda़nese haani

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praatah kaal hee pitaajeene ham dononko hamaaree kuladevee khurraamaata evan byaaeemaataake sthaanapar bhejanekee vyavastha kee. byaaeemaataaka sthaan to pahaada़onmen hai, jahaan pahunchaneke liye mukhy sada़kase kareeb dedha़-do meel paidal chalana pada़ta hai, kintu hamane bina kisee takaleephake donon maataaonke darshan kiye tatha prasaad liyaa. is ghatanaako lagabhag 49 varsh ho gaye, kintu aajatak phir kabhee bhee mujhe is tarahakee takaleeph naheen huee aur maataajeeka anugrah hamapar hamesha bana rahaa.
[ shreeprakaashajee purohit ]

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