⮪ All भगवान की कृपा Experiences

कुछ भी हो सकता था

मैं इस तथ्यमें दृढ़ विश्वास करता हूँ कि नैष्ठिक भक्तोंके जीवनमें आराध्यकी कृपाकी घटनाएँ अवश्य घटती हैं। परंतु सर्वदा इस रूपमें नहीं घटतीं कि उनका प्रत्यक्ष प्रमाण मिल जाय। हाँ, गहराईसे सोचनेपर अवश्य यह अनुभव होता है कि आराध्यकी कृपासे ही ऐसा हुआ। सन् २०२० ई० की घटना है। मैं पत्नी तथा बेटेकेसाथ एक पौत्रीके अन्नप्राशन- समारोहमें अपने गृहनगर इलाहाबाद गया था। समारोह निर्विघ्न सम्पन्न हुआ। हम लोग पूर्वनिश्चित कार्यक्रमके अनुसार ही इलाहाबादसे शिमला लौटे। तय था कि दिल्लीसे श्रीमतीजी बेटे क्षेमेन्द्र के साथ शिमला चली जायँगी और मैं वहींसे जयपुर जाऊँगा परमप्रिय मित्र डॉ० रमाकान्त पाण्डेय के पुत्रके विवाहोत्सवमें। मैं एक-दो दिन बाद सुविधासे शिमला लौटूंगा। हुआ भी ऐसा ही,

परंतु मेरी अनुपस्थितिमें जो भयावह, लोमहर्षक घटना घट गयी, उसने मुझे आमूल कँपा दिया। बस सोनीपत पहुँची ही थी कि एक वेगगामी बस पीछेसे आयी। वह सरकारी बसको गलत ढंगसे बाई पास करती आगे निकली और सामने चौराहेपर ही दायें मुड़ गयी। सम्भवतः उसे पुनः दिल्लीकी ही ओर पीछे आना था। उस उच्छृंखल चालकका आगे निकल जाना तो क्षम्य था, परंतु ठीक सामने ही चौराहेपर उस बसका दायीं ओर मुड़ जाना सर्वथा अक्षम्य ही था। सरकारी बस भी वेगमें थी। उसे सड़कपर आगे बढ़नेकी जगह ही नहीं बची। मुड़नेकी पूरी प्रक्रियामें अनियन्त्रित बस सरकारी बसके सामने हो गयी। फलतः सँभालते-सँभालते भी सरकारी बसको जोरदार टक्कर लगी। बसका अगला हिस्सा एकदम क्षतिग्रस्त हो उठा। अनियन्त्रित बस तो निकल भागी, परंतु सरकारी बसके यात्रियोंको भारी चोट आयी।

मेरी पत्नी दो और यात्रियोंके साथ एक सीटपर थीं। बेटा समानान्तरमें दूसरी सीटपर था। श्रीमतीजी यद्यपि जग रही थीं, फिर भी बहुत सावधान नहीं थीं। टक्कर इतनी जोरदार थी कि सारे यात्री घायल हो गये। किसीका सिर फूटा, किसीकी आँखमें चोट आयी। कोईसीटसे नीचे गिरा। ड्राइवर सम्भवतः बेहोश हो गया। श्रीमतीजीकी नाककी ऊपरी हड्डीपर चोट लगी। रक्त बहने लगा। मेरा बेटा चीख उठा। बस एकदम उस्सखड़ी हो गयी। आगे जाने की स्थितिमें थी ही नहीं।

श्रीमतीजीकी बगलमें बैठे दोनों यात्री भी शिमला ही जा रहे थे। दोनों विद्यार्थी थे दोनोंने अद्भुत धैर्य एवं संयमके साथ सँभाला। सारा सामान उतारा। श्रीमतीजीको लेकर सोनीपत बाजारके एक क्लीनिकमें गये। वहाँ घावकी मरहम पट्टी करवायी सौभाग्यसे चोटके बावजूद भी श्रीमतीजी चेतनामें थीं।

दोनों युवकोंने दूसरी बससे यात्राका प्रबन्ध किया। वे शिमलातक साथ रहे और परिवारको घर छोड़कर ही गये।

उस भयावह दुर्घटनामें कुछ भी हो सकता था; परंतु माँ भगवतीकी असीम कृपा ही थी कि घटना बतानेलायक रही। बेटेका फोन आया तो मेरा जयपुर ठहरना ही नीरस हो उठा। जैसे-तैसे रात बीती और सबेरा होते ही मैं शिमला भागा।

श्रीमतीजीकी नाकपर अभी भी हलका सा चिह्न है। उसे देखता हूँ तो भगवती महामायाकी कृपाका सुखद बोध होता है।

[प्रो० श्रीअभिराज राजेन्द्रजी मिश्र ]



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kuchh bhee ho sakata thaa

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[pro0 shreeabhiraaj raajendrajee mishr ]

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