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'ना जाने किस वेष में नारायण मिल जायँ'

'ना जाने किस वेष में नारायण मिल जायें' कविकी यह पंक्ति निश्चय ही अनुभव एवं व्यवहारपर घटित हुई होगी। जनसामान्यके साथ भी ऐसी घटना होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि नारायण तो सर्वव्यापी हैं। मेरे एक मित्र जो दिल्लीकी एक प्रतिष्ठित कम्पनीमें कार्यरत हैं, अप्रैल २०१५ के प्रथम सप्ताहमें एक ऐसी ही घटना उनके साथ घटी, जो उन्होंके शब्दोंमें इस प्रकार है कम्पनीमें तीन दिनोंकी छुट्टी थी, परंतु मुझे कम्पनी के कार्यसे पानीपत जाना था। भाग्यवश वहाँका कार्यक्रम स्थगित हो गया। मैंने सोचा कि मेरी धर्मपत्नी नालन्दा (बिहार) में रहती हैं, वे आजकल यहाँ आयी हुई हैं, तो क्यों न उन्हें मथुरा-वृन्दावनकी यात्रा करा दूँ उनको तीर्थस्थलोंमें दर्शनको बड़ी इच्छा भी रहती है। मैंने जब अपने मनको बात उन्हें बतायी तो वे भी सहर्ष तैयार हो गयीं।

सबसे पहले हमने गोवर्धनकी यात्रा की। हम पहली बार मथुरा-वृन्दावन गये थे, सो वहाँके नियमोपनियमसे अनभिज्ञ थे अतः भगवान् श्रीकृष्णको स्मरणकर हमने यात्रा प्रारम्भ कर दी। मेरी पत्नीने कहा कि गर्मी भी शुरू हो गयी है, कहीं ऐसा न हो कि हमलोग गोवर्धनमहाराजकी पैदल परिक्रमा न पूरी कर सकें, अतः हमने एक ऑटो कर लिया। ऑटो चालक गोवर्धन परिक्रमाकी विशेषताएँ बताता रहा। कुछ दूर चलकर हम एक सुन्दर से स्थानपर आ गये। वहाँ हमारी इच्छा हुई कि क्यों न थोड़ी दूर पैदल चल लिया जाय। हमने चालकसे कहा कि 'भइया, तुम थोड़ी देर यहीं आराम कर लो, हम तबतक कुछ टहल लेते हैं।' वह मान गया और हम दोनों आगे बढ़ चले। वहाँ पर्वतका कुछ ऊँचा भाग था। हम उसपर चढ़ने लगे। तभी मेरी पत्नीको दो छोटे-छोटे सुन्दर से पत्थर -से दिखायी दिये। वास्तवमें वे पत्थर बहुत आकर्षक लग रहे थे। हमने सोचा कि क्यों न हम इन्हें अपने घर ले चलें और वहाँ अपने पूजाघरमें स्थापित कर देंगे। बड़े आदर के साथ उन्हें हम संभालकर अपने पर्स रखनेकाप्रयास करने लगे। वहाँ आस-पास कोई नहीं था। हमारा ऑटो चालक भी काफी दूरीपर था, हम दोनों बहुत प्रसन्न थे कि हम कोई अनमोल वस्तु लेकर जा रहे हैं। तभी लगभग ७-८ वर्षका एक बालक हमारे सामने अनायास ही आ खड़ा हुआ। उसका रंग साँवला था और उसके कन्धोंपर गमछा जैसा एक पीला वस्त्र पड़ा था। उसने हमें सम्बोधित करते हुए बड़ी मीठी वाणीमें कहा- 'भइया, यहाँ ते ये मति लै जइयो।'

मैंने कुछ दृढ़ता से कहा- 'क्या ले जा रहे हैं?' बालकने हमारे पर्सकी ओर संकेत किया और बोला- 'ये तौ गिरिराजजी हतँ, इनकूँ वहीं रख दैइयो, जहाँ ते उठाये हाँ।' उस बालककी मधुर भाषासे मैं हैरान था, मेरी पत्नीने कहा-'हम तो इन्हें ठाकुरजीके रूपमें अपने पूजाघर में स्थापित करेंगे।'

बालक बोला-'नाय नाय लै गये तौ मुसीबत में फँसि जाओगे" और लौटिके फिर जहीं आनी पड़ेगी।' मुझे लगा कि हमारी चोरी पकड़ी गयी। अतः मैंने किसी अनिष्टकी आशंकासे वे दोनों मोहक पत्थर पर्ससे निकालकर जहाँसे उठाये थे, वहीं सम्मानपूर्वक रख दिये और मन ही मन बालकका धन्यवाद किया। बालक हमारे सामने था। मैंने जेबसे कुछ पैसे बालकको दिये और फिर जैसे ही पलटकर देखा तो दूरतक उस बालकका कोई पता नहीं था। हम भौंचक्के से जल्दी जल्दी अपने ऑटोके पास आये। चालकसे उस बालकके बारेमें पूछा तो उसने अनभिज्ञता प्रकट कर दी। मैंने पुनः उससे पूछा कि यहाँसे पत्थर आदि ले जाना उचित है ? उसने भी बताया कि यहाँसे पत्थर आदि कोई चीज नहीं ले जाते हैं। मैंने फिर एक बार उस बालकका धन्यवाद किया, जिसके परामर्शपर हम अनिष्टसे बच सके।

मेरे मित्र और उनकी पत्नीके साथ घटी इस सुघटनाको मैं साक्षात् भगवद्दर्शन ही मानता है; क्योंकि ब्रजभूमिमें तो श्रीजी एवं भगवान् श्रीकृष्णका सदा वास रहता ही है।
[ श्रीनरेन्द्रकुमारजी शर्मा]



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'na jaane kis vesh men naaraayan mil jaayan'

'na jaane kis vesh men naaraayan mil jaayen' kavikee yah pankti nishchay hee anubhav evan vyavahaarapar ghatit huee hogee. janasaamaanyake saath bhee aisee ghatana hona koee aashchary kee baat naheen hai kyonki naaraayan to sarvavyaapee hain. mere ek mitr jo dilleekee ek pratishthit kampaneemen kaaryarat hain, aprail 2015 ke pratham saptaahamen ek aisee hee ghatana unake saath ghatee, jo unhonke shabdonmen is prakaar hai kampaneemen teen dinonkee chhuttee thee, parantu mujhe kampanee ke kaaryase paaneepat jaana thaa. bhaagyavash vahaanka kaaryakram sthagit ho gayaa. mainne socha ki meree dharmapatnee naalanda (bihaara) men rahatee hain, ve aajakal yahaan aayee huee hain, to kyon n unhen mathuraa-vrindaavanakee yaatra kara doon unako teerthasthalonmen darshanako baड़ee ichchha bhee rahatee hai. mainne jab apane manako baat unhen bataayee to ve bhee saharsh taiyaar ho gayeen.

sabase pahale hamane govardhanakee yaatra kee. ham pahalee baar mathuraa-vrindaavan gaye the, so vahaanke niyamopaniyamase anabhijn the atah bhagavaan shreekrishnako smaranakar hamane yaatra praarambh kar dee. meree patneene kaha ki garmee bhee shuroo ho gayee hai, kaheen aisa n ho ki hamalog govardhanamahaaraajakee paidal parikrama n pooree kar saken, atah hamane ek ऑto kar liyaa. ऑto chaalak govardhan parikramaakee visheshataaen bataata rahaa. kuchh door chalakar ham ek sundar se sthaanapar a gaye. vahaan hamaaree ichchha huee ki kyon n thoda़ee door paidal chal liya jaaya. hamane chaalakase kaha ki 'bhaiya, tum thoda़ee der yaheen aaraam kar lo, ham tabatak kuchh tahal lete hain.' vah maan gaya aur ham donon aage badha़ chale. vahaan parvataka kuchh ooncha bhaag thaa. ham usapar chadha़ne lage. tabhee meree patneeko do chhote-chhote sundar se patthar -se dikhaayee diye. vaastavamen ve patthar bahut aakarshak lag rahe the. hamane socha ki kyon n ham inhen apane ghar le chalen aur vahaan apane poojaagharamen sthaapit kar denge. bada़e aadar ke saath unhen ham sanbhaalakar apane pars rakhanekaaprayaas karane lage. vahaan aasa-paas koee naheen thaa. hamaara ऑto chaalak bhee kaaphee dooreepar tha, ham donon bahut prasann the ki ham koee anamol vastu lekar ja rahe hain. tabhee lagabhag 7-8 varshaka ek baalak hamaare saamane anaayaas hee a khada़a huaa. usaka rang saanvala tha aur usake kandhonpar gamachha jaisa ek peela vastr pada़a thaa. usane hamen sambodhit karate hue bada़ee meethee vaaneemen kahaa- 'bhaiya, yahaan te ye mati lai jaiyo.'

mainne kuchh dridha़ta se kahaa- 'kya le ja rahe hain?' baalakane hamaare parsakee or sanket kiya aur bolaa- 'ye tau giriraajajee hatan, inakoon vaheen rakh daiiyo, jahaan te uthaaye haan.' us baalakakee madhur bhaashaase main hairaan tha, meree patneene kahaa-'ham to inhen thaakurajeeke roopamen apane poojaaghar men sthaapit karenge.'

baalak bolaa-'naay naay lai gaye tau museebat men phansi jaaoge" aur lautike phir jaheen aanee pada़egee.' mujhe laga ki hamaaree choree pakada़ee gayee. atah mainne kisee anishtakee aashankaase ve donon mohak patthar parsase nikaalakar jahaanse uthaaye the, vaheen sammaanapoorvak rakh diye aur man hee man baalakaka dhanyavaad kiyaa. baalak hamaare saamane thaa. mainne jebase kuchh paise baalakako diye aur phir jaise hee palatakar dekha to dooratak us baalakaka koee pata naheen thaa. ham bhaunchakke se jaldee jaldee apane ऑtoke paas aaye. chaalakase us baalakake baaremen poochha to usane anabhijnata prakat kar dee. mainne punah usase poochha ki yahaanse patthar aadi le jaana uchit hai ? usane bhee bataaya ki yahaanse patthar aadi koee cheej naheen le jaate hain. mainne phir ek baar us baalakaka dhanyavaad kiya, jisake paraamarshapar ham anishtase bach sake.

mere mitr aur unakee patneeke saath ghatee is sughatanaako main saakshaat bhagavaddarshan hee maanata hai; kyonki brajabhoomimen to shreejee evan bhagavaan shreekrishnaka sada vaas rahata hee hai.
[ shreenarendrakumaarajee sharmaa]

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