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श्रीरानाबाईजी की मार्मिक कथा
श्रीरानाबाईजी की अधबुत कहानी - Full Story of श्रीरानाबाईजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [श्रीरानाबाईजी]- भक्तमाल


श्रीरानाबाईजीने मारवाड़के हरनामा ग्राममें जालम जाटके घरपर जन्म लिया था। बाल्यावस्थासे ही भगवान्‌के चरणकमलोंमें इनकी अनुरक्ति थी, प्रसिद्ध संत श्रीखोजीजी महाराजकी इनपर बड़ी कृपा रहती थी। उनके सत्सङ्गके प्रभावसे इनका पूर्ण जीवन भगवान्की भक्तिसे सम्पन्न हो उठा। ये धीरे-धीरे संसारसे विरक्त होने लगीं, यौवनके प्रथमकक्षमें प्रवेश करते ही माता-पिताने इनका विवाह करना चाहा; पर इन्होंने यह कहकर विवाह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया कि 'मैंने तो पतिरूपमें भगवान्का ही वरण किया है, मेरे मनमें किसी दूसरे पुरुषकी कामना ही नहीं है।' ये एकान्तमें रहने लगीं, भगवद्भजन और सत्सङ्ग तथा खोजी महाराजके दर्शनके सिवा इनके जीवनका कोई दूसरा कार्यक्रम ही नहीं था। एक समय गोयन्दराव राठौड़के मनमें यह बात उठी कि रानाबाई एकान्तमें खोजी महाराजसे सत्सङ्ग करती हैं। वे
युवावस्थासम्पन्न रमणी हैं, उसे उनके चरित्रपर शङ्का हुई। उसने छिपकर देखा तो आश्चर्यचकित हो गया, खोजी महाराज उसे छः माहके बालकके रूपमें दीख पड़े।गोयन्दरावने दोनोंके चरणोंपर गिरकर क्षमा माँगी। एक समय जोधपुरके महाराजा अभयसिंहके आदेशसे बोरावड़के ठाकुर राजसिंहने अहमदाबादपर अधिकार करनेके लिये सेनासहित कूच किया। इन्होंने मन-ही मन रानाबाईसे प्रार्थना की कि युद्धमें मेरी विजय हो विजय हो गयी। महाराजा अभयसिंहने उन्हें पुरस्कृतकर हाथीपर चढ़ाकर बोरावड़ भेजा। हवेलीके सामने हाथी ठहर गया, वह आगे बढ़ता ही नहीं था। उन्हें स्मरण हो आया कि रानाबाईका दर्शन करना तो शेष ही रह गया है, जिनकी कृपासे विजय मिली। वे उनका दर्शन करके कृतार्थ हो गये। रानाबाईने आशीर्वादके रूपमें गोबर भरे हाथोंसे राजसिंहके पीठपर थापा दिया। थापेका रंग तुरंत केसरका हो गया और सब ओर केसरकी सुगन्ध छा गयी।

रानाबाईके सम्बन्धमें अनेक चमत्कारपूर्ण घटनाएँ कही-सुनी जाती हैं। उन्होंने सवा दो सौ साल पहले परमधामकी यात्रा की, आज भी उनकी पवित्र तपोभूमिमें बहुत बड़ा मेला लगता है।



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raanaabaaeeke sambandhamen anek chamatkaarapoorn ghatanaaen kahee-sunee jaatee hain. unhonne sava do sau saal pahale paramadhaamakee yaatra kee, aaj bhee unakee pavitr tapobhoomimen bahut bada़a mela lagata hai.

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