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महात्मा श्रीअवधदासजी की मार्मिक कथा
महात्मा श्रीअवधदासजी की अधबुत कहानी - Full Story of महात्मा श्रीअवधदासजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [महात्मा श्रीअवधदासजी]- भक्तमाल


मैंने जिस दिन उन महापुरुषके चरणोंमें मस्तक रखकर प्रणाम किया, उस दिन उस समय उनके चरण शीतल हो चुके थे। उनमें किसीको पहचाननेकी शक्ति नहीं रही थी। उसके पश्चात् कुछ घंटों ही वे इस धरापर और रहे।

वे श्रीगौराङ्ग महाप्रभुके (गौड़ीय) सम्प्रदायके विरक्त वैष्णव थे। उनकी निष्ठा थी कि श्रीमद्भागवत ही साक्षात्श्रीकृष्णचन्द्र हैं। वे श्रीमद्भागवतका ही पूजन, आराधन और पाठ करते थे। जीवनभर वे श्रीमद्भागवतका पाठ करते रहे।

उनकी अवस्था सौ वर्षसे अधिक हो चुकी थी, दृष्टिशक्ति लुप्त हो गयी थी; किंतु उनको तो श्रीमद्भागवतका पूरा ग्रन्थ कण्ठस्थ था। यह भी स्मरण था कि उनके पाठ-ग्रन्थके किस पृष्ठमें कितने श्लोक हैं। आसनपरबैठकर ग्रन्थके पृष्ठ यथाक्रम पलटते जाते और पाठ करते जाते थे। उस दिन जब हमलोग उनके दर्शन करने गये, जाड़ोंके दिन थे । मध्याह्नमें पाठ-विश्राम करके वे आँगनमें धूपमें लेटे थे। उनके एक शिष्यने उन्हें पुकारकर सूचना दी थी। हमलोग तो दर्शन करके चले आये। वे कुछ देरपर उठे और हाथ-पैर धोकर, आचमन करके पाठ करने अपने आसनपर जा बिराजे। हाथमेंश्रीमद्भागवतका पन्ना, सामने श्रीमद्भागवतकी खुली प्रति। उनका पाठ कब चलते-चलते रुक गया, किसीको पता नहीं। नित्य- समयपर जब वे न उठे, तब शिष्योंने जाकर उठाना चाहा। आसनपर वे ऐसे बैठे थे, जैसे अब भी पाठ करनेवाले हों, हाथमें पन्ना लिये जैसे अब उसके श्लोक बोलेंगे ही; किंतु वे तो जा चुके थे उस नित्यधाममें, जहाँ जाकर फिर कोई लौटता नहीं।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [mahaatma shreeavadhadaasajee]- Bhaktmaal


mainne jis din un mahaapurushake charanonmen mastak rakhakar pranaam kiya, us din us samay unake charan sheetal ho chuke the. unamen kiseeko pahachaananekee shakti naheen rahee thee. usake pashchaat kuchh ghanton hee ve is dharaapar aur rahe.

ve shreegauraang mahaaprabhuke (gauda़eeya) sampradaayake virakt vaishnav the. unakee nishtha thee ki shreemadbhaagavat hee saakshaatshreekrishnachandr hain. ve shreemadbhaagavataka hee poojan, aaraadhan aur paath karate the. jeevanabhar ve shreemadbhaagavataka paath karate rahe.

unakee avastha sau varshase adhik ho chukee thee, drishtishakti lupt ho gayee thee; kintu unako to shreemadbhaagavataka poora granth kanthasth thaa. yah bhee smaran tha ki unake paatha-granthake kis prishthamen kitane shlok hain. aasanaparabaithakar granthake prishth yathaakram palatate jaate aur paath karate jaate the. us din jab hamalog unake darshan karane gaye, jaada़onke din the . madhyaahnamen paatha-vishraam karake ve aanganamen dhoopamen lete the. unake ek shishyane unhen pukaarakar soochana dee thee. hamalog to darshan karake chale aaye. ve kuchh derapar uthe aur haatha-pair dhokar, aachaman karake paath karane apane aasanapar ja biraaje. haathamenshreemadbhaagavataka panna, saamane shreemadbhaagavatakee khulee prati. unaka paath kab chalate-chalate ruk gaya, kiseeko pata naheen. nitya- samayapar jab ve n uthe, tab shishyonne jaakar uthaana chaahaa. aasanapar ve aise baithe the, jaise ab bhee paath karanevaale hon, haathamen panna liye jaise ab usake shlok bolenge hee; kintu ve to ja chuke the us nityadhaamamen, jahaan jaakar phir koee lautata naheen.

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