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महाकवि मुकुन्दराज की मार्मिक कथा
महाकवि मुकुन्दराज की अधबुत कहानी - Full Story of महाकवि मुकुन्दराज (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [महाकवि मुकुन्दराज]- भक्तमाल


मुकुन्दराज बहुत बड़े राजयोगी, वेदान्ती और आत्मज्ञानी तथा भक्त थे। भक्ति-साहित्यका इतिहास सङ्केत करता है। कि भारतीय भक्तकवि भक्ति और आत्मज्ञान दोनोंमें पूर्ण पारङ्गत होकर भगवान्‌के स्वरूपका विवेचन करता है। मुकुन्दराजके सम्बन्धमें यह उक्ति नितान्त सच है ।

मुकुन्दराजका जन्म शाके 1050 में हुआ था। वे सम्भवतः भास्कराचार्यके समकालीन थे। बाल्यावस्थासे ही उनका मन वैराग्य और भगवत्प्रेमकी ओर आकृष्ट हो चुका था। उनके गुरु रघुनाथ थे। उनकी गुरुपरम्परामें आदिनाथ, हरिनाथ आदि बड़े-बड़े योगीश्वर हो चुके थे। मुकुन्दराज बहुत बड़े गुरुनिष्ठ थे, गुरुको साक्षात् परमात्माका स्वरूप मानकर उनके प्रति प्रगाढ़ प्रेमभाव रखते थे ।

मुकुन्दराजके दो ग्रन्थ विवेकसिन्धु और परमामृतलोक मराठी वाङ्मयकी अमूल्य निधि हैं। दोनों ग्रन्थ सरस और प्रसादगुणोपेत हैं। जिन विषयोंका वर्णन विवेकसिन्धुमें पूर्णरूपसे हुआ है, उनकी संक्षिप्त जानकारी परमामृतलोकमें करायी गयी है। शुद्ध सच्चिदानन्द परब्रह्म घनानन्द मूर्ति भगवान्की रसमयी चरित्र - गाथासे दोनों ग्रन्थपरिपूर्ण हैं। सर्वत्र आत्मा और परमात्माके ऐक्यका गीत गाया गया है।

भगवान् श्रीहरिकी अनन्यभावसे उपासना करनेमें ही उनकी पूर्ण आस्था और दृढ़ निष्ठा थी। भगवान्‌को हृदयमें प्रतिष्ठितकर षोडशोपचार पूजाविधिसे उनका चिन्तन करते रहना चाहिये - यह उनका अचल भक्ति सिद्धान्त था। वे कहा करते थे कि "जो सगुण ब्रह्मकी भक्ति और उपासना नहीं करता, वह मूढ़ है। श्रीराम, श्रीकृष्ण और देवी - सब ब्रह्म हैं। इस तरहकी उपासनासे 'सर्वं खल्विदं ब्रह्म' साधनाकी सिद्धि होती है।"

एक बार निवृत्तिनाथने ज्ञानेश्वरसे कहा था कि तुमने तो गीताको अपनी भाषाका रूप दिया; पर मुकुन्दराज धन्य हैं, जिन्होंने अपनी मतिके अनुसार विवेकसिन्धु ग्रन्थ लिख डाला। उन्होंने बल्लाल जयन्तपाल नरेशकी विशेष प्रार्थनापर आत्मसुखके ही लिये इस ग्रन्थकी रचना की थी।

मुकुन्दराजका देहावसान शाके 1120 में हुआ था। उनकी समाधि बैतुल जबलखेड़ामें है।



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mukundaraajake do granth vivekasindhu aur paramaamritalok maraathee vaanmayakee amooly nidhi hain. donon granth saras aur prasaadagunopet hain. jin vishayonka varnan vivekasindhumen poornaroopase hua hai, unakee sankshipt jaanakaaree paramaamritalokamen karaayee gayee hai. shuddh sachchidaanand parabrahm ghanaanand moorti bhagavaankee rasamayee charitr - gaathaase donon granthaparipoorn hain. sarvatr aatma aur paramaatmaake aikyaka geet gaaya gaya hai.

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mukundaraajaka dehaavasaan shaake 1120 men hua thaa. unakee samaadhi baitul jabalakheda़aamen hai.

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