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महर्षि शरभङ्ग की मार्मिक कथा
महर्षि शरभङ्ग की अधबुत कहानी - Full Story of महर्षि शरभङ्ग (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [महर्षि शरभङ्ग]- भक्तमाल


तपोभूमि दण्डकारण्य क्षेत्रमें अनेकानेक ऊर्ध्वरेता ब्रह्मवादी ऋषियोंने घोर तपस्याएँ की हैं। कठिन योगाभ्यास एवं प्राणायामादिद्वारा संसारके समस्त पदार्थोंसे आसक्ति, ममता, स्पृहा एवं कामनाका समूल नाश करके अपनी उग्र तपस्याद्वारा समस्त इन्द्रियोंपर पूर्ण विजय प्राप्त करनेवाले अनेकानेक ऋषियोंमेंसे शरभङ्गजी भी एक थे।

अपनी उत्कट तपस्याद्वारा इन्होंने ब्रह्मलोकपर विजय प्राप्त कर ली थी। देवराज इन्द्र इन्हें सत्कारपूर्वक ब्रह्मलोकतक पहुँचानेके निमित्त आये। इन्होंने देखा कि पृथ्वीसे कुछ ऊपर आकाशमें देवराजका रथ खड़ा है। बहुत से देवताओंसे घिरे वे उसमें विराजमान हैं। सूर्य एवं अग्निके समान उनकी शोभा है। देवाङ्गनाएँ उनकी स्वर्ण दण्डिकायुक्त चमरोंसे सेवा कर रही हैं। उनके मस्तकपर श्वेत छत्र शोभायमान है। गन्धर्व सिद्ध एवं अनेक ब्रह्मर्षि उनकी अनेक उत्तमोत्तम वचनोंद्वारा स्तुति कर रहे हैं। ये इनके साथ ब्रह्मलोकको यात्राके लिये तैयार ही थे कि इन्हें पता चला कि राजीवलोचन कोशलकिशोर श्रीराघवेन्द्र रामभद्र भ्राता लक्ष्मण एवं भगवती श्रीसीताजीसहित इनके आश्रमकी और पधार रहे हैं। ज्यों ही भगवान् श्रीरामके आगमन का शुभ समाचार इनके कानों में पहुँचा, त्यों ही तपःपूत अन्तःकरणमें भक्तिका सञ्चार हो गया। वे मन-ही-मन सोचने लगे-'अहो ! लौकिक और वैदिक समस्त धर्मोका पालन जिन भगवान्के चरणकमलोंकी प्राप्तिके लिये ही किया जाता है - वे ही भगवान् स्वयं जब मेरे आश्रमकी ओर पधार रहे हैं, तब उन्हें छोड़कर ब्रह्मलोकको जाना तो सर्वथा मूर्खता है। ब्रह्मलोकके प्रधान देवता तो मेरे यहाँ ही आ रहे हैं तब वहाँ जाना निष्प्रयोजनीय ही है। अतः मन-ही-मन यह निश्चय कर कि 'तपस्याके प्रभावसे मैंने जिन-जिन अक्षयलोकोंपर अधिकार प्राप्त किया है, वे सब मैंभगवान्के चरणों में समर्पित करता हूँ' इन्होंने देवराज इन्द्रको विदा कर दिया। ऋषि शरभङ्गजीके अन्तःकरणमें प्रेमजनित विरह भावका उदय हो गया

'चितवत पंथ रहे दिन राती।'

वे भगवान् श्रीरामकी अल्प कालको प्रतीक्षाको भी युग-युगके समान समझने लगे। भगवान् श्रीरामके सम्मुख हो मैं इस नश्वर शरीरका त्याग करूँगा - इस दृढ सङ्कल्पसे वे भगवान् रामको क्षण-क्षण प्रतीक्षा करने लगे।

कमल-दल- लोचन श्यामसुन्दर भगवान् श्रीराम इनके आश्रमपर पधारे ही सीता लक्ष्मणसहित रघुनन्दनको मुनिवरने देखा। उनका कण्ठ गद्रद हो गया। वे कहने लगे

चितवत पंथ रहेउँ दिन राती अब प्रभु देखि जुड़ानी छाती ॥

नाथ सकल साधन में हीना। कीन्ही कृपा जानि जनु दीना ।।

भगवान् श्रीरामको देखते ही प्रेमवश इनके लोचन भगवान्‌के रूप-सुधा-मकरन्दका साग्रह पान करने लगे। इनके नेत्रोंके सम्मुख तो वे थे ही- अपने प्रेमसे इन्होंने उन्हें अपने अन्तःकरणमें भी बैठा लिया सीता अनुज समेत प्रभु नील जलद तनु स्याम । मम हियै बसहु निरंतर सगुन रूप श्रीराम भगवान् को अपने अन्तःकरणमें बैठाकर मुनि योगाग्निसे अपने शरीरको जलानेके लिये तत्पर हो गये। योगाग्निने इनके रोम, केश, चमड़ी, हड्डी, मांस और रक-सभीको जलाकर भस्म कर डाला। अपने नश्वर शरीरको नष्टकर वे अग्निके समान तेजोमय शरीरसे उत्पन्न हुए। परम तेजस्वी कुमारके रूपमें वे अग्नियों, महात्मा ऋषियों और देवताओंके भी लोकोंको लाँघकर दिव्य धामको चले गये।



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apanee utkat tapasyaadvaara inhonne brahmalokapar vijay praapt kar lee thee. devaraaj indr inhen satkaarapoorvak brahmalokatak pahunchaaneke nimitt aaye. inhonne dekha ki prithveese kuchh oopar aakaashamen devaraajaka rath khada़a hai. bahut se devataaonse ghire ve usamen viraajamaan hain. soory evan agnike samaan unakee shobha hai. devaanganaaen unakee svarn dandikaayukt chamaronse seva kar rahee hain. unake mastakapar shvet chhatr shobhaayamaan hai. gandharv siddh evan anek brahmarshi unakee anek uttamottam vachanondvaara stuti kar rahe hain. ye inake saath brahmalokako yaatraake liye taiyaar hee the ki inhen pata chala ki raajeevalochan koshalakishor shreeraaghavendr raamabhadr bhraata lakshman evan bhagavatee shreeseetaajeesahit inake aashramakee aur padhaar rahe hain. jyon hee bhagavaan shreeraamake aagaman ka shubh samaachaar inake kaanon men pahuncha, tyon hee tapahpoot antahkaranamen bhaktika sanchaar ho gayaa. ve mana-hee-man sochane lage-'aho ! laukik aur vaidik samast dharmoka paalan jin bhagavaanke charanakamalonkee praaptike liye hee kiya jaata hai - ve hee bhagavaan svayan jab mere aashramakee or padhaar rahe hain, tab unhen chhoda़kar brahmalokako jaana to sarvatha moorkhata hai. brahmalokake pradhaan devata to mere yahaan hee a rahe hain tab vahaan jaana nishprayojaneey hee hai. atah mana-hee-man yah nishchay kar ki 'tapasyaake prabhaavase mainne jina-jin akshayalokonpar adhikaar praapt kiya hai, ve sab mainbhagavaanke charanon men samarpit karata hoon' inhonne devaraaj indrako vida kar diyaa. rishi sharabhangajeeke antahkaranamen premajanit virah bhaavaka uday ho gayaa

'chitavat panth rahe din raatee.'

ve bhagavaan shreeraamakee alp kaalako prateekshaako bhee yuga-yugake samaan samajhane lage. bhagavaan shreeraamake sammukh ho main is nashvar shareeraka tyaag karoonga - is dridh sankalpase ve bhagavaan raamako kshana-kshan prateeksha karane lage.

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chitavat panth raheun din raatee ab prabhu dekhi juड़aanee chhaatee ..

naath sakal saadhan men heenaa. keenhee kripa jaani janu deena ..

bhagavaan shreeraamako dekhate hee premavash inake lochan bhagavaan‌ke roopa-sudhaa-makarandaka saagrah paan karane lage. inake netronke sammukh to ve the hee- apane premase inhonne unhen apane antahkaranamen bhee baitha liya seeta anuj samet prabhu neel jalad tanu syaam . mam hiyai basahu nirantar sagun roop shreeraam bhagavaan ko apane antahkaranamen baithaakar muni yogaagnise apane shareerako jalaaneke liye tatpar ho gaye. yogaagnine inake rom, kesh, chamada़ee, haddee, maans aur raka-sabheeko jalaakar bhasm kar daalaa. apane nashvar shareerako nashtakar ve agnike samaan tejomay shareerase utpann hue. param tejasvee kumaarake roopamen ve agniyon, mahaatma rishiyon aur devataaonke bhee lokonko laanghakar divy dhaamako chale gaye.

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