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भक्तहृदय कुम्भकर्ण की मार्मिक कथा
भक्तहृदय कुम्भकर्ण की अधबुत कहानी - Full Story of भक्तहृदय कुम्भकर्ण (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्तहृदय कुम्भकर्ण]- भक्तमाल


रामहि केवल प्रेमु पिआरा। जानि लेउ जो जाननिहारा।

भगवान्‌की लीला अद्भुत है। जो तर्क करना चाहते हैं, वे उसमें अविश्वास करके अशान्त होते हैं और जो श्रद्धालु हैं, विश्वासी हैं, वे उन लीलामयकी अद्भुत क्रीड़ाओंमें आनन्द प्राप्त करते हैं। रावणका छोटा भाई कुम्भकर्ण सृष्टिका ही प्राणी था, फिर भी वह सृष्टिकर्ताके लिये ही एक समस्या हो गया था। जब तपस्या करते हुए कुम्भकर्णके पास ब्रह्माजी वरदान देने पहुँचे, तब वरदान देना तो दूर, उन्हें दूसरी ही चिन्ता हो गयी। वे सोचने लगे- 'यदि कहीं यह नित्य भोजन करेगा तो सारा विश्व कुछ ही कालमें ही इसके द्वारा नष्ट हो जायगा।' सरस्वतीके द्वारा ब्रह्माजीने कुम्भकर्णकी बुद्धि भ्रमित करा दी और उसने छः महीने सोते रहनेका वरदान माँग लिया।

पाप-पुण्य, धर्म-कर्मसे भला, कुम्भकर्णको क्या काम। वह तो छः महीनेतक खर्राटे लेता पड़ा रहता था एक पहाड़की बड़ी भारी गुफामें। छः महीनेपर केवल एक दिनके लिये जागता था। वह दिन भोजन करने तथा कुशल मङ्गल पूछने में ही बीत जाता था। रावणके अपकर्मों मेंकुम्भकर्णका कोई हाथ नहीं था, न हो ही सकता था। उस महाकायका हृदय निर्मल था। वह इतना शुद्ध अधिकारी था कि स्वयं देवर्षि नारदने उसे तत्त्वज्ञानका उपदेश दिया था।

जब लङ्काकी सेना वानर-रीछोंकी मारसे संत्रस्त हो गयी, जब अवनि, अकम्पन आदि राक्षसनायक कपियोंके हाथ मारे गये, तब रावणने कुम्भकर्णको जगानेका आदेश दिया। अनेक उपायोंके द्वारा किसी प्रकार राक्षस कुम्भकर्णको जगा सके। जागनेपर सब बातें सुनकर कुम्भकर्णको बड़ा दुःख हुआ। उसने रावणसे कहा-

जगदंबा हरि आनि अब ਸਰ चाहत कल्यान । भल न कीन्ह तैं निसिचरनाहा। अब मोहि आई जगाएहि काहा ।। अजहूँ तात त्यागि अभिमाना। भजहु राम होइहि कल्याना ॥

परंतु बड़े भाईका अनादर करना कुम्भकर्णको अभीष्ट नहीं था। वह तो अपने नेत्रोंको सफल करना चाहता था। उसने अपनी एकमात्र इच्छा व्यक्त की स्याम गात सरसीरुह लोचन । देखौं जाइ तापत्रय मोचन ॥

विभीषणजी जानते थे कुम्भकर्णके निष्कपट हृदयको । वे युद्धके लिये आते हुए उस अपने भाईके समीप गये।कुम्भकर्णने उनको बड़ी सुन्दर शिक्षा दी -

धन्य धन्य तैं धन्य बिभीषन । भएहु तात निसिचरकुल भूषन ।। बंधु बंस तैं कीन्ह उजागर । भजेहु राम सोभा सुख सागर ।।बचन कर्म मन कपट तजि भजेहु राम रनधीर l

हृदयमें भक्तिका यह निर्मल भाव लेकर कर्तव्यसे विवश वह महाकाय युद्धमें आया। वह 'देखौं जाइ तापत्रय मोचन' का संकल्प लेकर चला था। अतः भक्तवत्सल प्रभुने भी कहा- 'मैं देखउँ खल बल दलहि और वे 'राजिवनैन' स्वयं 'कर सारंग साजि कटि भाथा' कुम्भकर्णके सम्मुख पहुँचे। संग्राममें पराक्रम प्रदर्शित करके, श्रीरामके बाणोंसे शरीर त्यागकर कुम्भकर्ण उनप्रभुमें ही लीन हो गया।

तासु तेज प्रभु बदन समाना। सुर मुनि सबहिं अचंभव माना ।। परंतु इसमें आश्चर्य करनेकी कोई बात नहीं है। यह ठीक है कि कुम्भकर्ण राक्षस था, राक्षसी आहार करनेवाला था, तमोगुणरूपा घोर निद्रामें पड़ा रहता था और रावणका पक्ष लेकर लड़ने आया था; किंतु श्रीराम तो भाव देखते हैं और कुम्भकर्णका भावपूर्ण हृदय श्रीरघुनाथजीको परम ब्रह्म ही मानता था। वह उनके दर्शन करके, उनके बाणोंसे देह त्याग कर कृतार्थ होने ही आया था और तब उसकी परमगति हो, इसमें आश्चर्यकी भला कौन-सी बात है।



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raamahi keval premu piaaraa. jaani leu jo jaananihaaraa.

bhagavaan‌kee leela adbhut hai. jo tark karana chaahate hain, ve usamen avishvaas karake ashaant hote hain aur jo shraddhaalu hain, vishvaasee hain, ve un leelaamayakee adbhut kreeda़aaonmen aanand praapt karate hain. raavanaka chhota bhaaee kumbhakarn srishtika hee praanee tha, phir bhee vah srishtikartaake liye hee ek samasya ho gaya thaa. jab tapasya karate hue kumbhakarnake paas brahmaajee varadaan dene pahunche, tab varadaan dena to door, unhen doosaree hee chinta ho gayee. ve sochane lage- 'yadi kaheen yah nity bhojan karega to saara vishv kuchh hee kaalamen hee isake dvaara nasht ho jaayagaa.' sarasvateeke dvaara brahmaajeene kumbhakarnakee buddhi bhramit kara dee aur usane chhah maheene sote rahaneka varadaan maang liyaa.

paapa-puny, dharma-karmase bhala, kumbhakarnako kya kaama. vah to chhah maheenetak kharraate leta pada़a rahata tha ek pahaada़kee bada़ee bhaaree guphaamen. chhah maheenepar keval ek dinake liye jaagata thaa. vah din bhojan karane tatha kushal mangal poochhane men hee beet jaata thaa. raavanake apakarmon menkumbhakarnaka koee haath naheen tha, n ho hee sakata thaa. us mahaakaayaka hriday nirmal thaa. vah itana shuddh adhikaaree tha ki svayan devarshi naaradane use tattvajnaanaka upadesh diya thaa.

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hridayamen bhaktika yah nirmal bhaav lekar kartavyase vivash vah mahaakaay yuddhamen aayaa. vah 'dekhaun jaai taapatray mochana' ka sankalp lekar chala thaa. atah bhaktavatsal prabhune bhee kahaa- 'main dekhaun khal bal dalahi aur ve 'raajivanaina' svayan 'kar saarang saaji kati bhaathaa' kumbhakarnake sammukh pahunche. sangraamamen paraakram pradarshit karake, shreeraamake baanonse shareer tyaagakar kumbhakarn unaprabhumen hee leen ho gayaa.

taasu tej prabhu badan samaanaa. sur muni sabahin achanbhav maana .. parantu isamen aashchary karanekee koee baat naheen hai. yah theek hai ki kumbhakarn raakshas tha, raakshasee aahaar karanevaala tha, tamogunaroopa ghor nidraamen pada़a rahata tha aur raavanaka paksh lekar lada़ne aaya thaa; kintu shreeraam to bhaav dekhate hain aur kumbhakarnaka bhaavapoorn hriday shreeraghunaathajeeko param brahm hee maanata thaa. vah unake darshan karake, unake baanonse deh tyaag kar kritaarth hone hee aaya tha aur tab usakee paramagati ho, isamen aashcharyakee bhala kauna-see baat hai.

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