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भक्त श्रीआशुधीरजी की मार्मिक कथा
भक्त श्रीआशुधीरजी की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त श्रीआशुधीरजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त श्रीआशुधीरजी]- भक्तमाल


वीतराग अनन्य भक्त श्री आशुधीरजीका जन्म वि0 सं0 1480 के लगभग सारस्वत वंशमें हुआ। आप वृन्दावनके पुलिनमें सदैव विश्राम किया करते थे, अतः उस स्थानका नाम भी 'धीर समीर' पड़ गया। वह स्थान इतना दिव्य और पुनीत है कि उसके विषयमें एक संस्कृत कविने तो यहाँतक कह दिया कि—

'धीरसमीरे यमुनातीरे वसति सदा बनमाली।' गायक-सम्राट् तानसेनके गुरु स्वामी हरिदासजी तो आपके एक दोहेको सुनकर ही सर्वस्व त्यागकर आपके शिष्य हो गये और अन्तमें भगवत् सान्निध्य प्राप्त कर ही लिया। बात इस प्रकार थी कि युवावस्थामें हरिदासजी एक श्रेष्ठ अश्वपर चढ़कर वृन्दावनमें भ्रमण कर रहे थे। अश्वकी टापोंसे वृन्दावन खुद रहा था, इसे देखकर भावुक भक्तका चित्त विचलित हो उठा और वे कह ही तो बैठे

नहिं पावत ब्रह्मादि सुर बिलसत जुगल सिहाय ।

अस कल कोमल भूमि पै तुरंग फिरावत हाय ॥

दोहेको सुनते ही हरिदासजीकी दिव्य दृष्टि हो गयी और वृन्दावन उन्हें दिव्य रत्नजटित दीखने लगा। तुरंत ही अश्व छोड़कर उन्होंने सदैव के लिये स्वामीजीके चरण पकड़ लिये और अन्तमें युगल श्रीकुञ्जविहारीका प्रत्यक्ष दर्शन किया। उनके विषयमें किंवदन्तियाँ भी बहुत प्रसिद्ध हैं।

प्रयागमें कुम्भका पर्व था । वृन्दावनसे बहुत-से महात्मा दर्शन-स्नानके लिये जा रहे थे। आशुधीरजीने भी 5 सुपारी एक साधुको देकर कह दिया कि गङ्गाजीको दे देना। वे साधु स्नान करके गङ्गातटपर विचार करने लगे कि मुझे चढ़ानेको तो कहा नहीं है, देनेको कहा है। वे तुरंत ही गङ्गाजीको पुकारने लगे। गङ्गाजीने आवाज सुनकर जलसे बाहर दक्षिण भुजा पसार दी और सुपारी लेकर अन्तर्धान हो गयीं।

इनके विषयमें किसी सामयिक कविने प्रशंसामें यह छन्द कहा था

'निंबारक बंस अवतंस तामे हंसवत

अमित प्रसंस रति मति गति ग्राम हैं।

पंडित अखंडित हैं, बेदमति मंडित हैं,

राम सौं न काम किंतु धारी उर राम हैं।

तिलक बिसाल भाल, रसिक रसाल रस

परम कृपालु, पर औगुन कों खाम हैं।

ललित ललाम स्याम स्यामा सुखधाम नाम

लेत आठौं जाम आसुधीर अभिराम हैं।'

आपके 52 शिष्य हुए, जिनमें स्वामी हरिदासजी प्रमुख हैं, जिनसे तानसेनजीने सङ्गीत सीखा। निकुञ्जवास आपका लगभग सोलहवीं शताब्दीका उत्तरार्ध है। आज भी आपका स्थान 'टट्टीस्थान' के नामसे दर्शनीय तथा प्रसिद्ध है।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [bhakt shreeaashudheerajee]- Bhaktmaal


veetaraag anany bhakt shree aashudheerajeeka janm vi0 san0 1480 ke lagabhag saarasvat vanshamen huaa. aap vrindaavanake pulinamen sadaiv vishraam kiya karate the, atah us sthaanaka naam bhee 'dheer sameera' pada़ gayaa. vah sthaan itana divy aur puneet hai ki usake vishayamen ek sanskrit kavine to yahaantak kah diya ki—

'dheerasameere yamunaateere vasati sada banamaalee.' gaayaka-samraat taanasenake guru svaamee haridaasajee to aapake ek doheko sunakar hee sarvasv tyaagakar aapake shishy ho gaye aur antamen bhagavat saannidhy praapt kar hee liyaa. baat is prakaar thee ki yuvaavasthaamen haridaasajee ek shreshth ashvapar chadha़kar vrindaavanamen bhraman kar rahe the. ashvakee taaponse vrindaavan khud raha tha, ise dekhakar bhaavuk bhaktaka chitt vichalit ho utha aur ve kah hee to baithe

nahin paavat brahmaadi sur bilasat jugal sihaay .

as kal komal bhoomi pai turang phiraavat haay ..

doheko sunate hee haridaasajeekee divy drishti ho gayee aur vrindaavan unhen divy ratnajatit deekhane lagaa. turant hee ashv chhoda़kar unhonne sadaiv ke liye svaameejeeke charan pakada़ liye aur antamen yugal shreekunjavihaareeka pratyaksh darshan kiyaa. unake vishayamen kinvadantiyaan bhee bahut prasiddh hain.

prayaagamen kumbhaka parv tha . vrindaavanase bahuta-se mahaatma darshana-snaanake liye ja rahe the. aashudheerajeene bhee 5 supaaree ek saadhuko dekar kah diya ki gangaajeeko de denaa. ve saadhu snaan karake gangaatatapar vichaar karane lage ki mujhe chadha़aaneko to kaha naheen hai, deneko kaha hai. ve turant hee gangaajeeko pukaarane lage. gangaajeene aavaaj sunakar jalase baahar dakshin bhuja pasaar dee aur supaaree lekar antardhaan ho gayeen.

inake vishayamen kisee saamayik kavine prashansaamen yah chhand kaha thaa

'ninbaarak bans avatans taame hansavata

amit prasans rati mati gati graam hain.

pandit akhandit hain, bedamati mandit hain,

raam saun n kaam kintu dhaaree ur raam hain.

tilak bisaal bhaal, rasik rasaal rasa

param kripaalu, par augun kon khaam hain.

lalit lalaam syaam syaama sukhadhaam naama

let aathaun jaam aasudheer abhiraam hain.'

aapake 52 shishy hue, jinamen svaamee haridaasajee pramukh hain, jinase taanasenajeene sangeet seekhaa. nikunjavaas aapaka lagabhag solahaveen shataabdeeka uttaraardh hai. aaj bhee aapaka sthaan 'tatteesthaana' ke naamase darshaneey tatha prasiddh hai.

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