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भक्त प्रचेतागण की मार्मिक कथा
भक्त प्रचेतागण की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त प्रचेतागण (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त प्रचेतागण]- भक्तमाल


तज्जन्म तानि कर्माणि तदायुस्तन्मनो वचः ।

नृणां येनेह विश्वात्मा सेव्यते हरिरीश्वरः ।।

श्रीमद्भा0 4 39 । 9)

'वही जन्म सफल जन्म है, वे ही कर्म ठीक कर्म हैं, वही आयु आयु है, वही मन मन है और वही वाणी वाणी है, जिनके द्वारा मनुष्य सर्वसमर्थ विश्वात्मा श्रीहरिकी सेवा करते हैं।'

आदिराज पृथुके वंशमें बर्हिषद नामक एक पुण्यात्मा राजा हो गये हैं। उन्होंने इतने यज्ञ किये कि पृथ्वी उनके यज्ञिय कुशोंसे आच्छादित हो गयी। इनकी पत्नी शतद्रुतिसे दस पुत्र हुए, जो 'प्रचेता' कहे गये। ये सब के सब भगवान् के भक्त थे और परस्पर इनका इतना ऐक्य था कि इनके धर्म, शील, आचार, व्यवहारमें तनिक भी कहीं अन्तर नहीं रहा था। पिताने इन्हें विवाह करके सन्तान उत्पन्न करनेकी आज्ञा दी। आज तो विवाह और सन्तानोत्पादन भोग हो गये हैं। विषयसेवनके लिये आज विवाह होता है; किंतु शास्त्रोंका कहना है कि जो पुत्र अपने पूर्वजोंको नरकसे छुड़ा सके, वही पुत्र है। ऐसी सन्तति भगवान्की कृपाके बिना नहीं प्राप्त होती। भगवान्‌को प्रसन्न करनेके लिये प्रचेतागण तप करने चल पड़े।

प्रचेताओंने पश्चिम समुद्र के किनारे एक विस्तृत स्वच्छ सरोवर देखा। वहाँ मृदङ्ग आदि बाजे बज रहे थे, गन्धर्व गान कर रहे थे। उस दिव्य गानको सुनकर राजकुमारोंको आश्चर्य हुआ। इसी समय उस सरोवरसे अपने उज्ज्वल वृषभपर बैठे भगवान् शङ्कर प्रकट हुए। शङ्करजीने राजपुत्रोंसे कहा- 'राजपुत्रो! जो कोई भगवान् वासुदेवकी शरण लेता है, उससे बढ़कर मेरा और कोई प्रिय नहीं है। मुझे जितने प्रिय श्रीहरि हैं, उतने ही प्रिय उनके भक्त भी हैं और उन नारायणके भक्तोंका भी मैं अत्यन्त प्रिय हूँ। तुमलोग भगवान्के भक्त हो, अतः परम प्रिय हो। तुमपर कृपा करके मैं तुम्हारे पास आया हूँ। मैं तुम्हें एक दिव्य स्तोत्र बतलाता हूँ। इन्द्रियोंको वशमें करके, मनको एकाग्र करके भगवान्‌का स्मरण करते हुए इस स्तोत्रका जप करनेसे तुम्हारा कल्याण होगा। सर्वात्मा श्रीहरि तुमपर प्रसन्न होंगे।' भगवान् शङ्कर उस दिव्य स्तोत्रका उपदेश करके अन्तर्धान हो गये। प्रचेतागणोंने अपना सौभाग्य माना कि उनपर आशुतोषप्रभुने स्वयं कृपा की। वे समुद्रके जलमें खड़े होकर उस स्तोत्रका जप करते हुए दस सहस्र वर्षतक तप करते रहे। उनके तपसे प्रसन्न होकर भगवान् नारायण उनके सम्मुख प्रकट हो गये। प्रचेतागणने आनन्दवित होकर भगवान्‌की स्तुति की। भगवान्ने उनके सौ भ्रातृत्वकी प्रशंसा की। उन्हें लोकप्रसिद्ध पुत्र होनेका आशीर्वाद दिया। परंतु जो कोई भगवान्‌के श्रीचरणोंका आश्रय ले लेता है, उसने चाहे कामनापूर्वक ही भगवान्‌का भजन प्रारम्भ किया हो, भजनके प्रभावसे उसका हृदय शुद्ध अवश्य हो जाता है। उसकी समस्त कामनाएँ अपने आप नष्ट हो जाती हैं। निष्पाप प्रचेतागणने पिताके आज्ञानुसार कर्तव्यबुद्धिसे सन्तानोत्पादन के लिये यह आराधना की थी। उनके चित्तमें पहले भी कामना नहीं थी। उन्होंने प्रार्थना की-'प्रभो! आप स्वयं हमपर प्रसन्न हुए हमने इन चर्मचक्षुओंसे आपके आनन्दघन रूपके दर्शन किये-इससे महान् सौभाग्य हमारा और क्या होगा? आपसे हम इतना ही चाहते हैं कि आपकी मायासे मोहित होकर कर्म करते हुए उनके फलस्वरूप जबतक हम संसारमें घूमते रहें, तबतक प्रत्येक जन्ममें हमें आपके भक्तोंका सङ्ग प्राप्त होता रहे। सांसारिक भोगोंकी तो चर्चा ही क्या, स्वर्ग और मोक्ष भी साधुसमागमके सामने नगण्य हैं। स्वामी! हमने जो जलमें खड़े होकर दीर्घकालतक तप किया है, वह तप आपको सन्तुष्ट करे। आप उसे स्वीकार कर लें।'

भक्तवत्सल प्रभु प्रचेताओंको सन्तुष्ट करके, उनका इच्छित वरदान देकर अपने धाम पधारे। वहाँसे घर आकर ब्रह्माजीके आदेशसे वृक्षोंके द्वारा समर्पित मारिषा नामकी कन्यासे उन्होंने विवाह किया। भगवान् शङ्करका अपराध करके शरीर त्यागनेवाले दक्षने फिर प्रचेताओंके पुत्ररूपसे जन्म लिया। जब ब्रह्माजीने दक्षको प्रजापति बना दिया, तब पत्नीको पुत्रके पास छोड़कर, प्रचेतागण समस्त भोगोंको त्यागकर भगवान्के ध्यानमें लग गये। उन्होंने प्राणायामादिसे इन्द्रियों तथा मनको संयत करके चित्तको ब्रह्मचिन्तनमें लगा दिया। उसी समय देवर्षि नारदजी उनके पास आये। देवर्षिने कृपा करके उनको तत्त्वज्ञानका उपदेश किया। उसे ग्रहण करके प्रचेता भगवान्‌के श्रीचरणोंका ध्यान करते हुए परमपदको प्राप्त हुए।



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tajjanm taani karmaani tadaayustanmano vachah .

nrinaan yeneh vishvaatma sevyate harireeshvarah ..

shreemadbhaa0 4 39 . 9)

'vahee janm saphal janm hai, ve hee karm theek karm hain, vahee aayu aayu hai, vahee man man hai aur vahee vaanee vaanee hai, jinake dvaara manushy sarvasamarth vishvaatma shreeharikee seva karate hain.'

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