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भक्त चतुर्भुज की मार्मिक कथा
भक्त चतुर्भुज की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त चतुर्भुज (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त चतुर्भुज]- भक्तमाल


भगवती नर्मदाके पवित्र तटपर गोंडवाना प्रदेशमें भक्त चतुर्भुजका जन्म हुआ था। उस प्रदेशमें जनता कालीजीकी उपासना करती थी और पशुबलिसे देवीको प्रसन्न करनेमें ही अपनी समस्त साधना और उपासनाकी फलसिद्धि समझती थी। भयंकर पशुबलिने भक्त चतुर्भुजके सीधे-सादे हृदयको क्षुब्ध कर दिया। वे परम भागवत थे। उन्होंने धीरे-धीरे लोगों में भगवान्की भक्तिका प्रचार करना आरम्भ किया। जनताको अपनी मूर्खताजन्य पशुबलि और गलत उपासना पद्धतिको जानकारी हो गयी। भक्त चतुर्भुजके निष्कपट प्रेम और उदार मनोवृत्तिने जनताके मनमें उनके प्रति सहानुभूतिकी भावना भर दी, उनके दैवी गुणोंका प्रभाव बढ़ने लगा।

भक्त चतुर्भुज नित्य भागवतको कथा कहते थे और संत सेवामें शेष समयका उपयोग करते थे। भागवती कथाको सुधा-माधुरीसे भक्तिको कल्पलता फूलने फलने लगी। लोग अधिकाधिक संख्यामें उनकी कथामें आने लगे। भक्तका चरित्र हो उनके सत्कार्यके लिये विशाल क्षेत्र प्रस्तुत कर देता है। वे अपने प्रचारका डिंडोरा नहीं पीटा करते। एक समय इनकी कथामें एक उचक्का चोर आया। उसके पास चोरीका धन था। सौभाग्यसे उसमें वह व्यक्ति भी उपस्थित था, जिसके घर उसने चोरी की थी। कथा प्रसंग चोरने सुना कि 'जो भगवत् मन्त्रको दीक्षा लेता है, उसका नया जन्म होता है।' चोर भक्तका दर्शन कर चुका था, भगवान्की कथा-सुधाका माधुर्य उसके हृदय प्रदेशमें पूर्णरूपसे प्रस्फुटित हो रहा था, चोरीके कुत्सित कर्मसे उसका सहज ही उद्धार होनेका समय निकट था। कथा सुननेका तो परम पवित्र फल ही ऐसा होता है। उसने चोरीका धन कथाकी समासिपर चढ़ा दिया। वह निष्कलङ्क, निष्कपट और पापमुक्त हो चुका था, भगवान्का भक्त बन चुका था। धनी व्यक्तिने उसे पकड़ लिया, उसपरचोरीका आरोप लगाया पर उसका तो वास्तवमें नया जन्म हो चुका था; उसने हाथमें जलता फार लेकर कहा कि इस जन्ममें मैंने कुछ नहीं चुराया है। बात ठीक ही तो थी, अभी कुछ ही देर पहले उसे नया जन्म मिला था। धनी व्यक्ति बहुत लज्जित हुआ। राजाने संतपर चोरीका आरोप लगाने के अपराधमें धनीको मरवा डालना चाहा, पर संत तो परहित चिन्तनको ही साधनामें रहते हैं। चोरने, जो पूर्ण संत हो चुका था, सारी बात स्पष्ट कर दी। भक्त चतुर्भुजकी कथाका प्रभाव उसपर ऐसा पड़ा था कि धनी व्यक्तिको दण्डित होते देखकर उसके नयनोंसे अश्रुपात होने लगा, राजाको उसने अपनी साधुता और स्पष्टवादितासे आकृष्ट कर लिया। राजाके मस्तिष्कपर चतुर्भुजकी कथाका अमिट रंग चढ़ चुका था वह भी उनका शिष्य हो गया और भागवत धर्मके प्रचारमें उसने उनको पूरा-पूरा सहयोग दिया।

एक बार कुछ संत इनके खेतके निकट पहुँच गये। चने और गेहूँके खेत पक चुके थे, संतोंने बालें तोड़कर खाना आरम्भ किया। रखवालेने उन्हें ऐसा करनेसे रोका और कहा कि 'ये चतुर्भुजके खेत हैं। संतोंने कहा, 'तब तो हमारे ही खेत हैं।' रखवाला जोर-जोर से चिल्लाने लगा कि साधु लोग बालें तोड़ तोड़कर खा रहे हैं और कहते हैं कि ये खेत तो हमारे ही हैं। भक्त चतुर्भुजके कानमें यह रहस्यमयी मधुर बात पड़ी ही थी कि उनके रोम-रोममें आनन्दका महासागर उमड़ आया। उन्होंने अपने सौभाग्यकी सराहना की कि 'आज संतोंने मुझको अपना लिया, मेरी वस्तुको अपनाकर मेरी जन्म-जन्मकी साधना सफल कर दी। उनके नेत्रोंमें प्रेमा छा गये वे गुड़ तथा कुछ मिष्ठान लेकर खेतकी ओर चल पड़े। संतोंकी चरण-धूलि मस्तकपर चढ़ाकर अपनी भक्तिनिष्ठाका सिन्दूर अमर कर लिया उन्होंने l



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bhagavatee narmadaake pavitr tatapar gondavaana pradeshamen bhakt chaturbhujaka janm hua thaa. us pradeshamen janata kaaleejeekee upaasana karatee thee aur pashubalise deveeko prasann karanemen hee apanee samast saadhana aur upaasanaakee phalasiddhi samajhatee thee. bhayankar pashubaline bhakt chaturbhujake seedhe-saade hridayako kshubdh kar diyaa. ve param bhaagavat the. unhonne dheere-dheere logon men bhagavaankee bhaktika prachaar karana aarambh kiyaa. janataako apanee moorkhataajany pashubali aur galat upaasana paddhatiko jaanakaaree ho gayee. bhakt chaturbhujake nishkapat prem aur udaar manovrittine janataake manamen unake prati sahaanubhootikee bhaavana bhar dee, unake daivee gunonka prabhaav badha़ne lagaa.

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