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Bhagavad Gita Chapter 17 Verse 7

भगवद् गीता अध्याय 17 श्लोक 7

आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रियः।
यज्ञस्तपस्तथा दानं तेषां भेदमिमं श्रृणु।।17.7।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 17.7)

।।17.7।।आहार भी सबको तीन प्रकारका प्रिय होता है और वैसे ही यज्ञ? दान और तप भी तीन प्रकारके होते हैं अर्थात् शास्त्रीय कर्मोंमें भी तीन प्रकारकी रुचि होती है? तू उनके इस भेदको सुन।

हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद

।।17.7।। (अपनीअपनी प्रकृति के अनुसार) सब का प्रिय भोजन भी तीन प्रकार का होता है? उसी प्रकार यज्ञ? तप और दान भी तीन प्रकार के होते हैं? उनके भेद को तुम मुझसे सुनो।।