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संतोंके संगसे क्या नहीं सुलभ हो सकता!  [आध्यात्मिक कथा]
Spiritual Story - प्रेरक कथा (Shikshaprad Kahani)

संतोंके संगसे क्या नहीं सुलभ हो सकता!

हयग्रीव नामक दैत्यके एक पुत्र था, जो 'उत्कल' नामसे प्रसिद्ध हुआ। उसने समरांगणमें देवताओंको परास्त करके देवराज इन्द्रके छत्रको छीन लिया था। उस महाबली दैत्यने और भी बहुत-से मनुष्यों तथा नरेशोंकी राज्य- सम्पत्तिका अपहरण करके सौ वर्षोंतक सर्ववैभवसम्पन्न राज्यका उपभोग किया। एक दिन इधर-उधर विचरता हुआ दैत्य उत्कल गंगा-सागरसंगमपर महर्षि जाजलिकी पर्णशालाके समीप गया और पानीमें बंसी डालकर बारम्बार मछलियोंको पकड़ने लगा। यद्यपि मुनिने मना किया, तथापि उस दुर्बुद्धिने उनकी बात नहीं मानी। मुनिश्रेष्ठ जाजलि सिद्ध महात्मा थे, उन्होंने उत्कलको शाप देते हुए कहा- 'दुर्मते! तू बगुलेकी भाँति मछली पकड़ता और खाता है, इसलिये बगुला ही हो जा।' फिर क्या था ? उत्कल उसी क्षण बगुलेके रूपमें परिणत हो गया। तेजोभ्रष्ट हो जानेके कारण उसका सारा गर्व गल गया। उसने हाथ जोड़कर मुनिको प्रणाम किया और उनके दोनों चरणोंमें पड़कर कहा-'मुने! मैं आपके प्रचण्ड तपोबलको नहीं जानता था। जाजलिजी! मेरी रक्षा कीजिये। आप जैसे साधु-महात्माओंका संग तो उत्तम मोक्षका द्वार माना गया है। जो शत्रु और मित्रमें, मान और अपमानमें, सुवर्ण और मिट्टीके ढेलेमें तथा सुख और दुःखमें भी समभाव रखते हैं, वे आप-जैसे महात्मा ही सच्चे साधु हैं। मुने! इस भूतलपर महात्माओंके दर्शनसे मनुष्योंका कौन-सा मनोरथ नहीं पूरा हुआ? ब्रह्मपद, इन्द्रपद, सम्राट्का पद तथा योगसिद्धि- सब कुछ सन्तोंकी कृपासे सुलभ हो सकते हैं। मुनिश्रेष्ठ जाजले! आप जैसे महात्माओंसे लोगोंको धर्म, अर्थ और कामको प्राप्ति हुई तो क्या हुई? साधुपुरुषोंकी कृपासे तो साक्षात् पूर्णब्रह्म परमात्मा भी मिल जाता है।'
उत्कलकी विनययुक्त बात सुनकर
जाजलिमुनि प्रसन्न हो गये। उन्होंने उत्कलसे कहा- 'वैवस्वत मन्वन्तर प्राप्त होनेपर जब अट्ठाईसवें द्वापरका अन्तिम समय बीतता होगा, उस समय भारतवर्षके माथुर जनपदमें स्थित व्रजमण्डलके भीतर साक्षात् परिपूर्णतम भगवान् श्रीकृष्ण वृन्दावनमें गोवत्स चराते हुए विचरेंगे। उन्हीं दिनों तुम भगवान् श्रीकृष्णके हाथोंसे मृत्यु पाकर उनमें लीन हो जाओगे, जैसे हिरण्याक्ष आदि दैत्य भगवान् के प्रति वैरभाव रखनेपर भी उनके परमपदको प्राप्त हो गये हैं।'
इस प्रकार वकासुरके रूपमें परिणत हुआ उत्कल दैत्य जाजलिके वरदानसे भगवान् श्रीकृष्णमें लयको प्राप्त हुआ। सन्तोंके संगसे भला क्या नहीं सुलभ हो सकता ! [ गर्गसंहिता ]



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santonke sangase kya naheen sulabh ho sakataa!

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is prakaar vakaasurake roopamen parinat hua utkal daity jaajalike varadaanase bhagavaan shreekrishnamen layako praapt huaa. santonke sangase bhala kya naheen sulabh ho sakata ! [ gargasanhita ]

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