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श्रीरामरक्षास्तोत्रका चमत्कारिक फल

मैं वर्तमान समयमें एक शासकीय सेवानिवृत्त वरिष्ठ शिक्षक हूँ। इस समय मेरी आयु ७० वर्ष है। घटना वर्ष १९७० ई० की है। जब मैं कक्षा दसवींका, विज्ञान विषयका छात्र था। मैं माध्यमिक शिक्षामण्डल भोपालद्वारा आयोजित परीक्षामें १९६७-६८ एवं १९६८-६९में दो बार अनुत्तीर्ण रहा। दो बार अनुत्तीर्ण रहनेके कारण पढ़ाईसे मोह भंग हो गया। पिताजी उस समय शासकीय विद्यालय में संस्कृत भाषाके शिक्षक थे। पिताजीने मुझे उत्साह दिलाया। उनकी यथोचित प्रेरणासे मेरी पढ़ाईका क्रम पुनः जारी हुआ। पिताजी गीताप्रेस गोरखपुरसे प्रकाशित होनेवाली 'कल्याण' पत्रिकाके ४० वर्षसे नियमित पाठक थे। उन्होंने मुझे 'कल्याण'का 'रामांक' पढ़नेको दिया। उसमें रामरक्षास्तोत्र सिद्ध करनेकी विधि भी थी। संस्कृत शिक्षकका पुत्र होनेके नाते संस्कृतमें लिखे स्तोत्रको पढ़ने में कोई कठिनाई नहीं हुई। परिवारके सनातनी होनेके कारण ईश्वरके प्रति अटूट आस्था थी । मेरे मनमें विचार आया कि क्यों न इस रामरक्षास्तोत्रको सिद्ध किया जाय । श्रीरामजीकी प्रेरणा प्राप्त हुई और आश्विनमासके नवरात्रमें पवित्र मनसे भगवान् रामकी मूर्तिके समक्ष यथाविधि धूप, दीप, नैवेद्य एवं लाल गुलाबके पुष्पसे यथाशक्ति पूजा-अर्चनाकर शुद्ध मनसेरामरक्षास्तोत्रके नित्य प्रति ग्यारह पाठ करने लगा। अन्तिम अर्थात् नौवें दिन स्तोत्रके प्रत्येक श्लोकसे हवन किया। तत्पश्चात् रामरक्षास्तोत्र मेरी जीवनचर्याका अति आवश्यक अंग बन गया और मैं नित्य प्रति पाँच पाठ श्रद्धापूर्वक करने लगा १९७० की परीक्षामें उत्तर पुस्तिकाको लिखनेके पूर्व एक बार रामरक्षास्तोत्रका पाठ मन-ही-मन करता, उसके बाद उत्तर-पुस्तिकामें प्रश्नोंके उत्तर लिखता । जब जून १९७० में समाचार-पत्रमें परीक्षा-परिणाम प्रकाशित हुआ तो देखा कि मैं प्रथम श्रेणीमें, विशेष योग्यताके साथ उत्तीर्ण हुआ हूँ। खुशीका ठिकाना न रहा, बारम्बार प्रभु श्रीरामका स्मरण होता रहा। आज भी मैं दैनिक रूपसे रामरक्षास्तोत्रके पाँच पाठ करता हूँ। साथ ही यह कहनेमें अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कई रोगियोंपर मैंने इसका प्रयोग किया, जिसमें आशातीत सफलता प्राप्त हुई। इसी स्तोत्रका चमत्कारिक फल है कि सन् १९७३ ई० में शासकीय शिक्षककी नौकरी मिली।

श्रीरामकी कृपासे मुझे मानसिक बल और भगवत्सामर्थ्यकी अनुभूति हुई। मैं स्वयंके लिये एवं सम्पूर्ण परिवारके लिये इस स्तोत्रको 'रामबाण औषधि' मानता हूँ, जो कि इस भौतिकतावादी युगमें एक दुर्लभ उपलब्धि है।

[ पं० श्रीओमप्रकाशजी रावल ]



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shreeraamarakshaastotraka chamatkaarik phala

main vartamaan samayamen ek shaasakeey sevaanivritt varishth shikshak hoon. is samay meree aayu 70 varsh hai. ghatana varsh 1970 ee0 kee hai. jab main kaksha dasaveenka, vijnaan vishayaka chhaatr thaa. main maadhyamik shikshaamandal bhopaaladvaara aayojit pareekshaamen 1967-68 evan 1968-69men do baar anutteern rahaa. do baar anutteern rahaneke kaaran padha़aaeese moh bhang ho gayaa. pitaajee us samay shaasakeey vidyaalay men sanskrit bhaashaake shikshak the. pitaajeene mujhe utsaah dilaayaa. unakee yathochit preranaase meree padha़aaeeka kram punah jaaree huaa. pitaajee geetaapres gorakhapurase prakaashit honevaalee 'kalyaana' patrikaake 40 varshase niyamit paathak the. unhonne mujhe 'kalyaana'ka 'raamaanka' paढ़neko diyaa. usamen raamarakshaastotr siddh karanekee vidhi bhee thee. sanskrit shikshakaka putr honeke naate sanskritamen likhe stotrako padha़ne men koee kathinaaee naheen huee. parivaarake sanaatanee honeke kaaran eeshvarake prati atoot aastha thee . mere manamen vichaar aaya ki kyon n is raamarakshaastotrako siddh kiya jaay . shreeraamajeekee prerana praapt huee aur aashvinamaasake navaraatramen pavitr manase bhagavaan raamakee moortike samaksh yathaavidhi dhoop, deep, naivedy evan laal gulaabake pushpase yathaashakti poojaa-archanaakar shuddh manaseraamarakshaastotrake nity prati gyaarah paath karane lagaa. antim arthaat nauven din stotrake pratyek shlokase havan kiyaa. tatpashchaat raamarakshaastotr meree jeevanacharyaaka ati aavashyak ang ban gaya aur main nity prati paanch paath shraddhaapoorvak karane laga 1970 kee pareekshaamen uttar pustikaako likhaneke poorv ek baar raamarakshaastotraka paath mana-hee-man karata, usake baad uttara-pustikaamen prashnonke uttar likhata . jab joon 1970 men samaachaara-patramen pareekshaa-parinaam prakaashit hua to dekha ki main pratham shreneemen, vishesh yogyataake saath utteern hua hoon. khusheeka thikaana n raha, baarambaar prabhu shreeraamaka smaran hota rahaa. aaj bhee main dainik roopase raamarakshaastotrake paanch paath karata hoon. saath hee yah kahanemen atishayokti naheen hogee ki kaee rogiyonpar mainne isaka prayog kiya, jisamen aashaateet saphalata praapt huee. isee stotraka chamatkaarik phal hai ki san 1973 ee0 men shaasakeey shikshakakee naukaree milee.

shreeraamakee kripaase mujhe maanasik bal aur bhagavatsaamarthyakee anubhooti huee. main svayanke liye evan sampoorn parivaarake liye is stotrako 'raamabaan aushadhi' maanata hoon, jo ki is bhautikataavaadee yugamen ek durlabh upalabdhi hai.

[ pan0 shreeomaprakaashajee raaval ]

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