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श्रीरामजीकी कृपा

सन् १९८४ ई० की बात है। मेरे पिता जबलपुर में म०प्र० शिक्षा विभाग में संयुक्त संचालकके पदपर पदस्थ थे। हमने बचपनसे ही पिताजीको उठते-बैठते, रास्तेमें चलते रामनाम संकीर्तन करते देखा है। वे कोई भी काम करते हुए बड़े मनोयोगसे रामनामका संकीर्तन उच्चस्वरमें करते रहते थे।

उन्हें जब-तब मीटिंगके सिलसिलेमें जबलपुरसेभोपाल जाना होता था। एक बार रात्रिमें वे जबलपुरसेभोपालके लिये रवाना हुए, उनके साथ कार्यालयकेक्लर्क एवं ड्राइवर- ये दो व्यक्ति और थे। ड्राइवर जीपचला रहा था और वे रामनामका संकीर्तन कर रहे थे। रात्रिके १२ बजेका समय था, सड़क बिलकुल सुनसान थी। दूर-दूरतक कोई गाँव या बस्ती नहीं थी। पिताजी बताते हैं कि अचानक उनकी जीप पीछेकी ओर चलने लगी, ऐसी खिंचने लगी, जैसे कोई चुम्बकीय शक्ति गाड़ीको पीछे की ओर खींच रही है। पीछे होते होते गाड़ी सड़कसे नीचे आ गयी और किनारेपर बनी झाड़ियोंमें फँस गयी, उसकी दोनों लाइटें बन्द हो गय और गाड़ीका इंजन भी बन्द हो गया।

यह सब इतनी तेजीसे हुआ कि किसीकी कुछ समझमें ही नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है। इस झटकेमें पिताजीका चश्मा सड़कपर गिर गया। पिताजी नीचे उतरे, अँधेरेमें उन्होंने चश्मा टटोला औरसड़कपर आकर खड़े हो गये। ड्राइवरने गाड़ी चालू करनेकी बहुत कोशिश की, पर वह चालू नहीं हुई, न ही उसकी लाइट जली ।

तभी पिताजीको सामनेसे दो व्यक्ति फरसा लेकर आते दिखायी दिये, निर्जन स्थानमें एवं रात्रिके अन्धकारमें डरके मारे पिताजी पसीनेसे नहा गये। पास आकर बिना किसीसे कुछ बोले, वे दोनों तेजीसे उन झाड़ियोंको काटने लगे, जिनमें गाड़ी फँसी हुई थी। झाड़ियाँ कटते ही गाड़ीकी लाइट्स अपने आप जल उठीं एवं जीप स्वतः चालू होकर सड़कपर आकर खड़ी हो गयी।

पिताजीने शर्टकी जेबमें हाथ डाला, उसमें ५० रुपये थे, वे रुपये उन्होंने दोनों व्यक्तियोंको देना चाहा, पर दोनोंने वे रुपये लेनेसे इनकार करते हुए कहा, 'सर! आप पहले व्यक्ति हैं, जो इस घटनाके बाद यहाँसे जीवित जा रहे हैं। आगेसे आप कभी भी रात्रिके समय इस रास्तेपर यात्रा मत करना।' ऐसा कहकर वे दोनों अँधेरेमें गायब हो गये।

पिताजीने बताया कि उस स्थानके आगे-पीछे १५-२० कि०मी० तक दूर-दूरतक कोई गाँव या बस्ती नहीं थी, बिलकुल सुनसान जगह थी। पता नहीं वे ईश्वरके दूत कहाँसे आये एवं मेरी सहायताकर कहाँ चले गये। अवश्य ही वे स्वयं राम-लक्ष्मण ही थे, जो उस अन्धकारमय निर्जन स्थानपर किसी बलासे मेरा जीवन बचाने आये थे।

[ सुश्री अर्चनाजी नेमा ]



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shreeraamajeekee kripaa

san 1984 ee0 kee baat hai. mere pita jabalapur men ma0pra0 shiksha vibhaag men sanyukt sanchaalakake padapar padasth the. hamane bachapanase hee pitaajeeko uthate-baithate, raastemen chalate raamanaam sankeertan karate dekha hai. ve koee bhee kaam karate hue bada़e manoyogase raamanaamaka sankeertan uchchasvaramen karate rahate the.

unhen jaba-tab meetingake silasilemen jabalapurasebhopaal jaana hota thaa. ek baar raatrimen ve jabalapurasebhopaalake liye ravaana hue, unake saath kaaryaalayakeklark evan draaivara- ye do vyakti aur the. draaivar jeepachala raha tha aur ve raamanaamaka sankeertan kar rahe the. raatrike 12 bajeka samay tha, sada़k bilakul sunasaan thee. doora-dooratak koee gaanv ya bastee naheen thee. pitaajee bataate hain ki achaanak unakee jeep peechhekee or chalane lagee, aisee khinchane lagee, jaise koee chumbakeey shakti gaada़eeko peechhe kee or kheench rahee hai. peechhe hote hote gaada़ee sada़kase neeche a gayee aur kinaarepar banee jhaada़iyonmen phans gayee, usakee donon laaiten band ho gay aur gaada़eeka injan bhee band ho gayaa.

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tabhee pitaajeeko saamanese do vyakti pharasa lekar aate dikhaayee diye, nirjan sthaanamen evan raatrike andhakaaramen darake maare pitaajee paseenese naha gaye. paas aakar bina kiseese kuchh bole, ve donon tejeese un jhaada़iyonko kaatane lage, jinamen gaada़ee phansee huee thee. jhaada़iyaan katate hee gaada़eekee laaits apane aap jal utheen evan jeep svatah chaaloo hokar sada़kapar aakar khada़ee ho gayee.

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pitaajeene bataaya ki us sthaanake aage-peechhe 15-20 ki0mee0 tak doora-dooratak koee gaanv ya bastee naheen thee, bilakul sunasaan jagah thee. pata naheen ve eeshvarake doot kahaanse aaye evan meree sahaayataakar kahaan chale gaye. avashy hee ve svayan raama-lakshman hee the, jo us andhakaaramay nirjan sthaanapar kisee balaase mera jeevan bachaane aaye the.

[ sushree archanaajee nema ]

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