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श्रीगणेश स्तवनका प्रत्यक्ष फल — दरिद्रतानाश

पंचम वेद 'महाभारत' के लेखक श्रीगणपतिकी मंगलमयी लोला-कथाएँ अनेक पुराणादि सद्ग्रन्थोंमें वर्णित हैं किंतु मैं यहाँपर एक आधुनिक समयकी घटनाका उल्लेख कर रहा हूँ।

सन् १९५६ ई० की बात है। तीन-चार पीढ़ियोंसे दरिद्रताका कष्ट भोगता हुआ एक गृहस्थ परिवार व्याकुल हो गया था। दरिद्रतानिवारणके लिये उसके द्वारा किये गये सारे उपाय और श्रम निष्फल हो चुके थे। एक दिन उस परिवारके एक सदस्य मेरे श्रीदादागुरु (ब्रह्मलीन श्रीमहंत श्री १०८ स्वामी अमरदासजी उदासीन) के पास आकर अपना दुःख सुनाते हुए रो पड़े 'महाराजजी हमने जी-तोड़ परिश्रम ही नहीं किया, सब उपाय करके थक गये, किंतु समझमें नहीं आता कि हम किस देवताकी अवज्ञासे इतने कष्ट झेल रहे हैं?'

श्रीगुरुजी महाराजने मुसकराकर कहा — 'बेटा! अब सब ठीक हो जायगा।'

इतना सुनते ही उक्त सज्जनके हृदयमें मानो प्रसन्नताके मारे बिजली दौड़ गयी। वे बोल उठे-'सच ?'

श्रीस्वामीजीने उत्तर दिया- 'हाँ, सच पर तुम्हें एक काम करना होगा।'

उक्त सज्जनने तुरंत कहा—'बाबा! आप जो कुछ कहेंगे, हम सब करनेके लिये तैयार हैं। हमें चाहे कितना भी कष्ट हो, पर हम आपकी आज्ञाका अक्षरशः पालन करेंगे।'

श्रीस्वामीजीने कहा-'तो सुनो। अभी भाद्रमासके शुक्लपक्षकी श्रीगणेश-चतुर्थी आ रही है। उस दिनसे प्रारम्भकर दूसरे वर्षकी श्रीगणेश-चतुर्थीतक- पूरे बारह मास प्रतिदिन प्रातःकाल स्नानके पश्चात् एक धोती और उत्तरीय धारण करके किसी एकान्त कक्षमें पवित्र आसनपर बैठ जाओ और फिर श्रीगणेशजीका ध्यान करते हुए १०८ दानोंवाली मालासे (श्रीस्वामीजी महाराजने उन्हें चन्दनकी माला दी थी) सात बार भक्तिमूर्ति श्रीगोस्वामी तुलसीदासजी महाराजद्वारा विरचित इस स्तोत्रका जप किया करो— '

गाइये गनपति जगवंदन

संकर सुवन भवानी-नंदन ॥

सिद्धि-सदन, गज-बदन, बिनायक

कृपा-सिंधु, सुंदर, सब-लायक ॥

मोदक-प्रिय, मुद-मंगल-दाता।

बिद्याबारिधि, बुद्धि-विधाता ।।

माँगत तुलसिदास कर जोरे

बसहिं रामसिय मानस मोरे ॥

यह स्तोत्र लगभग दस सेकंडमें पूर्ण होता है। और इस प्रकार २० मिनटमें एक मालाका जप हो जाता है। सात मालामें प्रतिदिन ७५६ बार जप होता है, जो एक वर्षमें करीब ढाई लाख हो जाता है।'

उक्त सज्जनने अत्यन्त श्रद्धा एवं प्रीतिपूर्वक भाद्रपद शुक्ल श्रीगणेश-चतुर्थीसे दूसरे वर्षकी श्रीगणेश-चतुर्थीतक उक्त स्तोत्रका विधिवत् जप किया। श्रीगजाननकी असीम कृपासे वह दरिद्री कुटुम्ब धीरे-धीरे सम्पन्न होता गया और इस समय उसकी आर्थिक, सामाजिक और नैतिक स्थिति सराहनीय है।

उक्त सज्जन अब तो भाद्रपद शुक्लकी श्रीगणेश चतुर्थीका व्रत-पूजन श्रद्धा और विश्वासपूर्वक ब्राह्मणके द्वारा कराया ही करते हैं और प्रत्येक मासकी कृष्ण पक्षकी श्रीगणेश चतुर्थीके व्रतका पालन भी करते हैं। जो भी सज्जन उपर्युक्त विधिसे श्रीगोस्वामी तुलसीदासविरचित स्तोत्रका विधिवत् जप करेंगे, अवश्य ही उनकी समस्त दरिद्रता और रोगादि नष्ट होंगे और वे विघ्न विनाशन, मंगल मूर्ति, सिद्धि-सदन श्रीगणपतिजीकी कृपासे सुखपूर्ण एवं आनन्द-मंगलमय जीवन व्यतीत करेंगे।



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shreeganesh stavanaka pratyaksh phal — daridrataanaasha

pancham ved 'mahaabhaarata' ke lekhak shreeganapatikee mangalamayee lolaa-kathaaen anek puraanaadi sadgranthonmen varnit hain kintu main yahaanpar ek aadhunik samayakee ghatanaaka ullekh kar raha hoon.

san 1956 ee0 kee baat hai. teena-chaar peedha़iyonse daridrataaka kasht bhogata hua ek grihasth parivaar vyaakul ho gaya thaa. daridrataanivaaranake liye usake dvaara kiye gaye saare upaay aur shram nishphal ho chuke the. ek din us parivaarake ek sadasy mere shreedaadaaguru (brahmaleen shreemahant shree 108 svaamee amaradaasajee udaaseena) ke paas aakar apana duhkh sunaate hue ro pada़e 'mahaaraajajee hamane jee-toड़ parishram hee naheen kiya, sab upaay karake thak gaye, kintu samajhamen naheen aata ki ham kis devataakee avajnaase itane kasht jhel rahe hain?'

shreegurujee mahaaraajane musakaraakar kaha — 'betaa! ab sab theek ho jaayagaa.'

itana sunate hee ukt sajjanake hridayamen maano prasannataake maare bijalee dauda़ gayee. ve bol uthe-'sach ?'

shreesvaameejeene uttar diyaa- 'haan, sach par tumhen ek kaam karana hogaa.'

ukt sajjanane turant kahaa—'baabaa! aap jo kuchh kahenge, ham sab karaneke liye taiyaar hain. hamen chaahe kitana bhee kasht ho, par ham aapakee aajnaaka aksharashah paalan karenge.'

shreesvaameejeene kahaa-'to suno. abhee bhaadramaasake shuklapakshakee shreeganesha-chaturthee a rahee hai. us dinase praarambhakar doosare varshakee shreeganesha-chaturtheetaka- poore baarah maas pratidin praatahkaal snaanake pashchaat ek dhotee aur uttareey dhaaran karake kisee ekaant kakshamen pavitr aasanapar baith jaao aur phir shreeganeshajeeka dhyaan karate hue 108 daanonvaalee maalaase (shreesvaameejee mahaaraajane unhen chandanakee maala dee thee) saat baar bhaktimoorti shreegosvaamee tulaseedaasajee mahaaraajadvaara virachit is stotraka jap kiya karo— '

gaaiye ganapati jagavandana

sankar suvan bhavaanee-nandan ..

siddhi-sadan, gaja-badan, binaayaka

kripaa-sindhu, sundar, saba-laayak ..

modaka-priy, muda-mangala-daataa.

bidyaabaaridhi, buddhi-vidhaata ..

maangat tulasidaas kar jore

basahin raamasiy maanas more ..

yah stotr lagabhag das sekandamen poorn hota hai. aur is prakaar 20 minatamen ek maalaaka jap ho jaata hai. saat maalaamen pratidin 756 baar jap hota hai, jo ek varshamen kareeb dhaaee laakh ho jaata hai.'

ukt sajjanane atyant shraddha evan preetipoorvak bhaadrapad shukl shreeganesha-chaturtheese doosare varshakee shreeganesha-chaturtheetak ukt stotraka vidhivat jap kiyaa. shreegajaananakee aseem kripaase vah daridree kutumb dheere-dheere sampann hota gaya aur is samay usakee aarthik, saamaajik aur naitik sthiti saraahaneey hai.

ukt sajjan ab to bhaadrapad shuklakee shreeganesh chaturtheeka vrata-poojan shraddha aur vishvaasapoorvak braahmanake dvaara karaaya hee karate hain aur pratyek maasakee krishn pakshakee shreeganesh chaturtheeke vrataka paalan bhee karate hain. jo bhee sajjan uparyukt vidhise shreegosvaamee tulaseedaasavirachit stotraka vidhivat jap karenge, avashy hee unakee samast daridrata aur rogaadi nasht honge aur ve vighn vinaashan, mangal moorti, siddhi-sadan shreeganapatijeekee kripaase sukhapoorn evan aananda-mangalamay jeevan vyateet karenge.

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