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शिवकृपासे जीवन बचा

यह घटना करीब ७० वर्ष पुरानी है। एक बार मैं रातमें अजमेरसे अपने गाँव मझवेला (कडैल) जा रहा था। उन दिनों यातायातकी सुविधा न होनेसे पैदल ही आना-जाना होता था। मार्गमें पड़नेवाले 'बूढ़ा पुष्कर' नामक स्थानसे पश्चिमकी ओर एक गहरा सूखा नाला था, जो कि आज भी है। मैं उसीके पासकी पगडण्डीसे जा रहा था। तभी समीपकी पहाड़ीसे कूदकर दो लुटेरे मेरे पास आये और मुझसे बोले—'तुम्हारे पास जो कुछ भी है, उसे दे दो, वरना हम तुम्हें मार डालेंगे।' यह कहकर जो कुछ मेरे पास था, उसे लेकर वे चम्पत हो गये। मैं भयवश अपने गाँव न जाकर, वहीं पासके गाँवमें एक परिचितके यहाँ ठहर गया।

कुछ दिन बाद मैं पुन: उसी समय अजमेरसे अपने घर लौट रहा था। नालेके पास पहुँचनेपर मुझे पहलेवाली
घटनाका स्मरण हो आया और भयवश मैं एक अन्य गाँवकी ओर मुड़ गया। वहाँ मेरा कोई परिचय नहीं था, इसलिये मैंने पहाड़ीके उस पार स्थित बैजनाथ मन्दिरमें रुकनेका निश्चय किया। मार्गमें लोगोंसे मैंने मन्दिर जानेका रास्ता पूछा तो उन्होंने एक पगडण्डी बतलायी, मैं उसीसे चलने लगा। अँधेरेके कारण मुझे ठीकसे रास्ता भी नहीं सूझ रहा था। मनमें आशंका एवं भयका भाव था। भगवान्का नाम लेता हुआ मैं चल रहा था, एकाएक लगा कि मैं गलत रास्तेपर आ गया हूँ। सामने ही एक टीला था, मैंने सोचा कि चलनेसे अच्छा है कि इसी टीलेपर रात बितायी जाय। मैं वहीं रुक गया और व्यथित चित्तसे भगवान्का स्मरण करने लगा। इतनेमें ही एक आदमीने आकर मुझसे कहा- 'तुम कौन हो और कहाँ जाना चाहते हो ?' मैंने अपना नाम-पता बताया और बैजनाथ मन्दिर जानेका कारण भी बता दिया। तत्पश्चात् मैंने भी उस आदमीसे उसका नाम-पता और रातमें वहाँ आनेका उद्देश्य पूछा। उसने कहा कि मैं पासके ही गाँवका रहनेवाला एक चरवाहा पशुपति हूँ और इन पहाड़ियोंमें बकरी चराया करता हूँ। आज मेरी एक बकरी खो गयी थी, उसीको खोजने आया हूँ। बकरी तो अभीतक नहीं मिल सकी, चलो ! पहले तुमको ही बैजनाथ मन्दिरतक पहुँचा दूँ।' यह कहकर उसने मेरा हाथ पकड़ा और थोड़ी ही देरमें बैजनाथ मन्दिरके पास ले आया। वहाँ उसने मन्दिरमें जल रहे दीपकको | दिखाकर मुझे जानेके लिये कहा और स्वयं पीछेकी ओर लौट पड़ा।

मैं मन्दिर पहुँच गया। वहाँ रहनेवाले सन्तजी मेरे पूर्व परिचित थे। मैंने उन्हें प्रणाम किया और आद्योपान्त सारी बात उनको बतलायी। घटना सुनकर सन्तजी भाव विभोर हो उठे और बोले- 'तुम बड़े भाग्यशाली हो । वह कोई बकरी चरानेवाला नहीं था, वे तो साक्षात् पशुपति शंकरजी ही थे। उन्होंने ही चरवाहेके रूपमें तुम्हारी मदद की है। ऐसी ही दो और घटनाएँ यहाँ पहले भी हो चुकी हैं।'

दूसरे दिन जब मैं घरकी ओर चला तो उस स्थानकी भयावहता और मार्गकी दुर्गमताको देखकर काँप उठा। मैंने आस-पासके गाँवोंमें पता किया, किंतु न तो उस चरवाहेका ही पता लगा और न ऐसी घटनाकी सम्भावना ही किसीने की।

भगवान्‌के उस असामान्य अनुग्रहका स्मरणकर | आज भी मेरा मन पुलकित हो उठता है और उन दीनबन्धु शिवजीके चरणोंमें मैं नतमस्तक हो जाता हूँ। नमः शिवाय ! नमः शिवाय ! नमः शिवाय !

[ श्रीलादूसिंहजी राजपुरोहित ]



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shivakripaase jeevan bachaa

yah ghatana kareeb 70 varsh puraanee hai. ek baar main raatamen ajamerase apane gaanv majhavela (kadaila) ja raha thaa. un dinon yaataayaatakee suvidha n honese paidal hee aanaa-jaana hota thaa. maargamen pada़nevaale 'boodha़a pushkara' naamak sthaanase pashchimakee or ek gahara sookha naala tha, jo ki aaj bhee hai. main useeke paasakee pagadandeese ja raha thaa. tabhee sameepakee pahaada़eese koodakar do lutere mere paas aaye aur mujhase bole—'tumhaare paas jo kuchh bhee hai, use de do, varana ham tumhen maar daalenge.' yah kahakar jo kuchh mere paas tha, use lekar ve champat ho gaye. main bhayavash apane gaanv n jaakar, vaheen paasake gaanvamen ek parichitake yahaan thahar gayaa.

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doosare din jab main gharakee or chala to us sthaanakee bhayaavahata aur maargakee durgamataako dekhakar kaanp uthaa. mainne aasa-paasake gaanvonmen pata kiya, kintu n to us charavaaheka hee pata laga aur n aisee ghatanaakee sambhaavana hee kiseene kee.

bhagavaan‌ke us asaamaany anugrahaka smaranakar | aaj bhee mera man pulakit ho uthata hai aur un deenabandhu shivajeeke charanonmen main natamastak ho jaata hoon. namah shivaay ! namah shivaay ! namah shivaay !

[ shreelaadoosinhajee raajapurohit ]

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