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शिव कृपा

यह घटना उस समयकी है, जब मैं चार-पाँच वर्षका था। हमारा घर मठरानीपुर, जिला झाँसीमें है। मेरे पिताजी उस समय हाथरसमें आढ़तका कारोबार करते थे। वहीं हमारे वंशके एक वृद्ध भी कुछ रोजगार करते थे। वे दूरके रिश्तेसे मेरे पिताजीके चाचा लगते थे। उनके स्त्री या कोई सन्तान न थी। जब वे बुढ़ापेके कारण दुर्बल होने लगे तो मेरे पिताजी उनको मउरानीपुर लिवा लाये।

ये बड़े ही भक्त पुरुष थे। प्रतिदिन सबेरे उठकर स्नानादिके बाद पाठ-पूजनमें ही दोपहरके बारह बजा देते। हम लोग इन्हें बड़े बब्बाजी कहते थे। बड़े बब्बाजी सदा एक माला लिये रहते थे और जब भी अवकाश मिलता, उसे फेरते रहते थे।

उनके गुणोंसे प्रभावित होकर घरके सब लोग उनका बड़ा आदर करने लगे। वे भी निःसंकोच घरवालोंकी भाँति ही रहने लगे। उन्होंने अपने संचित धनमेंसे ही एक शिवजीका मन्दिर बनवाया। इसके कुछ समय बाद बब्बाजी दृष्टिहीन हो गये। इन्हें पाठ आदि सब छोड़ना पड़ा। अब भी ये यथापूर्व प्रातः स्नानादि करते और किसीको अपनी लाठीका एक सिरा पकड़ाकर आगे करते और दूसरा सिरा स्वयं पकड़कर शिवालयको जाते और वहाँ बैठे-बैठे भक्तिपूर्वक भजन स्तुति आदि करते रहते। भोजन के समय हमारी माँ उन्हें बुलवा भेजतीं। तब वे आकर भोजन करते। शामको भी प्राय: शिवालयमें ही चले जाते। बड़े बब्बाजी कभी अप्रसन्न नहीं होते, किंतु उनको एकमात्र यही दुःख था कि वे दृष्टिहीन होनेके कारण न तो पाठादि कर सकते और न शिव दर्शन हो।

इस प्रकार दो-तीन वर्ष बीत गये। एक बार मैं उनको शिवालयसे लिया ला रहा था कि रास्ते में एक विशालकाय पुरुष मिले। उन्होंने मुझसे पूछा- 'बूढ़ेको कहाँ लिये जा रहे हो ?' मैं डरके कारण चुप रहा। मेरे बब्बाजीने कहा-'यह मेरा नाती है, मुझे घर लिवाये जा रहा है।' नये सज्जनने फिर पूछा-'यह लाठी क्योंपकड़े है?' बब्बाजीने उत्तर दिया- मुझे दिखायी नहीं देता।' उन्होंने फिर पूछा—'तुम कहाँ गये थे ?' बब्बाजीने कहा- 'शिवालय में।' उन्होंने कुछ परिहास करते हुए कहा- 'जब तुम अन्धे हो तो तुमने शिवालयमें क्या देखा? वहाँ काहेको गये थे ?' बब्बाजीने तुरंत कहा 'मैंने कुछ नहीं देखा—यह मेरा अभाग्य है, पर शिवजीने तो देख लिया कि मैं उनकी शरणमें आया हूँ।'

तब उस पुरुषने नरमी से कहा-'आँखें दिखलाओ तो, क्या रोग है ?' बब्बाने अपनी आँखें उन्हें दिखला दीं। उन सज्जनने कहा कि आँखें तो बननेलायक हैं' और बब्बाजीके पूछने पर यह भी कहा कि वे आँखें बनाना जानते हैं इसपर बब्बाजीने कहा कि 'बिना लड़के और बहूकी सलाहके मैं आँखें नहीं बनवा सकता।' तब उन सज्जनने कहा कि 'ठीक है। मैं तो इस समय तुम्हारी आँखोंमें दवा लगा दूँगा। दो दिन बाद आऊँगा, तब पट्टी खोलूँगा और जो तुम्हारे 'लड़का बहू' की राय होगी तो आँखें बना दूंगा।' बब्बाजी इसपर राजी हो गये। उन सज्जनने बाकी आँख कुछ लगाकर पट्टी बाँध दी, फिर चले गये।

बब्बाजीने यह वृत्तान्त मेरी माताजी से कहा। पिताजी भी उन दिनों घरपर ही थे। सबकी सलाह हुई कि आँखें बनवा लेनी चाहिये। उन सबनके बतलाये हुए दिन सबैसे ही उनकी प्रतीक्षा होने लगी। सब लोग घरमें हो रहे, पर कोई न आया। दूसरा दिन भी यों ही निकल गया। संध्या समय मेरे बब्बाजीसे न रहा गया, उन्होंने मेरी माँक सामने पट्टी उतारकर फेंक दी। पट्टी खोलते ही वे चिल्ला उठे-बहूजी, बहूजी! मुझे खूब दिखायी पड़ता है।' बच्चाजीकी आँखों आँसू बह रहे थे। वे बार-बार यही कहते थे, 'मेरे शिवजी मेरी आँखें बना गये हैं।'

दूसरे दिनसे ही बब्बाजी फिर अपने पाठादिमें पूर्ववत् लग गये और मरते समयतक उन्हें आँखका कोई कष्ट नहीं हुआ। [श्रीलक्ष्मीनारायणी]



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shiv kripaa

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ye bada़e hee bhakt purush the. pratidin sabere uthakar snaanaadike baad paatha-poojanamen hee dopaharake baarah baja dete. ham log inhen bada़e babbaajee kahate the. bada़e babbaajee sada ek maala liye rahate the aur jab bhee avakaash milata, use pherate rahate the.

unake gunonse prabhaavit hokar gharake sab log unaka bada़a aadar karane lage. ve bhee nihsankoch gharavaalonkee bhaanti hee rahane lage. unhonne apane sanchit dhanamense hee ek shivajeeka mandir banavaayaa. isake kuchh samay baad babbaajee drishtiheen ho gaye. inhen paath aadi sab chhoda़na pada़aa. ab bhee ye yathaapoorv praatah snaanaadi karate aur kiseeko apanee laatheeka ek sira pakada़aakar aage karate aur doosara sira svayan pakada़kar shivaalayako jaate aur vahaan baithe-baithe bhaktipoorvak bhajan stuti aadi karate rahate. bhojan ke samay hamaaree maan unhen bulava bhejateen. tab ve aakar bhojan karate. shaamako bhee praaya: shivaalayamen hee chale jaate. bada़e babbaajee kabhee aprasann naheen hote, kintu unako ekamaatr yahee duhkh tha ki ve drishtiheen honeke kaaran n to paathaadi kar sakate aur n shiv darshan ho.

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doosare dinase hee babbaajee phir apane paathaadimen poorvavat lag gaye aur marate samayatak unhen aankhaka koee kasht naheen huaa. [shreelakshmeenaaraayanee]

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