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मानस मन्त्र-जपसे कार्यसिद्धि और रोग-नाश

मैं नीचे जो घटना लिख रहा हूँ, वह अक्षरशः है । सन् १९५० ई० की बात है। मैं हाईस्कूलकी सत्य परीक्षा पास कर चुका था। परंतु नौकरी कहीं नहीं मिली थी। तब मैं एक पण्डितजीके घरपर रहता था और अपनी पहाड़ी भाषामें उन्हें 'वडवाज्यू' कहा करता था। अब भी कहा करता हूँ। मैं उद्विग्न-सा उनके सामने बैठा था और अनमने मनसे कालाचाँद गीताको शुद्धिपत्रसे शुद्ध कर रहा था। सहसा वे बोल उठे। उन्होंने कहा भैया ! नौकरी न मिली तो क्या हुआ, देख (उन्होंने मासिक 'कल्याण' की प्रति उठाकर दिखाया ) इस मन्त्रका प्रातः-सायं जप किया कर, तुझे अवश्य रोटीका आश्रय मिलेगा। मन्त्र था

बिस्व भरन पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई ॥ मैं प्रातः तथा सायंकाल बतायी हुई विधिके अनुसार मन्त्रोच्चारण करने लगा और सचमुच तीसरे दिन मुझे नौकरी मिल गयी। तीन मास बीत चुके थे। मैं जिनके स्थानपर काम कर रहा था, वे वापस आ गये । पुनः मेँ अलग हो गया। तदुपरान्त मैं इस मन्त्रका जप करता हुआ बड़े पदाधिकारीके सम्मुख उपस्थित हुआ । उसी क्षण उन्होंने मुझे उसी स्थानपर काम करनेकी अनुमति दे दी। उसी मन्त्रके आश्रयपर मैं आज भी उसी स्थानपर नियुक्त हूँ और आशा है नियुक्त रहूँगा। तबसे मुझे रामायणकी प्रत्येक पंक्तिपर अकाट्य विश्वास है। मेरा विश्वास है कि यदि बालक बालकपनसे ही नित्य इस मन्त्रका विश्वासपूर्वक जप करता रहे तो उसे हमेशा सफलता प्राप्त होगी।

इसी प्रकार उक्त महानुभावने दूसरा मन्त्र भी बताया था, जो इस प्रकार है

दैहिक दैविक भौतिक तापा । रामराज नहिं काहुहि व्यापा । मैं चौथे-पाँचवें दिन ज्वर आदि व्याधियोंका शिकार हुआ करता था, परंतु अब तराई भावरका पानी पी चुका हूँ, परंतु मुझे इस मन्त्रके प्रभावसे छींक भी नहीं आती है। दुर्बल तथा बीमार बच्चोंके तथा सभीके लिये यह मन्त्र रामबाण है।

सन् १९५२ ई० की घटना है। कदाचित् सावन या भादोंका महीना था। हमारे गाँवके एक बूढ़े व्यक्ति हमारे घर आये। वे नौकरीकी तलाशमें थे। वे किसी पाठशालाके निरीक्षकके पास गये, नौकरीकी उनसे याचना की, परंतु बूढ़े होनेके कारण उनको निराश लौटना पड़ा। वे दुखी होकर घर आये, मुझसे रामायण माँगी और

मोसम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुबीर।

अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर ॥

इसको दुहरा-दुहराकर रोने लगे। रातभर इसे पढ़—

पढ़कर रोते रहे, दूसरे दिन विश्वासी गरीबोंकी सुधि लेनेवाले भगवान्‌की कृपासे उन्हीं निरीक्षक महोदयका संवाद-वाहक आया और पत्र दे गया, जिसमें उन वृद्ध पुरुषको उसी स्थानपर नियुक्त किये जानेका आदेश था।

मेरा विश्वास है कि इन मन्त्रोंके उच्चारणसे जीवन
निर्विघ्न और सुखपूर्ण हो सकता है।

[ एक सज्जन ]



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maanas mantra-japase kaaryasiddhi aur roga-naasha

main neeche jo ghatana likh raha hoon, vah aksharashah hai . san 1950 ee0 kee baat hai. main haaeeskoolakee saty pareeksha paas kar chuka thaa. parantu naukaree kaheen naheen milee thee. tab main ek panditajeeke gharapar rahata tha aur apanee pahaada़ee bhaashaamen unhen 'vadavaajyoo' kaha karata thaa. ab bhee kaha karata hoon. main udvigna-sa unake saamane baitha tha aur anamane manase kaalaachaand geetaako shuddhipatrase shuddh kar raha thaa. sahasa ve bol uthe. unhonne kaha bhaiya ! naukaree n milee to kya hua, dekh (unhonne maasik 'kalyaana' kee prati uthaakar dikhaaya ) is mantraka praatah-saayan jap kiya kar, tujhe avashy roteeka aashray milegaa. mantr thaa

bisv bharan poshan kar joee. taakar naam bharat as hoee .. main praatah tatha saayankaal bataayee huee vidhike anusaar mantrochchaaran karane laga aur sachamuch teesare din mujhe naukaree mil gayee. teen maas beet chuke the. main jinake sthaanapar kaam kar raha tha, ve vaapas a gaye . punah men alag ho gayaa. taduparaant main is mantraka jap karata hua bada़e padaadhikaareeke sammukh upasthit hua . usee kshan unhonne mujhe usee sthaanapar kaam karanekee anumati de dee. usee mantrake aashrayapar main aaj bhee usee sthaanapar niyukt hoon aur aasha hai niyukt rahoongaa. tabase mujhe raamaayanakee pratyek panktipar akaaty vishvaas hai. mera vishvaas hai ki yadi baalak baalakapanase hee nity is mantraka vishvaasapoorvak jap karata rahe to use hamesha saphalata praapt hogee.

isee prakaar ukt mahaanubhaavane doosara mantr bhee bataaya tha, jo is prakaar hai

daihik daivik bhautik taapa . raamaraaj nahin kaahuhi vyaapa . main chauthe-paanchaven din jvar aadi vyaadhiyonka shikaar hua karata tha, parantu ab taraaee bhaavaraka paanee pee chuka hoon, parantu mujhe is mantrake prabhaavase chheenk bhee naheen aatee hai. durbal tatha beemaar bachchonke tatha sabheeke liye yah mantr raamabaan hai.

san 1952 ee0 kee ghatana hai. kadaachit saavan ya bhaadonka maheena thaa. hamaare gaanvake ek boodha़e vyakti hamaare ghar aaye. ve naukareekee talaashamen the. ve kisee paathashaalaake nireekshakake paas gaye, naukareekee unase yaachana kee, parantu boodha़e honeke kaaran unako niraash lautana pada़aa. ve dukhee hokar ghar aaye, mujhase raamaayan maangee aura

mosam deen n deen hit tumh samaan raghubeera.

as bichaari raghubans mani harahu bisham bhav bheer ..

isako duharaa-duharaakar rone lage. raatabhar ise padha़—

padha़kar rote rahe, doosare din vishvaasee gareebonkee sudhi lenevaale bhagavaan‌kee kripaase unheen nireekshak mahodayaka sanvaada-vaahak aaya aur patr de gaya, jisamen un vriddh purushako usee sthaanapar niyukt kiye jaaneka aadesh thaa.

mera vishvaas hai ki in mantronke uchchaaranase jeevana
nirvighn aur sukhapoorn ho sakata hai.

[ ek sajjan ]

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