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माँकी इच्छा और अर्थाभावमें कृपानुभूति

उत्तरप्रदेशके बरेली जिलेके ग्राम डहिया स्थित हमारे प्राथमिक विद्यालयमें एक बार एक प्लम्बर कार्य करनेके लिये आया, उसका नाम ओमप्रकाश था। वह निकटके ही ग्राम खानपुरका निवासी था। उसने वार्ताके क्रममें अपने जीवनकी एक ऐसी मार्मिक घटना हमें सुनायी, जिसमें उसे ईश्वरकृपाकी प्रत्यक्ष अनुभूति हुई उस घटनाको उसीके भावानुसार यहाँ दिया जा रहा है

'एक समय ऐसा था, जब मेरा काम अच्छा चलता था, लेकिन बादमें बहुत हलका हो गया। घरमें तंगी रहने लगी। मेरी माँ वैसे तो मुझसे कभी कुछ नहीं माँगती थी, लेकिन एक बार जब मैं शामको घर लौटा तो मेरी माँने मुझसे खानेको रोटी माँगी। उस समय मैं बता नहीं सकता कि मेरे दिल पर क्या बीती; क्योंकि उस समय मेरी जेब में कुछ नहीं था। मेरी आँखें नम हो गयीं, लेकिन मैंने माँसे कुछ नहीं कहा और घरसे निकल आया।

मैं बहुत उदास होकर सड़कके किनारे खड़ा था। तभी वहाँसे एक बारात निकल रही थी। उसमें पैसे लुटाये जा रहे थे। मैंने अपनी जिन्दगीमें कभी भी बारातमें लुटाये जानेवाले पैसे नहीं उठाये थे। उस दिन मैं पशोपेशमें था और पैसे लूटने नहीं जाना चाहता था। तभी भगवान्की ऐसी कृपा हुई, जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। बहुत सारे नोट मेरे ठीक आगे आकर गिरे। अब मुझसे रहा नहीं गया और मैंने भगवान्‌का कृपाप्रसाद मानकर वे नोट उठा लिये। मैंने उन्हें जब गिना तो पूरे ६०० रुपये थे। भगवान्‌की कृपासे मेरी चिन्ता समाप्त हो चुकी थी, मेरे नेत्रोंमें प्रेमके आँसू थे। मेरा रोम-रोम भगवान्‌की कृपाकी अनुभूति कर रहा था । '

भगवान् कब कहाँ किस रूपमें कृपा कर देते हैं, किस तरहसे उलझन सुलझा देते हैं, उसके जीवनकी यह घटना इसकी सच्ची गवाह है।

[ श्रीप्रशान्तजी अग्रवाल ]



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maankee ichchha aur arthaabhaavamen kripaanubhooti

uttarapradeshake barelee jileke graam dahiya sthit hamaare praathamik vidyaalayamen ek baar ek plambar kaary karaneke liye aaya, usaka naam omaprakaash thaa. vah nikatake hee graam khaanapuraka nivaasee thaa. usane vaartaake kramamen apane jeevanakee ek aisee maarmik ghatana hamen sunaayee, jisamen use eeshvarakripaakee pratyaksh anubhooti huee us ghatanaako useeke bhaavaanusaar yahaan diya ja raha hai

'ek samay aisa tha, jab mera kaam achchha chalata tha, lekin baadamen bahut halaka ho gayaa. gharamen tangee rahane lagee. meree maan vaise to mujhase kabhee kuchh naheen maangatee thee, lekin ek baar jab main shaamako ghar lauta to meree maanne mujhase khaaneko rotee maangee. us samay main bata naheen sakata ki mere dil par kya beetee; kyonki us samay meree jeb men kuchh naheen thaa. meree aankhen nam ho gayeen, lekin mainne maanse kuchh naheen kaha aur gharase nikal aayaa.

main bahut udaas hokar sada़kake kinaare khada़a thaa. tabhee vahaanse ek baaraat nikal rahee thee. usamen paise lutaaye ja rahe the. mainne apanee jindageemen kabhee bhee baaraatamen lutaaye jaanevaale paise naheen uthaaye the. us din main pashopeshamen tha aur paise lootane naheen jaana chaahata thaa. tabhee bhagavaankee aisee kripa huee, jisakee mainne kalpana bhee naheen kee thee. bahut saare not mere theek aage aakar gire. ab mujhase raha naheen gaya aur mainne bhagavaan‌ka kripaaprasaad maanakar ve not utha liye. mainne unhen jab gina to poore 600 rupaye the. bhagavaan‌kee kripaase meree chinta samaapt ho chukee thee, mere netronmen premake aansoo the. mera roma-rom bhagavaan‌kee kripaakee anubhooti kar raha tha . '

bhagavaan kab kahaan kis roopamen kripa kar dete hain, kis tarahase ulajhan sulajha dete hain, usake jeevanakee yah ghatana isakee sachchee gavaah hai.

[ shreeprashaantajee agravaal ]

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