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महौषधि - रामनाम

बनारस जिलेमें जगज्जननी जाह्नवीके पुनीत तटपर बूढ़ेपुर नामक एक गाँव है। पहले इसे बुद्धपुर कहा जाता था। यहाँपर शिवकुमार उपाध्याय नामक एक सज्जन रहा करते थे।

एक बार ये अचानक बीमार पड़ गये। स्वास्थ्य उत्तरोत्तर गिरता गया। एक वर्षमें इनका शरीर पीला हो गया। आँखें गड्डे में धँस गयीं। अस्थियाँ बाहर निकल आयीं। इनकी वृद्धा माताका तो सर्वस्व लुटने जा रहा था। वे दिनभर रोतीं और जिस किसीसे तनिक भी सहानुभूति पात, उसके पैरोंपर गिरनेके लिये प्रस्तुत हो हो। जातीं। अपना सर्वस्व देकर प्राणप्रिय पुत्रकी प्राण-रक्षाके लिये वे बेचैन थीं। चिकित्सा विशेष सावधानीसे आरम्भ हुई, पर कोई लाभ नहीं हो सका। पूरे दो वर्ष निकल गये। अब पीले चर्मसे आवृत अस्थिपंजरके अतिरिक्त उनकी कायामें कुछ नहीं रह गया।

चिकित्साके लिये उन्हें काशी ले जाया गया, पर चार मास बाद वहाँसे भी निराश होकर लौट आना पड़ा। अब उनके लिये तिथि गिनी जा रही थी। किसीके मनमें यह कल्पना भी नहीं उदित हो रही थी कि एक-डेढ़ मासके बाद भी वे इस धराधामपर दीख सकेंगे।

मेरा घर उनके गाँवमें ही था। एक दिन मैं रामायणका पाठ कर रहा था। 'धम्म' की ध्वनि सुनी। तो देहरीकी ओर देखने लगा। शिवकुमारकी माँ गिर पड़ी थीं। कदाचित् मुझसे कुछ कहने आयी थीं उनका दुःख मुझसे देखा नहीं जाता था। मैं सिहर गया और उनके पुत्रके कल्याणके लिये भगवान्से प्रार्थना करनेलगा। वृद्धाने बताया कि 'शिवकुमारके चाचासे वैधने बिलकुल निराशा प्रकट कर दी है।' मैंने कहा 'चिन्ता नहीं करनी चाहिये, भगवान्की शक्तिका पार नहीं। वे पानीसे पिण्ड सँवारते हैं, उनसे प्रार्थना कीजिये।'

पाठसे उठकर मैं सीधे शिवकुमारके यहाँ गया, उनकी धँसी और सूखी आँखें मेरी ओर देखने लगीं। उठानेसे भी उनके हाथ उठ नहीं रहे थे। मैंने पूछा 'आपका भगवान्‌में विश्वास है या नहीं ?'

वे बोले, 'अब उनके सिवा और किसका भरोसा है ? मेरा उनपर पूरा विश्वास है।'

मैंने ऐसे ही कह दिया 'तो आप एक काम कीजिये । प्रतिदिन प्रातः काल अनारकी लकड़ीसे लाल स्याहीसे राम-नाम लिखते जाइये। मेरा विश्वास है। आपको बहुत लाभ होगा।'

दृढ़ विश्वासके साथ उन्होंने कहा 'आपकी आज्ञाका पालन मैं अवश्य करूँगा, मास्टर साहब।'

उसके बाद पाँच दिनों बाद मैं उनके घर गया। उन्होंने बताया कि 'पहले तो हाथ ही नहीं उठ रहा था, पर अब दो दिनोंसे पाँच सौ राम-नाम लिख लेता हूँ।'

जीवनसे निराश होनेके कारण उन्हें भगवान्के चरणोंमें निष्ठा हो गयी थी। क्षयसे त्राण पाना असम्भव समझकर उन्होंने अपनेको प्रभुपर छोड़ दिया। राम-नाम वे लिखते गये और लोगोंने देखा कि अब साधारण ओषधिसे भी उन्हें लाभ हो रहा है। स्वास्थ्य उनका क्रमशः सुधरने लगा और नामलेखनके प्रभावसे धीरे धीरे वे पूर्णरूपसे स्वस्थ हो गये।

[ श्रीविश्वनाथलालजी ]



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mahaushadhi - raamanaama

banaaras jilemen jagajjananee jaahnaveeke puneet tatapar boodha़epur naamak ek gaanv hai. pahale ise buddhapur kaha jaata thaa. yahaanpar shivakumaar upaadhyaay naamak ek sajjan raha karate the.

ek baar ye achaanak beemaar pada़ gaye. svaasthy uttarottar girata gayaa. ek varshamen inaka shareer peela ho gayaa. aankhen gadde men dhans gayeen. asthiyaan baahar nikal aayeen. inakee vriddha maataaka to sarvasv lutane ja raha thaa. ve dinabhar roteen aur jis kiseese tanik bhee sahaanubhooti paat, usake paironpar giraneke liye prastut ho ho. jaateen. apana sarvasv dekar praanapriy putrakee praana-rakshaake liye ve bechain theen. chikitsa vishesh saavadhaaneese aarambh huee, par koee laabh naheen ho sakaa. poore do varsh nikal gaye. ab peele charmase aavrit asthipanjarake atirikt unakee kaayaamen kuchh naheen rah gayaa.

chikitsaake liye unhen kaashee le jaaya gaya, par chaar maas baad vahaanse bhee niraash hokar laut aana pada़aa. ab unake liye tithi ginee ja rahee thee. kiseeke manamen yah kalpana bhee naheen udit ho rahee thee ki eka-dedha़ maasake baad bhee ve is dharaadhaamapar deekh sakenge.

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paathase uthakar main seedhe shivakumaarake yahaan gaya, unakee dhansee aur sookhee aankhen meree or dekhane lageen. uthaanese bhee unake haath uth naheen rahe the. mainne poochha 'aapaka bhagavaan‌men vishvaas hai ya naheen ?'

ve bole, 'ab unake siva aur kisaka bharosa hai ? mera unapar poora vishvaas hai.'

mainne aise hee kah diya 'to aap ek kaam keejiye . pratidin praatah kaal anaarakee lakada़eese laal syaaheese raama-naam likhate jaaiye. mera vishvaas hai. aapako bahut laabh hogaa.'

dridha़ vishvaasake saath unhonne kaha 'aapakee aajnaaka paalan main avashy karoonga, maastar saahaba.'

usake baad paanch dinon baad main unake ghar gayaa. unhonne bataaya ki 'pahale to haath hee naheen uth raha tha, par ab do dinonse paanch sau raama-naam likh leta hoon.'

jeevanase niraash honeke kaaran unhen bhagavaanke charanonmen nishtha ho gayee thee. kshayase traan paana asambhav samajhakar unhonne apaneko prabhupar chhoda़ diyaa. raama-naam ve likhate gaye aur logonne dekha ki ab saadhaaran oshadhise bhee unhen laabh ho raha hai. svaasthy unaka kramashah sudharane laga aur naamalekhanake prabhaavase dheere dheere ve poornaroopase svasth ho gaye.

[ shreevishvanaathalaalajee ]

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