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भगवान् सत्संकल्प पूरा कर देते हैं

मैं १५ मई २००५ ई०को श्रीरामकथा सुननेहेतु नगर जिलेके शेवगाँव तालुकास्थित राजणी नामक गाँवमें गया था। वहाँ रामकथाका आयोजन किया गया था।

एकादशीके दिन शामको जब हम कथावक्तामहाराजजी से मिलने उनकी कुटियापर गये तो वहाँउन्होंने अपने जीवनमें घटी एक सत्य और रोचक घटनाहमें बतायी, जिसे सुनकर हम बहुत आश्चर्यमें पड़ गये। महाराजने कहा- 'मैं प्रत्येक एकादशीको श्रीविष्णु भगवान्‌को विष्णुसहस्रनामसे एक सहस्र तुलसीपत्र अर्पण किया करता हूँ। बहुत दिनोंसे यह क्रम चलता आ रहा है, लेकिन एक एकादशीके दिनकी बात है, मैं एकाएक बीमार हो गया। मित्रोंने मुझे पासके अस्पतालमें भर्ती करवाया। डॉक्टरी इलाजसे और भगवान्‌की असीमकृपासे शाम ७ बजेतक मुझे आराम हो गया, तब डॉक्टरोंने घर जानेकी अनुमति भी दे दी। मैं मित्रोंके साथ घरपर पहुँचा, रातके करीब आठ बजे मेरे एक मित्रने मुझे याद दिलाया, महाराज! आज आपकश्रीविष्णुभगवान्को तुलसीपत्र चढ़ानेका व्रत भंग हो गया। मैं भी सुनकर बड़ा दुखी हुआ। लेकिन करता भी क्या ? रातमें तुलसीपत्र तोड़ना शास्त्रविहित नहीं है। भगवान् से क्षमा माँगकर मैं शान्त हो गया। कुछ ही क्षणोंमें दरवाजेपर एक आदमी आया, जो कह रहा था, मुझे महाराजजीसे मिलना है, मुझे उनसे रामकथाकी तारीख लेनी है। मेरे मित्रोंने उससे कहा 'महाशय ! आप कल सुबह आइये, अभी महाराजजी मिल नहीं सकते; क्योंकि वे बीमार हैं।' लेकिन वे सज्जन माने नहीं। कहने लगे- 'मुझे आज ही तारीख लेनी है।' ऐसा हठ करके वे वहीं खड़े रहे। मैं अन्दरसे सब सुन रहा था। मुझे दया आयी और मैंने उन्हें अन्दर बुला लिया। वे आये लेकिन खड़े ही रहे। मैंने अपनी डायरी निकाली। कौन-सी तारीखआपको अनुकूल पड़ेगी, मैं यह पूछने ही वाला था कि सामनेका दृश्य देखकर मैं अचरजमें पड़ गया। दृश्य था ही ऐसा डायरी खोलते ही उसमें हरे-भरे तुलसीपत्र मुझे दिखायी पड़े। मैंने रखे तो नहीं थे, फिर ये आये कहाँसे? डायरीके पन्नोंके बीच तुलसीपत्र देखकर मेरे मित्रगण भी हक्के-बक्के रह गये। मैंने सोचा, वे आदमी कौन हैं, जरा देखूं तो सही ! सामने देखा तो वहाँ कोई भी नजर नहीं आया। वे कब चले गये, किसीने भी नहीं देखा। मुझे लगा कि मेरे ऊपर यह भगवान्की प्रत्यक्ष कृपा ही हुई है, जो उन्होंने मेरा तुलसीदलार्चनका व्रत पूर्ण करनेके लिये डायरीके पृष्ठोंके बीच तुलसीपत्र रखवा दिये। सबने उन्हें खोजने का बहुत प्रयत्न किया, किंतु वे नहीं मिले। उन्हीं तुलसीपत्रोंसे मैंने श्रीभगवान्‌की तुलसीदलार्चा सम्पन्न की।

इस घटनासे यह प्रतीत होता है कि सच्ची भावना एवं दृढ़ विश्वास अगर हो तो भगवान् स्वयं ही आकर कार्य सिद्ध कर देते हैं।

[ श्रीगणेशमहाराजजी साबले ]



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bhagavaan satsankalp poora kar dete hain

main 15 maee 2005 ee0ko shreeraamakatha sunanehetu nagar jileke shevagaanv taalukaasthit raajanee naamak gaanvamen gaya thaa. vahaan raamakathaaka aayojan kiya gaya thaa.

ekaadasheeke din shaamako jab ham kathaavaktaamahaaraajajee se milane unakee kutiyaapar gaye to vahaanunhonne apane jeevanamen ghatee ek saty aur rochak ghatanaahamen bataayee, jise sunakar ham bahut aashcharyamen pada़ gaye. mahaaraajane kahaa- 'main pratyek ekaadasheeko shreevishnu bhagavaan‌ko vishnusahasranaamase ek sahasr tulaseepatr arpan kiya karata hoon. bahut dinonse yah kram chalata a raha hai, lekin ek ekaadasheeke dinakee baat hai, main ekaaek beemaar ho gayaa. mitronne mujhe paasake aspataalamen bhartee karavaayaa. daॉktaree ilaajase aur bhagavaan‌kee aseemakripaase shaam 7 bajetak mujhe aaraam ho gaya, tab daॉktaronne ghar jaanekee anumati bhee de dee. main mitronke saath gharapar pahuncha, raatake kareeb aath baje mere ek mitrane mujhe yaad dilaaya, mahaaraaja! aaj aapakashreevishnubhagavaanko tulaseepatr chadha़aaneka vrat bhang ho gayaa. main bhee sunakar bada़a dukhee huaa. lekin karata bhee kya ? raatamen tulaseepatr toda़na shaastravihit naheen hai. bhagavaan se kshama maangakar main shaant ho gayaa. kuchh hee kshanonmen daravaajepar ek aadamee aaya, jo kah raha tha, mujhe mahaaraajajeese milana hai, mujhe unase raamakathaakee taareekh lenee hai. mere mitronne usase kaha 'mahaashay ! aap kal subah aaiye, abhee mahaaraajajee mil naheen sakate; kyonki ve beemaar hain.' lekin ve sajjan maane naheen. kahane lage- 'mujhe aaj hee taareekh lenee hai.' aisa hath karake ve vaheen khada़e rahe. main andarase sab sun raha thaa. mujhe daya aayee aur mainne unhen andar bula liyaa. ve aaye lekin khada़e hee rahe. mainne apanee daayaree nikaalee. kauna-see taareekhaaapako anukool pada़egee, main yah poochhane hee vaala tha ki saamaneka drishy dekhakar main acharajamen pada़ gayaa. drishy tha hee aisa daayaree kholate hee usamen hare-bhare tulaseepatr mujhe dikhaayee pada़e. mainne rakhe to naheen the, phir ye aaye kahaanse? daayareeke pannonke beech tulaseepatr dekhakar mere mitragan bhee hakke-bakke rah gaye. mainne socha, ve aadamee kaun hain, jara dekhoon to sahee ! saamane dekha to vahaan koee bhee najar naheen aayaa. ve kab chale gaye, kiseene bhee naheen dekhaa. mujhe laga ki mere oopar yah bhagavaankee pratyaksh kripa hee huee hai, jo unhonne mera tulaseedalaarchanaka vrat poorn karaneke liye daayareeke prishthonke beech tulaseepatr rakhava diye. sabane unhen khojane ka bahut prayatn kiya, kintu ve naheen mile. unheen tulaseepatronse mainne shreebhagavaan‌kee tulaseedalaarcha sampann kee.

is ghatanaase yah prateet hota hai ki sachchee bhaavana evan dridha़ vishvaas agar ho to bhagavaan svayan hee aakar kaary siddh kar dete hain.

[ shreeganeshamahaaraajajee saabale ]

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