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बालाजीके पूजनसे संकट-निवारण

झाँसीके समीपमें स्थित उनावमें बालाजी (सूर्य भगवान्) -का मन्दिर है। पहूज नदीके तटपर स्थित यह स्थान अपनी रमणीयताके लिये विख्यात है। यदि कोई भी बालाजीके समीप अपने संकट निवारणार्थ पहुँच जाय तो उसकी करुण पुकार वे अवश्य सुनते हैं। ऐसी जनश्रुतियाँ अपने प्रवासकालमें दतिया (म०प्र० के) जिलेके बड़ौनकलाँमें अनेक मित्रोंसे सुननेको मिलीं। होलीके दिन वहाँ बड़ी धूम-धामसे मेला लगता है और दूर-दूरके दर्शनार्थी अपनी मन:कामनाएँ लेकर आते तथा श्रद्धाके साथ बालाजीकी अर्चना करते हैं।

मैं स्थानान्तरित होकर वहाँ गया था। प्रथम तो घरसे बहुत दूर; फिर वहाँके रीति-रिवाज, बोल-चाल, खान-पानमें बड़ी भिन्नता थी। इस कारणसे इस अपरिचित वातावरणमें मैं अपनेको खपा नहीं पा रहा था। अपने स्वभाव और अभ्यासके कारण प्राप्त परिस्थितियोंसे कोई सामंजस्य न बैठा पानेसे मैं प्रायः अन्यमनस्क और सदा अशान्त बना रहता। बालाजीकी महिमा मैंने सुनी थी। मन-ही-मन उनसे प्रार्थना की और संकल्प लिया-यदि आपकी कृपासे किसी उपयुक्त स्थानपर मेरी पुनर्नियुक्ति हो जाय तो आगामी होलीके पर्वपर मैं आपका दर्शन पूजन करूँगा। मैंने इस संकल्पके साथ उनकी कृपापर भरोसा कर लिया।

कुछ दिन बाद होली आयी। मेरे कई साथी बालाजीके दर्शन करने उनाव जाने लगे। मैं भी अपने एक साथीके साथ उनाव पहुँचा। भीड़ इतनी अधिक थी कि पहले दिनकेवल मन्दिर दर्शन एवं दूसरे दिन किसी भाँति बालाजीके दर्शन हो पाये। मन्दिरके भीतर अत्यधिक भीड़ और धक्का मुक्कीके कारण प्रथम बारमें बालाजीके चरणोंतक मैं न पहुँच सका। साहस बटोरकर पुनः प्रयास किया तो किसी प्रकार कुछ आगे बढ़ सका और पीछेके जनसमूहने ढकेलकर मुझे उनके पास पहुँचा दिया। लोटेका कुछ जल बालाजीके ऊपर और कुछ सामनेकी भीड़पर छलक गया। भगवान् सूर्यनारायण (बालाजी) के समक्ष संकटापन्न दुखी अन्तःकरणके तप्त हृदयोच्छ्वासोंके सहित चार-छ: आँसू भी आँखोंसे बरबस टपक पड़े। मैंने मूक आर्तभावसे विनय की - 'भगवन् ! तिमिररिपो! मुझे भी नैराश्यके इस घोर अन्धकारसे उबार लीजिये आपसे मेरा कुछ भी छिपा नहीं है। कण्टकाकीर्ण कर्तव्य-पथको अपने कृपा-प्रकाशसे आलोकितकर मेरा उद्धार करें।'

ग्रीष्मावकाशके बाद सितम्बर महीनेमें मैं जैसे ही पुनः बड़ौनकलाँ पहुँचा कि सर्वप्रथम गाँवके एक प्रमुख नागरिकद्वारा मुझे स्थान परिवर्तनकी शुभ सूचना सहसा मिली। मेरी प्रसन्नताका ठिकाना न रहा। मुझे ऐसा लगा जैसे समुद्रमें डूबते हुए मुझको किसीने बाहर निकाल दिया हो। यह स्पष्टतः उन विश्वचक्षु भगवान् बालाजीकी मेरे ऊपर महती अनुकम्पा थी मैं बड़ौनकलाँसे परिवर्तित होकर अब वर्तमान स्थान में आ गया हूँ, जहाँसे मेरा घर तो समीप है ही; तन मनको भी विश्रान्ति है ।

[ आचार्य श्रीयुत श्रीकान्तमणिजी त्रिपाठी 'विकल']



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baalaajeeke poojanase sankata-nivaarana

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greeshmaavakaashake baad sitambar maheenemen main jaise hee punah bada़aunakalaan pahuncha ki sarvapratham gaanvake ek pramukh naagarikadvaara mujhe sthaan parivartanakee shubh soochana sahasa milee. meree prasannataaka thikaana n rahaa. mujhe aisa laga jaise samudramen doobate hue mujhako kiseene baahar nikaal diya ho. yah spashtatah un vishvachakshu bhagavaan baalaajeekee mere oopar mahatee anukampa thee main bada़aunakalaanse parivartit hokar ab vartamaan sthaan men a gaya hoon, jahaanse mera ghar to sameep hai hee; tan manako bhee vishraanti hai .

[ aachaary shreeyut shreekaantamanijee tripaathee 'vikala']

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