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नेत्र-रोगनाशक चाक्षुषोपनिषद्

लगभग पच्चीस वर्ष पूर्व एक नेत्ररोगविशेषज्ञने मुझे सावधान किया कि अतिशीघ्र तुम्हारे नेत्रोंमें मोतियाबिन्द होनेवाला है। उन्होंने बताया कि पौष्टिक आहारकी कमीसे नेत्र विकार होते हैं तथा तीक्ष्ण पदार्थोंका सेवन भी हानिकर है- विशेषकर मिर्च-मसाले, चाय-काफी आदि नेत्रोंके लिये हानिप्रद हैं। उपर्युक्त बातोंपर पूरा ध्यान रखनेपर भी नेत्रविकार बढ़ता गया। अबसे लगभग दस वर्ष पूर्व 'कल्याण'के 'उपनिषद्-अंक 'में मैंने चाक्षुषोपनिषद्के गुण- प्रभावके विषयमें पढ़ा था, तभीसे मैंने उक्त उपनिषद्का पाठ आरम्भ कर दिया था। नियमपूर्वक पाठ करनेसे मेरे नेत्र विकारका बढ़ना बन्द हो गया।

अबसे आठ वर्ष पूर्व एक अन्य नेत्रविशेषज्ञनेमुझसे पुन: कहा था कि करीब ६ मासमें सर्वथा दृष्टिशून्य हो जाओगे। तब मैंने विश्वासपूर्वक उनसे कहा कि 'मैं श्रद्धा-विश्वासके साथ भगवान् सूर्यकी उपासना करता हूँ, अतः मेरी दृष्टि इतनी तो बनी हो रहेगी।'

ये नेत्र-विशेषज्ञ वर्षमें हजारों अन्धोंको दृष्टि प्रदान करते हैं। श्रीसूर्यनारायणकी कृपासे चाक्षुषोपनिषद्के प्रतिदिन सन्ध्या-समय पाठ करनेसे मेरी दृष्टि स्थिर हो गयी है। अबसे दस वर्ष पूर्व जैसी दृष्टि थी, वैसी ही अब भी है। मैं चश्मा लगाकर लिखने-पढ़नेका कार्य अच्छी तरह कर लेता हूँ । भगवत्कृपासे, मेरी दृष्टि आगे भी ठीक बनी रहेगी, यह मेरा विश्वास है।

[ श्रीबारूरामजी शास्त्री]



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netra-roganaashak chaakshushopanishad

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[ shreebaarooraamajee shaastree]

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