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गीतापाठका प्रत्यक्ष चमत्कार

घटना आषाढ़ कृष्णपक्ष सं० २०६५ वि०की है। मेरे घरमें अशान्तिके बादल छाये हुए थे, ससुरालवालोंने मुझसे कहा कि गोठ मोगलोद गाँवमें किरण पितराणीकी शरणमें जानेसे समस्त दुःख दूर हो जाते हैं। किंकर्तव्यविमूढ़ मैं उनके पास गया। वहाँ ऐसी मान्यता है कि उन ( पितराणी) - के शरीरमें देवता आते हैं, मैंने भी उनसे दुःखोंका कारण और उनसे छुटकारा पानेका उपाय पूछा। उन्होंने बताया कि आपको घरकी तथा बाहर की पाँच-सात प्रेतात्माएँ दुःख दे रही हैं। सात दिनतक पितराणीके नामकी अगरबत्ती करना, घरमें गोमूत्र छिड़कना तथा आठवें दिन पुनः आना। मैंने वह सब किया और पुनः आठवें दिन मैं पत्नीके साथ वहाँ गया। पितराणीने घर बुलवानेका दस हजार रुपयेका खर्च बताया। यह सुनकर मैं बहुत निराश हो गया। घर आकर मैंने माताजीको सब बातें बतलायीं। माताजीने भी वह काम करवानेको कहा। मेरी पत्नीने पीहरसे कुछ रुपये उधार लाकर देने को कहा, किंतु मेरे लिये तो एक हजार रुपये भी अधिक होते थे। इतने रुपये मैं कहाँसे लाता ! मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था। हारकर मैं प्रभुकी शरणमें गया, मुझे लगा कि मेरा दुःख सुननेवाले मेरे परमात्मा ही हैं। वे चाहे जो करेंगे। मैं प्रभुके सामने काफी समयतक रोता रहा और उनसे यह प्रार्थना करता रहा कि प्रभो ! मैं आपकी शरणमें हूँ, इस संकटसे मुक्तिका मार्ग बताइये। फिर मैं गीताजीके उस श्लोकका पाठ करने लगा, जिसमेंकिंकर्तव्यविमूढ़ अर्जुनने भगवान्के शरणागत होकर अपने संकटसे मुक्ति दिलानेका तथा कल्याणका उपाय पूछा था। वह श्लोक इस प्रकार है

कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः

पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः

यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे

शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ॥

मैं तीन दिनतक इस श्लोकका जप करता रहा। जपके फलस्वरूप आषाढ़ कृष्ण चतुर्दशीको मुझे यह अन्तःप्रेरणा मिली कि तुम गीताजीका पाठ करो, गीतासे बड़ा कुछ नहीं है। मैंने गीताजीका पाठ, हनुमान्जीके द्वादश नामों का जप तथा हरे राममन्त्र का जप भी शुरू कर दिया।

मेरी पत्नीने कहा- क्या है गीताके पाठमें ? इतने समयसे पाठ करनेपर भी दुःख दूर नहीं हुए। मैंने कहा 'तू भोली है। तू गीता पाठके महत्त्वको नहीं जानती। भगवान्को मेरा काम करना ही पड़ेगा।' मेरा निश्चय अटल था। भगवान्‌की प्रेरणासे एक समय भोजन करते हुए सात दिनतक मैंने गीताका पाठ नित्य किया और प्रभुसे मृत आत्माओंकी मुक्ति तथा गृहशान्तिकी प्रार्थना की और फिर गीताजीकी कृपा हुई कि मुझे प्रेतात्माओंसे मुक्ति मिल गयी तथा घरमें शान्तिका वातावरण हो गया, इस प्रकार गीतापाठसे मुझे समस्त दुःखोंसे छुटकारा प्राप्त हुआ।

[ श्रीवासुदेवजी शर्मा ]



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geetaapaathaka pratyaksh chamatkaara

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[ shreevaasudevajee sharma ]

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