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गजेन्द्रमोक्षस्तोत्रकी महती कृपा

यह घटना आजसे लगभग १२ वर्ष पूर्वकी है। मेरी धर्मपत्नी गर्भवती थीं। इससे पूर्व उनका तीन-चार महीनेका होकर तीन बार गर्भ नष्ट हो चुका था। दो गर्भाशय होनेसे सन्तानका होना चिकित्सकोंके अनुसार बहुत मुश्किल था। गर्भाशयमें कुछ अन्य विकारोंके चलते जच्चा-बच्चा दोनोंका ही जीवन सन्दिग्ध था। डॉक्टरोंने स्पष्ट कह दिया था कि सन्तान होना ही कठिन है और हुई भी तो उसका बच पाना मुश्किल है। मैं अत्यधिक निराश एवं व्यथित था। परिवारमें मेरे अलावा दौड़-भाग करनेवाला भी कोई और न था । अस्तुप्रसवका समय चल रहा था। डॉक्टरको दिखानेपर उसने तुरंत भरती करके ऑपरेशन करवानेकी सलाह दी और कहा - 'योर लक' (आपका भाग्य)। ऐसी दशामें मैं अपने गुरुजीके पास गया और उन्हें सारी बातों से अवगत कराया। उन्होंने मुझे बताया कि सारी समस्याओंका हल केवल गजेन्द्रमोक्ष स्तोत्र है। उसे तुम आर्तभावसे पढ़ते रहना, समस्याएँ लहरोंकी भाँति आकर चली जायँगी। इस बातका चिन्तन करते हुए मैंने पत्नीको हॉस्पिटलमें भरती करवा दिया और वहींपर रो-रोकर गजेन्द्रमोक्ष पढ़ते हुए भगवान् नारायणको पुकारने लगा।कुछ देर बाद नर्सने आकर मुझे दवाओंका पर्चा थमा दिया और तत्काल दवा लानेके लिये कहा। मैं उस बदहवासीमें भागा-भागा दवा लेने गया। दवा लाकर मैंने नर्सको दे दी और फिर वहीं बाहर बैठकर अपने सबसे बड़े सहारे भगवान् नारायणको गजेन्द्रमोक्ष पढ़ते हुए पुकारने लगा। डॉक्टरोंने काफी सावधानीसे पर्याप्त समय देकर ऑपरेशन किया और भगवान्की कृपासे ऑपरेशन सर्वथा सफल रहा।

जन्मके समय शिशु अत्यन्त क्षीणकाय था, इसलिये सावधानीकी दृष्टिसे डॉक्टरोंके परामर्शानुसार एक सप्ताहतक पत्नी और नवजात पुत्रको लेकर मैं अकेले ही उस हॉस्पिटलमें रहा। तत्पश्चात् फिरसे कुछ जाँचें हुईं और डॉक्टरोंकी अनुमतिसे पत्नी-पुत्रके साथ मैं घर आ गया। गजेन्द्रमोक्ष स्तोत्रकी यह महती कृपा है कि आजतक मेरी पत्नी और पुत्र दोनों ही पूर्ण रूपसे स्वस्थ एवं पुष्ट हैं। मेरे तो जीवनका आधार ही यह स्तोत्र बन चुका है। जीवनकी ऐसी ही और भी बहुत-सी समस्याओंसे घिरनेपर मुझे इसी स्तोत्रके आश्रयने उबारा है। मेरा विश्वास है कि व्यक्ति कैसे भी संकट की घड़ीमें यदि इस स्तोत्रकी विश्वासके साथ शरण लेता जाय, तो वह हँसते-हँसते संकटोंकी भँवरसे निकल जायगा।

[ पं० श्रीलोकेशजी द्विवेदी ]



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gajendramokshastotrakee mahatee kripaa

yah ghatana aajase lagabhag 12 varsh poorvakee hai. meree dharmapatnee garbhavatee theen. isase poorv unaka teena-chaar maheeneka hokar teen baar garbh nasht ho chuka thaa. do garbhaashay honese santaanaka hona chikitsakonke anusaar bahut mushkil thaa. garbhaashayamen kuchh any vikaaronke chalate jachchaa-bachcha dononka hee jeevan sandigdh thaa. daॉktaronne spasht kah diya tha ki santaan hona hee kathin hai aur huee bhee to usaka bach paana mushkil hai. main atyadhik niraash evan vyathit thaa. parivaaramen mere alaava dauda़-bhaag karanevaala bhee koee aur n tha . astuprasavaka samay chal raha thaa. daॉktarako dikhaanepar usane turant bharatee karake ऑpareshan karavaanekee salaah dee aur kaha - 'yor laka' (aapaka bhaagya). aisee dashaamen main apane gurujeeke paas gaya aur unhen saaree baaton se avagat karaayaa. unhonne mujhe bataaya ki saaree samasyaaonka hal keval gajendramoksh stotr hai. use tum aartabhaavase padha़te rahana, samasyaaen laharonkee bhaanti aakar chalee jaayangee. is baataka chintan karate hue mainne patneeko haॉspitalamen bharatee karava diya aur vaheenpar ro-rokar gajendramoksh padha़te hue bhagavaan naaraayanako pukaarane lagaa.kuchh der baad narsane aakar mujhe davaaonka parcha thama diya aur tatkaal dava laaneke liye kahaa. main us badahavaaseemen bhaagaa-bhaaga dava lene gayaa. dava laakar mainne narsako de dee aur phir vaheen baahar baithakar apane sabase bada़e sahaare bhagavaan naaraayanako gajendramoksh padha़te hue pukaarane lagaa. daॉktaronne kaaphee saavadhaaneese paryaapt samay dekar ऑpareshan kiya aur bhagavaankee kripaase ऑpareshan sarvatha saphal rahaa.

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[ pan0 shreelokeshajee dvivedee ]

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