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गजेन्द्रकी वह चमत्कारी प्रार्थना

जनवरी २००३ में एक रात अचानक मुझे असामान्य रूपसे पसीना आने लगा। कोई दर्द या बेचैनी नहीं थी। मैंने अपने ममेरे भाईको रातमें ही फोनपर बताया, तो वे किसी अनिष्टकी आशंकासे तुरंत आ गये और मुझे अस्पताल ले गये। वहाँ डॉक्टरने औपचारिकताके बाद मुझे भर्ती कर लिया। रातमें ही उपचार शुरू हो गया और अगले दिन मैं सामान्य हो गया। घर आकर मेरा स्वास्थ्य गड़बड़ रहने लगा, जबकि मेरी दिनचर्या बहुत नियमित एवं व्यवस्थित रहती है। दिनोंदिन मेरा स्वास्थ्य खराब होने लगा। मुझे चलने-फिरनेमें कठिनाई होने लगी। भूख लगनी बन्द हो गयी। नींद बहुत कम हो गयी। मैं चिन्तित रहने लगा। मेरेपरिवारकी स्थिति भी अधरमें थी, बच्चे पढ़ ही रहे थे । अन्य सबके विषयमें सोचकर परेशान रहने लगा। स्वास्थ्य गिरता ही जा रहा था। यद्यपि चिकित्सककी सलाह और दवाइयाँ मैं नियमित रूपसे ले रहा था। अनेक ज्योतिषियोंसे भी परामर्श किया। परंतु लाभ नहीं मिल पा रहा था। मेरे साथ ही पत्नी और बच्चे भी परेशान थे। हमारे घरके पासमें ही एक सज्जन किरायेपर रहते थे। वे बिक्रीकर विभागके उपायुक्त थे और स्वभावतः बहुत मिलनसार तथा मुझे बहुत सम्मान देते थे। मेरी स्थितिसे वे भी परेशान थे। एक दिन संयोगवश उनके कुलगुरु अयोध्याजीसे उनके यहाँ पधारे। अगले दिन वे सज्जन अपने पण्डितजीकोलेकर हमारे यहाँ भी आये और उन्होंने विशेष रूपसे मेरे विषयमें बात की। पण्डितजी आकर्षक व्यक्तित्व एवं शालीन व्यवहारवाले थे। उन्हें देखकर मैं बहुत प्रभावित हुआ। वे कुछ देर शान्त मुद्रामें बैठे रहे। फिर यकायक बोले- 'आप संस्कृत पढ़ लेते हैं?' मैंने कहा- 'हाँ पण्डितजी!' उन्होंने पुनः पूछा - ' श्रीमद्भागवत पुराण आपको मिल सकता है कहीं-से ?' मैंने बताया कि 'मेरे पास है'। उन्होंने श्रीमद्भागवत पुराण लिया और उसमें 'गजेन्द्रमोक्षाख्यान' निकाला। उसमेंसे एक श्लोकपर उन्होंने पेनसे निशान लगाया। पण्डितजीने श्लोक बताते समय उसे सस्वर गाया और भावार्थ भी मुझे बताया और कहा 'जितना हो सके, इस श्लोकका जप करो। आपको निश्चित लाभ होगा।' मैंने परेशान होकर उनसे कहा 'मैं बैठ नहीं पाता हूँ तो जप कैसे सम्भव होगा ?' उन्होंने ढाँढस बँधाया—'आप लेटकर ही आरम्भ करो नारायण बैठाकर भी आपसे जप करायेंगे।' मुझे तो लगा किसंजीवनी मिल गयी" और मैंने बड़े आर्त भावसे

था कश्चनेशी बलियोऽन्तकोरगात् प्रचण्डयेगादभिधावतो भृशम्। भीतं प्रपन्न परिपाति यद्धयान्मृत्युः प्रधावत्यरणं तमीमहि ॥ *

का जप लेटकर ही आरम्भ कर दिया। मात्र दो दिन मैंने लेटकर जप किया। उसके बाद स्वास्थ्यमें 'उत्तरोत्तर सुधार होता चला आया, और मैंने विधिपूर्वक जप शुरू कर दिया। मैं शीघ्र ही पूर्ण स्वस्थ हो गया। मैं मानता हूँ कि उक्त एलोकसे मेरा समुद्धार उसी भाँति हुआ, जैसे कि ग्राहके द्वारा जकड़े गये गजेन्द्रका हुआ था। गजेन्द्रमोक्षके माध्यमसे श्रीहरिके शरणापन्न होकर मैंने उस अप्रत्याशित व्याधिसे मुक्ति प्राप्त की। उसके बाद तो मैंने भी अनेक लोगोंको यह श्लोक बताया, अधिकांशको लाभ भी हुआ। मैं तो उन अयोध्यावासी पण्डितजीका, उन पड़ोसी सज्जनका और विशेष रूपसे श्रीहरिका आभार मानता हूँ।

[ श्रीनरेन्द्रकुमारजी शर्मा ]



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gajendrakee vah chamatkaaree praarthanaa

janavaree 2003 men ek raat achaanak mujhe asaamaany roopase paseena aane lagaa. koee dard ya bechainee naheen thee. mainne apane mamere bhaaeeko raatamen hee phonapar bataaya, to ve kisee anishtakee aashankaase turant a gaye aur mujhe aspataal le gaye. vahaan daॉktarane aupachaarikataake baad mujhe bhartee kar liyaa. raatamen hee upachaar shuroo ho gaya aur agale din main saamaany ho gayaa. ghar aakar mera svaasthy gada़bada़ rahane laga, jabaki meree dinacharya bahut niyamit evan vyavasthit rahatee hai. dinondin mera svaasthy kharaab hone lagaa. mujhe chalane-phiranemen kathinaaee hone lagee. bhookh laganee band ho gayee. neend bahut kam ho gayee. main chintit rahane lagaa. mereparivaarakee sthiti bhee adharamen thee, bachche paढ़ hee rahe the . any sabake vishayamen sochakar pareshaan rahane lagaa. svaasthy girata hee ja raha thaa. yadyapi chikitsakakee salaah aur davaaiyaan main niyamit roopase le raha thaa. anek jyotishiyonse bhee paraamarsh kiyaa. parantu laabh naheen mil pa raha thaa. mere saath hee patnee aur bachche bhee pareshaan the. hamaare gharake paasamen hee ek sajjan kiraayepar rahate the. ve bikreekar vibhaagake upaayukt the aur svabhaavatah bahut milanasaar tatha mujhe bahut sammaan dete the. meree sthitise ve bhee pareshaan the. ek din sanyogavash unake kulaguru ayodhyaajeese unake yahaan padhaare. agale din ve sajjan apane panditajeekolekar hamaare yahaan bhee aaye aur unhonne vishesh roopase mere vishayamen baat kee. panditajee aakarshak vyaktitv evan shaaleen vyavahaaravaale the. unhen dekhakar main bahut prabhaavit huaa. ve kuchh der shaant mudraamen baithe rahe. phir yakaayak bole- 'aap sanskrit padha़ lete hain?' mainne kahaa- 'haan panditajee!' unhonne punah poochha - ' shreemadbhaagavat puraan aapako mil sakata hai kaheen-se ?' mainne bataaya ki 'mere paas hai'. unhonne shreemadbhaagavat puraan liya aur usamen 'gajendramokshaakhyaana' nikaalaa. usamense ek shlokapar unhonne penase nishaan lagaayaa. panditajeene shlok bataate samay use sasvar gaaya aur bhaavaarth bhee mujhe bataaya aur kaha 'jitana ho sake, is shlokaka jap karo. aapako nishchit laabh hogaa.' mainne pareshaan hokar unase kaha 'main baith naheen paata hoon to jap kaise sambhav hoga ?' unhonne dhaandhas bandhaayaa—'aap letakar hee aarambh karo naaraayan baithaakar bhee aapase jap karaayenge.' mujhe to laga kisanjeevanee mil gayee" aur mainne bada़e aart bhaavase

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[ shreenarendrakumaarajee sharma ]

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