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'हरिः शरणम्'-मन्त्रके जपसे अलौकिक कृपानुभूति

प्रार्थनाका बड़ा चमत्कारिक प्रभाव होता है। हमने अपने जीवनमें इसका बहुत बार अनुभव किया है। प्रार्थनासे भीषण से भीषण रोग ठीक हो सकते हैं। कलकत्तामें श्रीरूड़मलजी गोयन्दका एक प्रसिद्ध व्यवसायी हुए हैं। एक बार उनको प्लेग हुआ। १०४-५ डिग्री बुखार और दोनों जाँघोंमें बड़ी-बड़ी गिल्टियाँ निकल आयी थीं। उस समय कलकत्तामें सर कैलासचन्द्र बोस बड़े प्रसिद्ध डॉक्टर थे। उन्हें बुलाया गया। उन्होंने देखकर कहा- 'बचनेकी आशा बिलकुल नहीं है। रात निकलना कठिन है। सावधान रहना चाहिये।' वे यह कहकर चले गये। श्रीरूड़मलजी संस्कृतके पण्डित थे। भागवत पढ़ा करते थे। भागवतके माहात्म्यमें नारदजीने श्रीसनकादिसे उनकी प्रशंसामें यह कहा कि 'आप सदा बालकरूपमें इसलिये बने रहते हैं कि आप 'हरिः शरणम्'-मन्त्रका जप नित्य करते हैं।' श्रीरूड़मलजीको यह प्रसंग स्मरण हो आया। उन्होंने अपने सेवक गोविन्दको बुलाया और कहा - 'गंगाजल लाओ, शरीर पोछेंगे।' गंगाजल आ गया। उन्होंने अँगोछेको गंगाजल में भिगवाकर सारा शरीर पोंछवाया और कमरा बन्द करके भगवान् श्रीकृष्णकी मूर्ति सामने रख ली और श्रीकृष्ण में मन लगाकर 'हरिः शरणम्'-मन्त्रका जप करने लगे। कई घण्टेतक तो वे जप करते रहे, पीछे उन्हें स्मरण नहीं रहा कि क्या हुआ। लगभग ४ बजे जब चेतना हुई, तब उन्हें लगा-शरीर हलका है, बुखार नहीं है। उन्होंने टटोलकर देखा - दोनों गिल्टियाँ भी गायब हैं। तब उन्होंने उठकर एवं चलकर देखा-बिलकुल स्वाभाविकता अनुभव हुई। उन्होंने कमरेका दरवाजा खोला और नौकरको आवाज दी। नौकर आया और सेठजी अपने

दैनिक कृत्यमें लग गये। अब वे बिलकुल स्वस्थ थे। दूसरे दिन प्रातः काल डॉक्टर सर कैलास श्रीरूड़मलजीके पड़ोसमें एक अन्य रोगीको देखने आये।रोगीको देखनेपर डॉक्टर साहबने सेठजीके परिवारके एक सज्जनसे पूछा- आपलोग रात्रिमें कितने बजे श्मशानसे लौटे ?' उन्होंने प्रश्न किया-'किसकी अन्त्येष्टिकी बात कर रहे हैं ?' डॉक्टर साहब बोले-'श्रीरूड़मलजीकी हालत रातमें बहुत अधिक खराब थी, रात्रिमें उनका शरीर शान्त हो गया होगा और अन्त्येष्टि भी हो गयी होगी। आपको पता नहीं चला क्या ?' उन सज्जनने कहा-'हमें तो कुछ भी पता नहीं है। तब डॉक्टर साहब पता लगाने श्रीरूड़मलजीके घरपर आये। आते ही उन्होंने देखा कि श्रीरूड़मलजी चाँदीको चौकीपर चाँदीके थालमें पीताम्बर पहने प्रसाद पा रहे हैं। उन्हें इस प्रकार खाते देख डॉक्टर साहबको बड़ा ही आश्चर्य हुआ। उन्हें लगा- इन्होंने रात जैसे-तैसे निकाल दी है और अब ये संनिपातमें खाने बैठ गये हैं। डॉक्टर साहबने पूछा-'सेठजी! किसके कहनेसे खा रहे हैं?' सेठजी बोले-'जिसकी दवासे ठीक हुए हैं।' इतना सुननेपर भी डॉक्टर साहबको लगा-'ये संनिपातमें ही बोल रहे हैं।' डॉक्टर साहब घरवालोंको सावधान करके चले गये कि 'आप लोग ख्याल रखें, ये संनिपातमें खा रहे हैं। पर श्रीरूड़मलजी तो पूर्ण स्वस्थ हो गये थे। उन्होंने छककर प्रसाद पाया और पूर्ण स्वस्थ रहे।'

पीछे कमलजीने हमें स्वयं पूरी बात सुनायी 'जब डॉक्टर साहबने कह दिया कि रात्रि निकालनी कठिन है, तब हमें मरनेका सोच तो रहा नहीं। भागवत माहात्म्यके अन्तर्गत श्रीनारद सनकादिक-प्रसंग स्मरण हो आया और हमने श्रीसनकादिके प्रिय मन्त्र 'हरिः शरणम्' का जप शुरू कर दिया।'

ऐसे अनेकों प्रसंग हमने देखे सुने तथा अनुभव किये हैं कि भगवानूपर विश्वास हो और सच्चे हृदयसे भगवान् से प्रार्थना की जाय तो भगवान् के यहाँ सब कुछ सम्भव है।'

[ श्रीहनुमानप्रसादजी पोहार]



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peechhe kamalajeene hamen svayan pooree baat sunaayee 'jab daॉktar saahabane kah diya ki raatri nikaalanee kathin hai, tab hamen maraneka soch to raha naheen. bhaagavat maahaatmyake antargat shreenaarad sanakaadika-prasang smaran ho aaya aur hamane shreesanakaadike priy mantr 'harih sharanam' ka jap shuroo kar diyaa.'

aise anekon prasang hamane dekhe sune tatha anubhav kiye hain ki bhagavaanoopar vishvaas ho aur sachche hridayase bhagavaan se praarthana kee jaay to bhagavaan ke yahaan sab kuchh sambhav hai.'

[ shreehanumaanaprasaadajee pohaara]

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