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श्रीमधुर कवि आळवार की मार्मिक कथा
श्रीमधुर कवि आळवार की अधबुत कहानी - Full Story of श्रीमधुर कवि आळवार (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [श्रीमधुर कवि आळवार]- भक्तमाल


मधुर कवि गरुड़के अवतार माने जाते हैं। इनका जन्म तिरुक्कोलूर नामक स्थानमें एक सामवेदी ब्राह्मणकुल में हुआ था। ये वेदके बड़े अच्छे ज्ञाता थे; परंतु इन्होंने सोचा कि प्रेम, भक्ति और तत्त्वबोधके बिना विद्या किसी कामकी नहीं। ऐसा विचार करके इन्होंने सब कुछ त्याग दिया और अकेले तीर्थयात्राके लिये निकल पड़े। इनके मनमें भगवत्प्रकाश प्राप्त करनेकी बड़ी अभिलाषा थी। इसी उद्देश्यसे ये अयोध्या, मथुरा, काशी आदि अनेक तीर्थस्थानोंको गये। एक दिन जब ये गङ्गातटपर विचर रहे थे, इन्हें दक्षिणकी ओर एक बड़ा दिव्य प्रकाश दिखायी दिया। वह प्रकाश इन्हें लगातार तीन दिनोंतक दिखायी देता रहा। ये उस प्रकाशसे इतने अधिकआकर्षित हुए कि उसके पीछे-पीछे बहुत दूतक चले गये। जब ये कुरुकुर नामक स्थानमें पहुँचे, तब इन्होंने देखा कि वह प्रकाश सहसा लुप्त हो गया। पूछ-ताछ करनेपर मालूम हुआ कि वहाँ एक महान् भक्त योगी रहते हैं। ये उस भक्त योगीके पास गये और देखा कि एक मन्दिरके पास एक इमलीके पेड़के कोटरेमें वे ध्यानस्थ बैठे हैं। मधुर कवि बहुत देरतक इस आशासे बैठे रहे कि महात्माकी समाधि टूटे तो उनसे कुछ बातचीत की जाय। अन्तमें इनसे नहीं रहा गया। इन्होंने योगिराजको आवाज दी, किंतु आवाजका उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला। इन्होंने ताली बजायी, किंतु फिर भी महात्मा टस से मस नहीं हुए। अन्तमें इन्होंने मन्दिरको दीवालपरपत्थर मारा जिससे बड़े जोरकी आवाज हुई; किंतु उसका भी महात्मापर कोई असर नहीं हुआ। वे ज्यों के त्यों आसन लगाये बैठे रहे। तब मधुर कवि साहस करके कोटरके पास गये और बोले—'महाराज। मैं आपसे एक प्रश्न पूछता हूँ- यदि सत् पदार्थ (सूक्ष्म चेतनशक्ति) असत् (जड़ प्रकृति) के अंदर आविर्भूत हो जाय तो वह क्या खायेगा और कहाँ विश्राम करेगा ?" अब योगीने अपना मुँह खोला और कहा-' वह उसीको खायगा और वहीं पर विश्राम करेगा।' यह जीव क्या खाता है और कहाँ कैसे रहता है, इसका उत्तर यह है कि 'सूक्ष्म आत्मा हृदयके अन्तस्तलमें रहकर प्रकृतिके कमौका द्रष्टारूपसे उपभोग करता है। वह क्षेत्रज्ञरूपमें असङ्ग होकर प्रकृतिके खेलका आनन्द लेता है।' मधुरकविने अपने गुरुको पहचान लिया और भक्तराजने भी अपने शिष्यको ढूँढ़ निकाला, जिसकी वे बहुत दिनोंसे बाट देख रहे थे। वे इस असत् (शरीर) के अंदर सत् (परमात्मा) के रूपमें विद्यमान थे।

मधुर कविने अपने गुरुकी स्तुति करते हुए कहा-'मैं इन्हें छोड़कर दूसरे किसीको नहीं जानता। मैं इन्होंके गुण गाऊँगा, मैं इन्हींका भक्त हूँ। हाय! मैंने अबतक संसारके पदार्थोंका ही भरोसा किया। मैं कितना अभिमानी और मूर्ख था। सत्य तो यही है। मुझे आज उसकी उपलब्धि हुई। अब मैं अपने शेष जीवनको इन्हींकी कीर्तिका चारों दिशाओंमें प्रचार करनेमें बिताऊँगा। इन्होंने आज मुझे वेदोंका सार तत्त्व बताया है। इनके चरणोंमें प्रेम करना ही मेरे जीवनका एकमात्र साधन होगा।'



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madhur kavi garuड़ke avataar maane jaate hain. inaka janm tirukkoloor naamak sthaanamen ek saamavedee braahmanakul men hua thaa. ye vedake bada़e achchhe jnaata the; parantu inhonne socha ki prem, bhakti aur tattvabodhake bina vidya kisee kaamakee naheen. aisa vichaar karake inhonne sab kuchh tyaag diya aur akele teerthayaatraake liye nikal pada़e. inake manamen bhagavatprakaash praapt karanekee bada़ee abhilaasha thee. isee uddeshyase ye ayodhya, mathura, kaashee aadi anek teerthasthaanonko gaye. ek din jab ye gangaatatapar vichar rahe the, inhen dakshinakee or ek bada़a divy prakaash dikhaayee diyaa. vah prakaash inhen lagaataar teen dinontak dikhaayee deta rahaa. ye us prakaashase itane adhikaaakarshit hue ki usake peechhe-peechhe bahut dootak chale gaye. jab ye kurukur naamak sthaanamen pahunche, tab inhonne dekha ki vah prakaash sahasa lupt ho gayaa. poochha-taachh karanepar maaloom hua ki vahaan ek mahaan bhakt yogee rahate hain. ye us bhakt yogeeke paas gaye aur dekha ki ek mandirake paas ek imaleeke peड़ke kotaremen ve dhyaanasth baithe hain. madhur kavi bahut deratak is aashaase baithe rahe ki mahaatmaakee samaadhi toote to unase kuchh baatacheet kee jaaya. antamen inase naheen raha gayaa. inhonne yogiraajako aavaaj dee, kintu aavaajaka unhen koee uttar naheen milaa. inhonne taalee bajaayee, kintu phir bhee mahaatma tas se mas naheen hue. antamen inhonne mandirako deevaalaparapatthar maara jisase bada़e jorakee aavaaj huee; kintu usaka bhee mahaatmaapar koee asar naheen huaa. ve jyon ke tyon aasan lagaaye baithe rahe. tab madhur kavi saahas karake kotarake paas gaye aur bole—'mahaaraaja. main aapase ek prashn poochhata hoon- yadi sat padaarth (sookshm chetanashakti) asat (jada़ prakriti) ke andar aavirbhoot ho jaay to vah kya khaayega aur kahaan vishraam karega ?" ab yogeene apana munh khola aur kahaa-' vah useeko khaayaga aur vaheen par vishraam karegaa.' yah jeev kya khaata hai aur kahaan kaise rahata hai, isaka uttar yah hai ki 'sookshm aatma hridayake antastalamen rahakar prakritike kamauka drashtaaroopase upabhog karata hai. vah kshetrajnaroopamen asang hokar prakritike khelaka aanand leta hai.' madhurakavine apane guruko pahachaan liya aur bhaktaraajane bhee apane shishyako dhoondha़ nikaala, jisakee ve bahut dinonse baat dekh rahe the. ve is asat (shareera) ke andar sat (paramaatmaa) ke roopamen vidyamaan the.

madhur kavine apane gurukee stuti karate hue kahaa-'main inhen chhoda़kar doosare kiseeko naheen jaanataa. main inhonke gun gaaoonga, main inheenka bhakt hoon. haaya! mainne abatak sansaarake padaarthonka hee bharosa kiyaa. main kitana abhimaanee aur moorkh thaa. saty to yahee hai. mujhe aaj usakee upalabdhi huee. ab main apane shesh jeevanako inheenkee keertika chaaron dishaaonmen prachaar karanemen bitaaoongaa. inhonne aaj mujhe vedonka saar tattv bataaya hai. inake charanonmen prem karana hee mere jeevanaka ekamaatr saadhan hogaa.'

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