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श्रीभगवतरसिकजी की मार्मिक कथा
श्रीभगवतरसिकजी की अधबुत कहानी - Full Story of श्रीभगवतरसिकजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [श्रीभगवतरसिकजी]- भक्तमाल


श्रीभगवतरसिकजीका जन्म संवत् 1795 में सागर जिलेके गढ़कोटा स्थानमें हुआ था। टट्टी-सम्प्रदाय के मुख्याचायोंमें श्रीस्वामी ललितकिशोरीजीके शिष्य श्रीस्वामी ललितमोहिनीदासजीके कृपापात्र शिष्य श्रीभगवतरसिकजी थे। इनकी उपासना श्रीविहारीजीकी थी। ये स्वामी श्रीहरिदासजीके सम्प्रदायके संत थे।

कहते हैं कि भगवतरसिकजी पहले श्रीगणेशजीके उपासक थे। अपनी अनन्य निष्ठा और एकान्त उपासनासे इन्होंने भगवान् श्रीगणेशजीको प्रत्यक्ष कर लिया था। श्रीगणेशजीने ही पहले इन्हें श्रीकृष्णभगवान्‌की अनन्य प्रेमलक्षणा भक्ति 'सखीभाव' से करनेका उपदेश दिया और उसकी सिद्धिका वरदान भी दिया। यह बात इनके निम्नलिखित पदसे भी प्रकट होती है-

हमैं बर गुरु गनेस है दोनों।

जल भरि सँड फिराय सीसपर संसकार सुभ कीनों ।।

दै प्रसाद परतीति बढ़ाई, दुख दारिद सब छीनों।

अपने पाँच रूप दरसाए, सुख उपजाइ नवीनों ॥

व्यापक पूज्य सखी आचारज अति ऐश्वर्यं प्रबीनों।

लोक- बेद-भय-भर्म भगाए, ताप सिराए तीनों ॥

आनंदघन को पद दरसायौ, दंपति रति-रस भीनों।

भगवतरसिक लड़ती लालन ललित भुजन भरि लीनों ॥

टट्टी-सम्प्रदाय के अष्टाचायोंमें सबसे अन्तिम श्रीललित मोहिनीदासजीके गोलोक सिधारनेपर भक्त महानुभावोंके अत्यन्त आग्रह करनेपर भी श्रीभगवतरसिकजीने गद्दीका अधिकार नहीं लिया और ये जन्मभर निर्लिप्त भावसे श्रीजीकी सेवामें लगे रहे। यथार्थ तो यह है कि ये 'महात्मा श्रीकृष्ण-भक्तिमें लीन एक प्रेमयोगी थे। श्रीकृष्णभक्तिके सखी-सम्प्रदाय के भक्त-प्रेमी भावुक महाकवियों में इनका आसन श्रेष्ठ है। इस प्रेमयोगी कविका हृदय प्रेमरससे सराबोर था इन्होंने स्वयं लिखा है-

'भगवतरसिक रसिक की बातें रसिक बिना कोड समुझि सकै ना।'

इनके रचे हुए पाँच ग्रन्थ बतलाये जाते हैं

(1) अनन्यनिचयात्मक, (2) श्रीनित्यविहारीयुगलध्यान,

(3) अनन्यरसिकाभरण, (4) निश्चयात्मक ग्रन्थ, उत्तरार्ध

(5) निर्बोधमनरञ्जन इनकी रचनाओंका एक संग्रह ग्रन्थ 'भगवतरसिककी वाणी के नामसे वर्तमान महंतने प्रकाशित किया है। श्रीभगवतरसिकजी अपनी उपासनापद्धतिके सम्बन्धमें लिखते हैं-

कुंजन ते उठि प्रात गात जमुना मैं धोवै ।

निधि बन कर दंडवत, बिहारी को मुख जोवै ॥

करै भावना बैठि स्वच्छ थल रहित उपाधा।

घर-घर लेय प्रसाद, लगे जब भोजन साधा ॥

संग करे भगवत रसिक, कर करवा, गूदरि गरे।

वृंदावन बिहरत फिर, जुगल रूप नैनन भरें ॥

श्रीभगवतरसिकजीके मतानुसार संतका लक्षण इस
प्रकार है-

इतने गुन जायें सो संत।

श्रीभागवत मध्य जस गावत श्रीमुख कमलाकंत ॥

हरि को भजन, साधु की सेवा, सर्व भूत पर दाया l

हिंसा, लोभ, दंभ, छल त्यागै, बिष सम देखे माया ॥

सहनसील, आसय उदार अति, धीरज सहित विवेकी।

सत्य बचन सबकों सुखदायक, गहि अनन्य व्रत एकी।

इंद्रीजित, अभिमान न जाके, करे जगत को पावन।

'भगवतरसिक' तासुकी संगति तीनहुँ ताप नसावन ॥



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shreebhagavatarasikajeeka janm sanvat 1795 men saagar jileke gaढ़kota sthaanamen hua thaa. tattee-sampradaay ke mukhyaachaayonmen shreesvaamee lalitakishoreejeeke shishy shreesvaamee lalitamohineedaasajeeke kripaapaatr shishy shreebhagavatarasikajee the. inakee upaasana shreevihaareejeekee thee. ye svaamee shreeharidaasajeeke sampradaayake sant the.

kahate hain ki bhagavatarasikajee pahale shreeganeshajeeke upaasak the. apanee anany nishtha aur ekaant upaasanaase inhonne bhagavaan shreeganeshajeeko pratyaksh kar liya thaa. shreeganeshajeene hee pahale inhen shreekrishnabhagavaan‌kee anany premalakshana bhakti 'sakheebhaava' se karaneka upadesh diya aur usakee siddhika varadaan bhee diyaa. yah baat inake nimnalikhit padase bhee prakat hotee hai-

hamain bar guru ganes hai donon.

jal bhari sand phiraay seesapar sansakaar subh keenon ..

dai prasaad parateeti badha़aaee, dukh daarid sab chheenon.

apane paanch roop darasaae, sukh upajaai naveenon ..

vyaapak poojy sakhee aachaaraj ati aishvaryan prabeenon.

loka- beda-bhaya-bharm bhagaae, taap siraae teenon ..

aanandaghan ko pad darasaayau, danpati rati-ras bheenon.

bhagavatarasik laड़tee laalan lalit bhujan bhari leenon ..

tattee-sampradaay ke ashtaachaayonmen sabase antim shreelalit mohineedaasajeeke golok sidhaaranepar bhakt mahaanubhaavonke atyant aagrah karanepar bhee shreebhagavatarasikajeene gaddeeka adhikaar naheen liya aur ye janmabhar nirlipt bhaavase shreejeekee sevaamen lage rahe. yathaarth to yah hai ki ye 'mahaatma shreekrishna-bhaktimen leen ek premayogee the. shreekrishnabhaktike sakhee-sampradaay ke bhakta-premee bhaavuk mahaakaviyon men inaka aasan shreshth hai. is premayogee kavika hriday premarasase saraabor tha inhonne svayan likha hai-

'bhagavatarasik rasik kee baaten rasik bina kod samujhi sakai naa.'

inake rache hue paanch granth batalaaye jaate hain

(1) ananyanichayaatmak, (2) shreenityavihaareeyugaladhyaan,

(3) ananyarasikaabharan, (4) nishchayaatmak granth, uttaraardha

(5) nirbodhamanaranjan inakee rachanaaonka ek sangrah granth 'bhagavatarasikakee vaanee ke naamase vartamaan mahantane prakaashit kiya hai. shreebhagavatarasikajee apanee upaasanaapaddhatike sambandhamen likhate hain-

kunjan te uthi praat gaat jamuna main dhovai .

nidhi ban kar dandavat, bihaaree ko mukh jovai ..

karai bhaavana baithi svachchh thal rahit upaadhaa.

ghara-ghar ley prasaad, lage jab bhojan saadha ..

sang kare bhagavat rasik, kar karava, goodari gare.

vrindaavan biharat phir, jugal roop nainan bharen ..

shreebhagavatarasikajeeke mataanusaar santaka lakshan isa
prakaar hai-

itane gun jaayen so santa.

shreebhaagavat madhy jas gaavat shreemukh kamalaakant ..

hari ko bhajan, saadhu kee seva, sarv bhoot par daaya l

hinsa, lobh, danbh, chhal tyaagai, bish sam dekhe maaya ..

sahanaseel, aasay udaar ati, dheeraj sahit vivekee.

saty bachan sabakon sukhadaayak, gahi anany vrat ekee.

indreejit, abhimaan n jaake, kare jagat ko paavana.

'bhagavatarasika' taasukee sangati teenahun taap nasaavan ..

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