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महाराज व्रजनिधि की मार्मिक कथा
महाराज व्रजनिधि की अधबुत कहानी - Full Story of महाराज व्रजनिधि (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [महाराज व्रजनिधि]- भक्तमाल


महाराज व्रजनिधि भगवान् श्रीकृष्ण और उनकी प्राणेश्वरी श्रीमती राधारानीके चरण-कमलके उपासक थे। वे भगवान् के रूप-रस-माधुर्यके अनन्य भक्त थे। उन्होंने भगवद्गुणगानसे अपनी काव्यसाधना सफल की।

महाराज व्रजनिधिका जन्म संवत् 1821 वि0 में हुआ था। उनका नाम प्रतापसिंह सवाई था। वे जयपुर राज्यके अधिपति थे। यद्यपि उनका अधिकांश समय राजकार्य और रणस्थलमें ही बीता था, तो भी भक्ति रसकी तरङ्गमें वे अपने कुलदेवता भगवान् व्रजनिधिके सम्बन्धमें सरस और माधुर्य-गुणोपेत पदोंकी रचना किया करते थे।

जगन्नाथभट्ट उनके दीक्षा गुरु थे। उन्होंने ही महाराज व्रजनिधिके हृदयमें भक्ति भावना सुदृढ़ की थी। महाराजने उनका श्रद्धापूर्वक आभार स्वीकार किया है। महाराज व्रजनिधिने ऐश्वर्यके वातावरणमें माधुर्य और श्रीकृष्ण भक्तिका जो स्रोत प्रवाहित किया, वह उनके अनन्य भगवत्प्रेमका परिचायक है।

वे ठाकुरजीको नित्य पाँच पद नये समर्पित किया करते थे। उनके स्नेह-विहार, विरह- सलिता, रासका रेखता आदि ग्रन्थोंके अवलोकनसे पता चलता है कि उनमें पवित्र भगवद्भक्ति और दिव्य प्रेमका समुद्र उमड़ा करता था। वे शुद्ध सात्त्विक शृङ्गार-रसमें पद-रचना करके प्रभुको रिझाते रहनेमें ही आत्मानन्दकी पूर्ण उपलब्धि करते थे। उनमें व्रज भूमिके प्रति अपारअनुरक्ति थी। वे व्रज-रजमें लोटते रहनेकी सदा उत्कट इच्छा किया करते थे। व्रजरसके सामने उन्हें राजसुख अत्यन्त फीका लगता था। उन्हें अनेकों बार भगवान् श्रीकृष्णके प्रत्यक्ष दर्शन भी हुए थे। उनका पद 'आजु मैं अँखियन को फल पायो' इस तथ्यका पुष्ट प्रमाण है। सुन्दर श्याम सलोने नन्दनन्दनपर उन्होंने अपना सर्वस्व निछावर कर दिया था। उन्होंने एक स्थलपर अपना कृष्णानुराग प्रकट किया है l

प्यारौ ब्रज को ही सिंगार।

मोर पखा अरु लकुट बाँसुरी, गर गुंजन को हार ॥

बन बन गोधन संग डोलिबो, गोपन सों कर यारी।

सुनि सुनि के सुख मानत मोहन ब्रजबासिन की गारी ॥

बिधि सिव सेस सनक नारद से जाको पार न पावैं।

ताकों घर बाहर ब्रजसुंदरि नाना नाच नचावैं ॥

ऐसो परम छबीलो ठाकुर कहौ काहि नहिं भावै।

'बजनिधि' सोई जानिहै यह रस, जाहि स्याम अपनावै ॥

व्रजनिधिने अपनी सरस और भक्तिपूर्ण पद-रचनामें परम रसिक नागरीदासजीकी काव्यपरम्पराका अनुगमन किया। नागरसमुच्चयके पदोंसे उनकी रचनाका अधिक साम्य है। वास्तवमें उनका जीवन धन्य था कि संघर्षमें रहकर भी उन्होंने अपने उपास्य राधा-कृष्णकी भक्तिका अलौकिक आनन्द लाभ किया। सं0 1860 वि0 में उनका देहावसान हो गया।



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mahaaraaj vrajanidhi bhagavaan shreekrishn aur unakee praaneshvaree shreematee raadhaaraaneeke charana-kamalake upaasak the. ve bhagavaan ke roopa-rasa-maadhuryake anany bhakt the. unhonne bhagavadgunagaanase apanee kaavyasaadhana saphal kee.

mahaaraaj vrajanidhika janm sanvat 1821 vi0 men hua thaa. unaka naam prataapasinh savaaee thaa. ve jayapur raajyake adhipati the. yadyapi unaka adhikaansh samay raajakaary aur ranasthalamen hee beeta tha, to bhee bhakti rasakee tarangamen ve apane kuladevata bhagavaan vrajanidhike sambandhamen saras aur maadhurya-gunopet padonkee rachana kiya karate the.

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ve thaakurajeeko nity paanch pad naye samarpit kiya karate the. unake sneha-vihaar, viraha- salita, raasaka rekhata aadi granthonke avalokanase pata chalata hai ki unamen pavitr bhagavadbhakti aur divy premaka samudr umada़a karata thaa. ve shuddh saattvik shringaara-rasamen pada-rachana karake prabhuko rijhaate rahanemen hee aatmaanandakee poorn upalabdhi karate the. unamen vraj bhoomike prati apaaraanurakti thee. ve vraja-rajamen lotate rahanekee sada utkat ichchha kiya karate the. vrajarasake saamane unhen raajasukh atyant pheeka lagata thaa. unhen anekon baar bhagavaan shreekrishnake pratyaksh darshan bhee hue the. unaka pad 'aaju main ankhiyan ko phal paayo' is tathyaka pusht pramaan hai. sundar shyaam salone nandanandanapar unhonne apana sarvasv nichhaavar kar diya thaa. unhonne ek sthalapar apana krishnaanuraag prakat kiya hai l

pyaarau braj ko hee singaara.

mor pakha aru lakut baansuree, gar gunjan ko haar ..

ban ban godhan sang dolibo, gopan son kar yaaree.

suni suni ke sukh maanat mohan brajabaasin kee gaaree ..

bidhi siv ses sanak naarad se jaako paar n paavain.

taakon ghar baahar brajasundari naana naach nachaavain ..

aiso param chhabeelo thaakur kahau kaahi nahin bhaavai.

'bajanidhi' soee jaanihai yah ras, jaahi syaam apanaavai ..

vrajanidhine apanee saras aur bhaktipoorn pada-rachanaamen param rasik naagareedaasajeekee kaavyaparamparaaka anugaman kiyaa. naagarasamuchchayake padonse unakee rachanaaka adhik saamy hai. vaastavamen unaka jeevan dhany tha ki sangharshamen rahakar bhee unhonne apane upaasy raadhaa-krishnakee bhaktika alaukik aanand laabh kiyaa. san0 1860 vi0 men unaka dehaavasaan ho gayaa.

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