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भक्त साँवता माली की मार्मिक कथा
भक्त साँवता माली की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त साँवता माली (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त साँवता माली]- भक्तमाल


पण्ढरपुरसे दस-बारह मीलपर अरणभेंडी नामक एक ग्राम है। साँवता यहींके रहनेवाले थे। इनका जन्म शाके 1172 में हुआ था। इनके पिताका नाम परसुवा और माताका नांगिता बाई था। ये मालीका काम करते और वनमाली श्रीविट्ठलको भजते थे। एक बार श्रीज्ञानेश्वरजी और श्रीनामदेवजी श्रीविट्ठलभगवान्‌के सङ्ग संत कूर्मदाससे मिलने जा रहे थे । अरणभेंडी स्थानके समीप जब आपलोग आये, तब भगवान्ने इन दोनों महात्माओंसे कहा कि 'तुमलोग जरा ठहर जाओ, मैं अभी साँवतासे मिलकर आता हूँ।' यह कहकर भगवान् साँवताके पास पहुँचे और बोले—'साँवता ! तू मुझे जल्दी कहीं छिपा दे, दो चोर मेरे पीछे पड़े हैं।' साँवताने तुरंत खुरपेसे अपना पेट चीरा और उसमें भगवान्‌को छिपाकर ऊपरसे एक चादर ओढ़ ली । इधर ज्ञानदेवजी और नामदेवजी भगवान्‌की प्रतीक्षा कर रहे हैं। जब बहुत काल बीत गया, तब दोनों साँवताके यहाँ गये। साँवता नाममें मग्नथे; इससे यह निश्चय हो गया कि भगवान् यहीं कहीं छिपे हैं। ज्ञानदेवजी और नामदेवजी दोनोंने साँवता भैयासे प्रार्थना की कि 'भाई! भगवान्‌के दर्शन तो करा दो।' साँवताने भगवान्‌को बाहर निकाला। तब सभी प्रेमसे गद्गद हो गये। साँवता सर्वत्र सब पदार्थोंके अंदर एक भगवान्‌को ही देखा करते थे। भगवन्नाममें भी उनकी बड़ी विलक्षण निष्ठा थी। एक अभंगमें उन्होंने कहा है- 'नामका ऐसा बल है कि मैं अब किसीसे भी नहीं डरता और कलिकालके सिरपर डंडे जमाया करता हूँ। विट्ठलनाम गाकर और नाचकर हमलोग उन वैकुण्ठपतिको यहीं अपने कीर्तनमें बुला लिया करते हैं। इसी भजनानन्दकी दिवाली मनाते हैं और चित्तमें उन वनमालीको पकड़कर पूजा किया करते हैं। साँवता कहता है कि 'भक्तिके इस मार्गपर चले चलो, चारों मुक्तियाँ द्वारपर आ गिरेंगी।' साँवताजीने शाके 1217 की आषाढ़ कृष्णा 14 को समाधि ली।



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pandharapurase dasa-baarah meelapar aranabhendee naamak ek graam hai. saanvata yaheenke rahanevaale the. inaka janm shaake 1172 men hua thaa. inake pitaaka naam parasuva aur maataaka naangita baaee thaa. ye maaleeka kaam karate aur vanamaalee shreevitthalako bhajate the. ek baar shreejnaaneshvarajee aur shreenaamadevajee shreevitthalabhagavaan‌ke sang sant koormadaasase milane ja rahe the . aranabhendee sthaanake sameep jab aapalog aaye, tab bhagavaanne in donon mahaatmaaonse kaha ki 'tumalog jara thahar jaao, main abhee saanvataase milakar aata hoon.' yah kahakar bhagavaan saanvataake paas pahunche aur bole—'saanvata ! too mujhe jaldee kaheen chhipa de, do chor mere peechhe pada़e hain.' saanvataane turant khurapese apana pet cheera aur usamen bhagavaan‌ko chhipaakar ooparase ek chaadar odha़ lee . idhar jnaanadevajee aur naamadevajee bhagavaan‌kee prateeksha kar rahe hain. jab bahut kaal beet gaya, tab donon saanvataake yahaan gaye. saanvata naamamen magnathe; isase yah nishchay ho gaya ki bhagavaan yaheen kaheen chhipe hain. jnaanadevajee aur naamadevajee dononne saanvata bhaiyaase praarthana kee ki 'bhaaee! bhagavaan‌ke darshan to kara do.' saanvataane bhagavaan‌ko baahar nikaalaa. tab sabhee premase gadgad ho gaye. saanvata sarvatr sab padaarthonke andar ek bhagavaan‌ko hee dekha karate the. bhagavannaamamen bhee unakee bada़ee vilakshan nishtha thee. ek abhangamen unhonne kaha hai- 'naamaka aisa bal hai ki main ab kiseese bhee naheen darata aur kalikaalake sirapar dande jamaaya karata hoon. vitthalanaam gaakar aur naachakar hamalog un vaikunthapatiko yaheen apane keertanamen bula liya karate hain. isee bhajanaanandakee divaalee manaate hain aur chittamen un vanamaaleeko pakada़kar pooja kiya karate hain. saanvata kahata hai ki 'bhaktike is maargapar chale chalo, chaaron muktiyaan dvaarapar a girengee.' saanvataajeene shaake 1217 kee aashaadha़ krishna 14 ko samaadhi lee.

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