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भक्त रामकृष्ण मुनि की मार्मिक कथा
भक्त रामकृष्ण मुनि की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त रामकृष्ण मुनि (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त रामकृष्ण मुनि]- भक्तमाल


यह मनुष्य जीवन बड़ा दुर्लभ है। इसकी प्राप्ति संसारका सुख भोगनेके लिये नहीं, भगवान्‌को प्राप्त करके संसार-बन्धनसे मुक्त हो जानेके लिये ही हुई है। वे लोग बड़े भाग्यशाली हैं, जो भगवान्‌के लिये लौकिक सुखोंपर लात मारकर कठिन से कठिन तपस्या में प्रवृत्त हो जाते हैं। प्राचीन कालमें विप्रवर रामकृष्ण मुनि ऐसे ही महात्मा हो गये हैं। वे महान् सत्यवादी, शीलवान् श्रेष्ठ भगवद्भक्त, समस्त प्राणियोंपर दया करनेवाले, शत्रु और मित्रके प्रति समान भाव रखनेवाले, जितात्मा जितेन्द्रिय और तपस्वी तथा ब्रह्मनिष्ठ एवं तत्त्ववेत्ता थे। एक दिन भगवान्‌के सच्चिदानन्दमय सगुण साकार विग्रहका दर्शन करनेके लिये वे वेङ्कटाचलके मनोरम शिखरपर गये और एक सरोवरके तटपर तपस्या करने लगे। वे अपने सब अङ्गोंको स्थिर करके खड़े रहते थे। इस प्रकार कई सौ वर्ष व्यतीत हो गये। उनके शरीरपर वल्मीक (बाँबी) की मिट्टी जम गयी, जिससे उनके सब अङ्ग आच्छादित हो गये। तो भी महामुनि रामकृष्ण तपस्यासे विचलित नहीं हुए। देवराज इन्द्रको उनकी तपस्यासे भय हो गया। वे यह नहीं जानते थे कि वीतराग महात्माकी दृष्टिमें स्वर्गके समस्त भोग सूकरविष्ठासे भी गये-बीते हैं। उन्होंने अपने स्वभावके अनुसार महर्षिको तपस्यासे विचलित करनेके लिये घोर प्रयत्न किया। मेघोंको भेजकर उनके ऊपर बड़े वेग से मूसलधार वृष्टि करवायी। लगातार सात दिनोंतक वर्षा होती रही, फिर भी मुनिने अपने नेत्र बंद करके वर्षाके दुःसह कष्टको सहन किया। तत्पश्चात्बड़ी भारी गड़गड़ाहटके साथ बिजली ठीक वल्मीकके ऊपर गिरी। वल्मीक ढह गया परंतु मुनिपर आँच नहीं आयी। रामकृष्णने आँख खोलकर देखा तो सामने शङ्ख चक्र-गदाधारी भगवान् विष्णु विराजमान हैं। वे गरुड़पर आरूढ़ थे। गलेमें मनोहर वनमाला उनकी शोभा बढ़ा रही थी। उनका त्रिभुवनमोहन रूप देखकर रामकृष्ण मुनि कृतार्थ हो गये। उनकी आँखें एकटक होकर भगवान्‌की रूपसुधाका पान करने लगीं। भगवान्ने मुनिके कानोंमें अमृत उड़ेलते हुए मधुर वचनोंमें कहा- 'रामकृष्ण ! तुम वेद-शास्त्रोंके पारङ्गत विद्वान् और तपस्याकी निधि हो। तुम्हारे इस दुष्कर तपसे मैं बहुत सन्तुष्ट हूँ। आज मेरे प्रादुर्भावका दिन है, सूर्य मकरराशिपर विराजमान हैं, महातिथि पूर्णिमाका भी योग आ पहुँचा है। साथ ही पुष्यनक्षत्रका भी सुयोग आ गया है। आजके दिन तुम्हें स्नानपूर्वक मेरा दर्शन हुआ है, अत: तुम्हारा सम्पूर्ण मनोरथ सफल होगा। इस शरीरका अन्त होनेपर तुम मेरे योगिजनदुर्लभ वैकुण्ठ धाममें निवास करोगे। आजसे यह सरोवर तुम्हारे पवित्र नामकी स्मृतिसे युक्त होकर 'कृष्णतीर्थ' के नामसे विख्यात होगा। तुम्हारे जैसे संतपुरुष ही महातीर्थरूप हैं। उनके सम्पर्कसे ही तीर्थोंमें तीर्थत्व प्रकट होता है। जो लोग यहाँ स्नान करेंगे, वे भी सब पापोंसे मुक्त होकर उत्तम गतिके भागी होंगे।'

यों कहकर भगवान् अन्तर्धान हो गये। आज भी वह महातीर्थ मुनिवर रामकृष्णके भक्तिभावका पवित्र संस्मरण कराता हुआ वेंकटगिरिकी शोभा बढ़ा रहा है।



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yon kahakar bhagavaan antardhaan ho gaye. aaj bhee vah mahaateerth munivar raamakrishnake bhaktibhaavaka pavitr sansmaran karaata hua venkatagirikee shobha badha़a raha hai.

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