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हनुमान चालीसासे भयंकर रोगसे छुटकारा

सन् १९५२-५३ की घटना है, जब मैं उच्च प्राथमिक विद्यालयका विद्यार्थी था। दैवी प्रेरणासे मुझे अचानक ही लाल वस्त्रोंसे प्रेम हो गया और मैं हनुमान चालीसाका दैनिक पाठक बन गया। उन दिनों हमारे ग्राममें नवयुवक एवं वृद्धोंके लिये राममण्डली तथा किशोरों एवं बच्चोंके लिये हनुमानमण्डली चल रही थी। समय-समयपर हम सब साथी रामलीलामें भाग लेते थे और बाकी समयमें भगवद्विषयक चर्चा करते थे।

एक बार मुझे ज्वर हो गया और वह बिगड़ता हुआ टाइफाइडका रूप ले चुका था। सन्निपातकी स्थिति मानकर एक राजवैद्य ऊँची-से-ऊँची भस्म एवं रस रसायनद्वारा चिकित्सामें संलग्न थे, किंतु कुछ भी लाभ नहीं हो रहा था। मेरे पिताश्री जो कि देवीके भक्त एवं प्रकाण्ड ज्योतिषी थे, उन्होंने भी ग्रह-नक्षत्र एवं मेरी कुण्डली देखकर बता दिया था कि इसे अभी मारकेशकी दशा चल रही है, जीवन भाग्याधीन है।

मुझे एक-डेढ़ सप्ताहसे रात्रिको प्रायः निद्रा नहीं आती थी और दिनको भी मात्र झपकी ही लग जाती थी । हनुमान चालीसा मेरी जेबमें रहता और मैं जब भीअकेला होता, तब उसे पढ़ता रहता था। एक दिन दोपहरको पिताजी बाजार चले गये थे। और सब भाई-बहन पाठशालामें तथा मेरी माताजी गृहकार्यमें व्यस्त थीं, मुझे नींद आ गयी और मैं स्वप्न देखने लगा

'दो व्यक्ति मुझे पकड़कर एक बैलगाड़ीमें बिठाकर ले जा रहे थे, उनके हाथोंमें डण्डे थे और वे मुझे धमका रहे थे। रास्तेमें बड़े-बड़े मकान अट्टालिकाएँ दिखायी दीं, जो कि मैंने कभी देखी भी नहीं थीं; क्योंकि मैं गाँवके बाहर कभी गया ही नहीं था। आगे एक बड़ा दरवाजा आया। वहाँ मेरे परलोकवासी पितामह खड़े हुए थे। उन्होंने मुझे देखा तो वे उन दोनों व्यक्तियोंको आगे जानेसे रोकने लगे और मुझे छोड़ देनेके लिये बहुत आग्रह किया, लेकिन वे मुझे छोड़ने को तैयार नहीं हुए। तभी दरवाजेकी दीवारपर एक बड़ा बन्दर दिखायी दिया। वह उस बैलगाड़ीपर कूद गया और गाड़ी टूट गयी।' इतनेमें मेरी आँख खुली और मैं जोरसे चिल्लाया। शरीर पसीनेसे तर बतर हो गया। माँने आकर देखा मैं बुरी तरह हाँफरहा था। वह बाहर जाकर पिताजीको बुलानेके लिये किसीको भेज रही थी, तभी मैंने दवाओंकी शीशियाँ बोतलें फोड़ दीं और सूखी रोटीका टुकड़ा जो कि मेरी शय्याके सिरहाने रखा था, खाने लगा। माँने आव देखा न ताव, दो थप्पड़ गालपर मारकर कहने लगी- 'यह क्या कर रहा है? बेमौत मरेगा क्या? वैद्यजीने खाना बन्द कर रखा है। तुझको कल दालका पानी, परसों-तरसों दलिया खिचड़ी खिलायेंगे।'

तभी पिताजी आ गये और शीशियोंके टुकड़े देखतेहुए बोले- 'बेटा! सच-सच बता! क्या बात है ? क्यातू पागल हो गया है?' मैंने प्रारम्भसे अन्ततकका सारा वृत्तान्त सुनाया, सुनकर पिताजी आश्वस्त होकर बोले 'अब तुझे किसी दवाकी आवश्यकता नहीं है। हनुमान्जीकी कृपासे तू ठीक हो गया है। स्वप्नमें पितामहके रूपमें स्वयं धर्मराज और बन्दरके रूपमें हनुमान्जी ही थे। ' कुछ समय पश्चात् वैद्यजी आये, तापमानको नापकर एवं नाड़ी-स्पन्दनकी जाँचकर उन्होंने सब कुछ खाने पीनेकी छूट कर दी। मैं हनुमान चालीसाकी पंक्ति दोहरा रहा था - नासै रोग हरै सब पीरा ॥

[ श्रीसुरेशचन्द्रजी मिश्र शास्त्री ]



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hanumaan chaaleesaase bhayankar rogase chhutakaaraa

san 1952-53 kee ghatana hai, jab main uchch praathamik vidyaalayaka vidyaarthee thaa. daivee preranaase mujhe achaanak hee laal vastronse prem ho gaya aur main hanumaan chaaleesaaka dainik paathak ban gayaa. un dinon hamaare graamamen navayuvak evan vriddhonke liye raamamandalee tatha kishoron evan bachchonke liye hanumaanamandalee chal rahee thee. samaya-samayapar ham sab saathee raamaleelaamen bhaag lete the aur baakee samayamen bhagavadvishayak charcha karate the.

ek baar mujhe jvar ho gaya aur vah bigada़ta hua taaiphaaidaka roop le chuka thaa. sannipaatakee sthiti maanakar ek raajavaidy oonchee-se-oonchee bhasm evan ras rasaayanadvaara chikitsaamen sanlagn the, kintu kuchh bhee laabh naheen ho raha thaa. mere pitaashree jo ki deveeke bhakt evan prakaand jyotishee the, unhonne bhee graha-nakshatr evan meree kundalee dekhakar bata diya tha ki ise abhee maarakeshakee dasha chal rahee hai, jeevan bhaagyaadheen hai.

mujhe eka-dedha़ saptaahase raatriko praayah nidra naheen aatee thee aur dinako bhee maatr jhapakee hee lag jaatee thee . hanumaan chaaleesa meree jebamen rahata aur main jab bheeakela hota, tab use padha़ta rahata thaa. ek din dopaharako pitaajee baajaar chale gaye the. aur sab bhaaee-bahan paathashaalaamen tatha meree maataajee grihakaaryamen vyast theen, mujhe neend a gayee aur main svapn dekhane lagaa

'do vyakti mujhe pakada़kar ek bailagaada़eemen bithaakar le ja rahe the, unake haathonmen dande the aur ve mujhe dhamaka rahe the. raastemen bada़e-bada़e makaan attaalikaaen dikhaayee deen, jo ki mainne kabhee dekhee bhee naheen theen; kyonki main gaanvake baahar kabhee gaya hee naheen thaa. aage ek bada़a daravaaja aayaa. vahaan mere paralokavaasee pitaamah khada़e hue the. unhonne mujhe dekha to ve un donon vyaktiyonko aage jaanese rokane lage aur mujhe chhoda़ deneke liye bahut aagrah kiya, lekin ve mujhe chhoda़ne ko taiyaar naheen hue. tabhee daravaajekee deevaarapar ek bada़a bandar dikhaayee diyaa. vah us bailagaada़eepar kood gaya aur gaada़ee toot gayee.' itanemen meree aankh khulee aur main jorase chillaayaa. shareer paseenese tar batar ho gayaa. maanne aakar dekha main buree tarah haanpharaha thaa. vah baahar jaakar pitaajeeko bulaaneke liye kiseeko bhej rahee thee, tabhee mainne davaaonkee sheeshiyaan botalen phoda़ deen aur sookhee roteeka tukada़a jo ki meree shayyaake sirahaane rakha tha, khaane lagaa. maanne aav dekha n taav, do thappada़ gaalapar maarakar kahane lagee- 'yah kya kar raha hai? bemaut marega kyaa? vaidyajeene khaana band kar rakha hai. tujhako kal daalaka paanee, parason-tarason daliya khichada़ee khilaayenge.'

tabhee pitaajee a gaye aur sheeshiyonke tukada़e dekhatehue bole- 'betaa! sacha-sach bataa! kya baat hai ? kyaatoo paagal ho gaya hai?' mainne praarambhase antatakaka saara vrittaant sunaaya, sunakar pitaajee aashvast hokar bole 'ab tujhe kisee davaakee aavashyakata naheen hai. hanumaanjeekee kripaase too theek ho gaya hai. svapnamen pitaamahake roopamen svayan dharmaraaj aur bandarake roopamen hanumaanjee hee the. ' kuchh samay pashchaat vaidyajee aaye, taapamaanako naapakar evan naada़ee-spandanakee jaanchakar unhonne sab kuchh khaane peenekee chhoot kar dee. main hanumaan chaaleesaakee pankti dohara raha tha - naasai rog harai sab peera ..

[ shreesureshachandrajee mishr shaastree ]

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