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नाम-जपकी एक आश्चर्यजनक घटना

मुझसे आयुमें सात-आठ वर्ष बड़े मेरे एक मित्र थे, जो 'हरिः ॐ तत्सत्' के नामसे जाने जाते थे। नमस्कारमें भी वे इन्हीं शब्दोंका प्रयोग करते थे तथा उन्हींसे अपनेको सम्बोधित किया जाना उपयुक्त समझते थे। अद्वैत वेदान्तदर्शनमें उनकी अविचल आस्था थी। अन्य लोग भी इसी सिद्धान्तपर चलें - यह उनकी उत्कट लालसा थी। उन्हें आश्चर्य था कि लोग इस साधारण-सी बातको क्यों नहीं समझते और अन्यथा आचरण करते हैं! उनका आवास मेरे आवाससे लगभग एक किलोमीटरकी दूरीपर था।

अकस्मात् मुझे एक सज्जनने सूचित किया कि 'हरिः ॐ तत्सत्' का निधन हो गया है। मैं भागता हुआ उनके आवासपर पहुँचा। उनके लड़के विदेशमें थे, अतः अन्तिम संस्कारके लिये उनकी प्रतीक्षा की जा रही थी। घरपर नौकरोंके अतिरिक्त संवेदना व्यक्त करने आये हुए कुछ व्यक्ति थे। उनका शव कमरेमें ही रखा हुआ था। उनकाचेहरा तेजसे उद्दीप्त था, माथेपर चन्दन आदि लगा दिया गया था। मैंने उन्हें प्रणाम किया और सन्तप्त हृदयसे घर चला आया।

कुछ दिन बाद मेरे एक अधिवक्ता मित्र, जो उनके भी घनिष्ठ थे, मुझे मिले। उन्होंने जो मुझे बताया वह मेरे लिये आश्चर्यकी बात थी। उन्होंने कहा कि मैंने मृत्युके लगभग छः घंटे बाद 'हरिः ॐ तत्सत्' के शवका मोबाइल कैमरेसे चित्रांकन किया। चित्रके साथ ही उसमें कुछ ध्वनि तरंगोंका भी समावेश हो गया, उन्होंने मोबाइल मेरे कानमें लगाया तो उससे लगातार ‘हरिः ॐ तत्सत्' ‘हरिः ॐ तत्सत्' की ध्वनि निकल रही थी। मैं आश्चर्यमें डूब गया तथा इसका वैज्ञानिक विश्लेषण करनेकी चेष्टा करने लगा। मेरे लिये यह एक अद्भुत घटना थी, किंतु सत्य तो सत्य ही था।

[ श्री एन०एल० पाण्डेय ]



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naama-japakee ek aashcharyajanak ghatanaa

mujhase aayumen saata-aath varsh bada़e mere ek mitr the, jo 'harih oM tatsat' ke naamase jaane jaate the. namaskaaramen bhee ve inheen shabdonka prayog karate the tatha unheense apaneko sambodhit kiya jaana upayukt samajhate the. advait vedaantadarshanamen unakee avichal aastha thee. any log bhee isee siddhaantapar chalen - yah unakee utkat laalasa thee. unhen aashchary tha ki log is saadhaarana-see baatako kyon naheen samajhate aur anyatha aacharan karate hain! unaka aavaas mere aavaasase lagabhag ek kilomeetarakee dooreepar thaa.

akasmaat mujhe ek sajjanane soochit kiya ki 'harih oM tatsat' ka nidhan ho gaya hai. main bhaagata hua unake aavaasapar pahunchaa. unake lada़ke videshamen the, atah antim sanskaarake liye unakee prateeksha kee ja rahee thee. gharapar naukaronke atirikt sanvedana vyakt karane aaye hue kuchh vyakti the. unaka shav kamaremen hee rakha hua thaa. unakaachehara tejase uddeept tha, maathepar chandan aadi laga diya gaya thaa. mainne unhen pranaam kiya aur santapt hridayase ghar chala aayaa.

kuchh din baad mere ek adhivakta mitr, jo unake bhee ghanishth the, mujhe mile. unhonne jo mujhe bataaya vah mere liye aashcharyakee baat thee. unhonne kaha ki mainne mrityuke lagabhag chhah ghante baad 'harih oM tatsat' ke shavaka mobaail kaimarese chitraankan kiyaa. chitrake saath hee usamen kuchh dhvani tarangonka bhee samaavesh ho gaya, unhonne mobaail mere kaanamen lagaaya to usase lagaataar ‘harih oM tatsat' ‘harih oM tatsat' kee dhvani nikal rahee thee. main aashcharyamen doob gaya tatha isaka vaijnaanik vishleshan karanekee cheshta karane lagaa. mere liye yah ek adbhut ghatana thee, kintu saty to saty hee thaa.

[ shree ena0ela0 paandey ]

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