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भक्त गरीबदासजी की मार्मिक कथा
भक्त गरीबदासजी की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त गरीबदासजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त गरीबदासजी]- भक्तमाल


भक्त गरीबदासजी पूर्ण विरक्त और भगवन्निष्ठ महात्मा थे। पंजाब प्रान्तके रोहतक जिलेमें छुड़ानी गाँवमें उनका जन्म हुआ था। सं0 1774 वि0 वैशाख पूर्णिमाको उनकी तपोमयी दिव्य आत्मा धरतीपर उतरी थी। बचपनसे ही घरके काम-काजमें उनका मन नहीं लगता था। उनका स्वभाव उस समय अत्यन्त सीधा-सादा था, वे सरलता और विनम्रताकी प्रतिमूर्ति थे। वे सदा भगवान् के नामामृतका ही पान किया करते थे। उनपर संत कबीरकी वाणीका बड़ा प्रभाव था। कहते हैं कि संत कबीरजीने इन्हें स्वप्रमें मन्त्र दीक्षा दी थी।

उनके जीवनकालमें एक बार भीषण सूखा पड़ा। भक्त गरीबदासकी मौज ही तो थी, उनकी दयादृष्टिसे अनावृष्टिका अन्त हो गया। लोगोंसे अधिक मान-प्रतिष्ठा पाकर उनका जी ऊबने लगा। उन्होंने गाँव छोड़ देनेका निश्चय ही किया था कि भारतकी उत्तर-पश्चिम सीमापर यवनोंका आक्रमण आरम्भ हुआ। दिल्लीश्वरने उन्हें सादर राजधानीमें पधारनेका आमन्त्रण दिया। राजसभामें पहुँचनेपर बादशाहने उनका अच्छी तरह स्वागत-सत्कार किया। बादशाहने उनसे आक्रमण रोकनेके लिये निवेदन किया। साधु गरीबदास तो भगवान्‌के पूर्ण भक्त थे।उन्होंने सीधी-सादी, स्पष्ट और कपटरहित भाषामें बड़ी विनम्रताके साथ कहा-'यद्यपि यह सच है कि भगवान् संतोंके ही वशमें रहते हैं, अपने स्वजनोंके मनोऽनुकूल ही उनका प्रत्येक कार्य होता है और चारों युगका प्रमाण है कि जो कुछ संत करते हैं, वही ठीक है, तो भी वे भगवान्के प्रत्येक कार्यको अपने और दूसरोंके लिये पूर्ण हितकर समझते हैं।' उन्होंने बादशाहसे कहा कि 'ऐसे समयमें भगवत्कृपाकी ही शरण जाना अनिवार्य है। यदि तुम मदिरा-पान, गो-वध और बहुस्त्री-प्रसङ्गकी दुर्वृत्तिको बिलकुल त्याग दो तो निस्सन्देह तुम ईश्वरीय कृपाके पात्र हो जाओगे, भगवान् तुम्हें इस आपदासे अभय करेंगे। परंतु दुष्ट सचिवोंके बहकानेपर उसने गरीबदासकी बात तो न सुनी, उल्टा उन्हें कारागारमें डाल दिया। दूसरे दिन दरवाजे और ताले अपने आप खुल गये। बादशाहने क्षमा माँगी। गरीबदासने समझाया कि 'भगवान्‌के दासों और भक्तोंको कभी कष्ट नहीं देना चाहिये; क्योंकि साधु-संतके दुःखसे भगवान् स्वयं दुःखी हो जाते हैं।' वे अपने निवासस्थानपर वापस चले आये।

गरीबदासजीने इकसठ वर्षकी अवस्थामें सं0 1835 वि0 की भाद्र शुक्ला द्वितीयाको शरीर त्याग किया।



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bhakt gareebadaasajee poorn virakt aur bhagavannishth mahaatma the. panjaab praantake rohatak jilemen chhuda़aanee gaanvamen unaka janm hua thaa. san0 1774 vi0 vaishaakh poornimaako unakee tapomayee divy aatma dharateepar utaree thee. bachapanase hee gharake kaama-kaajamen unaka man naheen lagata thaa. unaka svabhaav us samay atyant seedhaa-saada tha, ve saralata aur vinamrataakee pratimoorti the. ve sada bhagavaan ke naamaamritaka hee paan kiya karate the. unapar sant kabeerakee vaaneeka bada़a prabhaav thaa. kahate hain ki sant kabeerajeene inhen svapramen mantr deeksha dee thee.

unake jeevanakaalamen ek baar bheeshan sookha pada़aa. bhakt gareebadaasakee mauj hee to thee, unakee dayaadrishtise anaavrishtika ant ho gayaa. logonse adhik maana-pratishtha paakar unaka jee oobane lagaa. unhonne gaanv chhoda़ deneka nishchay hee kiya tha ki bhaaratakee uttara-pashchim seemaapar yavanonka aakraman aarambh huaa. dilleeshvarane unhen saadar raajadhaaneemen padhaaraneka aamantran diyaa. raajasabhaamen pahunchanepar baadashaahane unaka achchhee tarah svaagata-satkaar kiyaa. baadashaahane unase aakraman rokaneke liye nivedan kiyaa. saadhu gareebadaas to bhagavaan‌ke poorn bhakt the.unhonne seedhee-saadee, spasht aur kapatarahit bhaashaamen bada़ee vinamrataake saath kahaa-'yadyapi yah sach hai ki bhagavaan santonke hee vashamen rahate hain, apane svajanonke mano'nukool hee unaka pratyek kaary hota hai aur chaaron yugaka pramaan hai ki jo kuchh sant karate hain, vahee theek hai, to bhee ve bhagavaanke pratyek kaaryako apane aur doosaronke liye poorn hitakar samajhate hain.' unhonne baadashaahase kaha ki 'aise samayamen bhagavatkripaakee hee sharan jaana anivaary hai. yadi tum madiraa-paan, go-vadh aur bahustree-prasangakee durvrittiko bilakul tyaag do to nissandeh tum eeshvareey kripaake paatr ho jaaoge, bhagavaan tumhen is aapadaase abhay karenge. parantu dusht sachivonke bahakaanepar usane gareebadaasakee baat to n sunee, ulta unhen kaaraagaaramen daal diyaa. doosare din daravaaje aur taale apane aap khul gaye. baadashaahane kshama maangee. gareebadaasane samajhaaya ki 'bhagavaan‌ke daason aur bhaktonko kabhee kasht naheen dena chaahiye; kyonki saadhu-santake duhkhase bhagavaan svayan duhkhee ho jaate hain.' ve apane nivaasasthaanapar vaapas chale aaye.

gareebadaasajeene ikasath varshakee avasthaamen san0 1835 vi0 kee bhaadr shukla dviteeyaako shareer tyaag kiyaa.

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