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असुर भक्त गुडाकेश की मार्मिक कथा
असुर भक्त गुडाकेश की अधबुत कहानी - Full Story of असुर भक्त गुडाकेश (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [असुर भक्त गुडाकेश]- भक्तमाल


बहुत पहले, सृष्टिके प्रारम्भमें ही महासुर गुडाकेश ताँबेका शरीर धारण करके चौदह हजार वर्षतक अडिग श्रद्धा और बड़ी दृढ़ताके साथ भगवान्की आराधना करता रहा। उसकी निश्चयपूर्ण तीव्र तपस्यासे सन्तुष्ट होकर भगवान् उसके रमणीय आश्रमपर प्रकट हुए। तपस्थानिरत गुडाकेश भगवान्‌को देखकर कितना आनन्दित हुआ, यह बात कहीं नहीं जा सकती। शङ्ख-चक्र गदाधारी, चतुर्बाहु पीताम्बर पहने, मन्द मन्द मुसकराते हुए भगवान्के चरणोंपर वह गिर पड़ा। उसके सारे शरीरमें रोमाञ्च हो आया, आँखोंसे आँसू बहने लगे, हृदय गद्गद हो गया, गला रुँध गया और वह उनसे कुछ भी बोल नहीं सका। थोड़ी देरके बाद जब कुछ संभला, तब अञ्जलि बाँधकर सिर झुकाकर भगवान के सामने खड़ा हो गया। भगवान्ने मुसकराते हुए कहा- 'निष्पाप गुडाकेश ! तुमने कर्मसे, मनसे, वाणीसे जिस वस्तुको वाञ्छनीय समझा हो, जो चीज तुम्हें अच्छी लगती हो, माँग लो। मैं आज तुम्हें सब कुछ दे सकता हूँ।' भगवान्की बात सुनकर गुडाकेशने विशुद्ध हृदयसे कहा—'भगवन्! यदि आप मुझपर पूर्णरूपसे प्रसन्न हैं तो ऐसी कृपा करें कि मैं जहाँ-जहाँ जन्म लूँ, हजारों जन्मतक आपके चरणोंमें ही मेरी दृढ़ भक्ति बनी रहे। भगवन्! एक बात और चाहता हूँ। आपके हाथसे छूटे हुए चक्रके द्वारा ही मेरी मृत्यु हो और जब चक्रसे मैं मारा जाऊँ, तब मेरे मांस, मज्जा आदि ताँबेके रूपमें हो जायें और वे अत्यन्त पवित्र हो उनकी पवित्रता इसीमें है कि उनमें भोग लगानेसे आपकी प्रसन्नता सम्पादितहो। अर्थात् मरनेपर भी मेरा शरीर आपके ही काममें आता रहे।' भगवान्ने उसकी प्रार्थना स्वीकार की और कहा- 'तबतक तुम ताँबा होकर ही रहो। यह ताँबा मुझे बड़ा प्रिय होगा। वैशाख शुक्ल द्वादशीके दिन मेरा चक्र तुम्हारा वध करेगा और तब तुम सदाके लिये मेरे पास चले जाओगे।' यह कहकर भगवान् अन्तर्हित हो गये। और वह मनमें इस उत्सुकताके साथ बड़ी तपस्या करने लगा कि कब वैशाख शुक्ल द्वादशी आये और कब अपने प्रियतमके हाथोंसे छूटे हुए चक्रके द्वारा मेरी मृत्यु हो, जो मुझे उनके प्यारसे भी मीठी होगी। अन्तमें वह द्वादशी आ गयी। बड़े उत्साहके साथ वह भगवान्‌की पूजा करके प्रार्थना करने लगा

मुञ्च मुञ्च प्रभो! चक्रमपि वह्निसमप्रभम् ।

आत्मा मे नीयतां शीघ्रं निकृत्याङ्गानि सर्वशः ॥

'प्रभो! शीघ्रातिशीघ्र धधकती हुई आगके समान जाज्वल्यमान चक्र मुझपर छोड़ो, अब विलम्ब मत करो। नाथ! मेरे शरीरको टुकड़े-टुकड़े करके मुझे शीघ्रातिशीघ्र अपने चरणोंकी सन्निधिमें बुला लो।' अपने भक्तकी सच्ची प्रार्थना सुनकर भगवान्ने तुरंत ही चक्रके द्वारा उसके शरीरको टुकड़े-टुकड़े करके अपने पास बुला लिया और अपने प्यारे भक्तका शरीर होनेके कारण वे आज भी ताँबेसे बहुत प्रेम करते हैं और वैष्णवलोग बड़े प्रेमसे ताँबेके पात्रमें भगवान्‌को अर्घ्यपादादि समर्पित करते हैं। इसीके मलसे सीसा, लाख, काँसा, रूपा और सोना आदि भी बने हैं। तभीसे भगवान्‌को ताँबा अत्यन्त प्रिय है।



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bahut pahale, srishtike praarambhamen hee mahaasur gudaakesh taanbeka shareer dhaaran karake chaudah hajaar varshatak adig shraddha aur bada़ee driढ़taake saath bhagavaankee aaraadhana karata rahaa. usakee nishchayapoorn teevr tapasyaase santusht hokar bhagavaan usake ramaneey aashramapar prakat hue. tapasthaanirat gudaakesh bhagavaan‌ko dekhakar kitana aanandit hua, yah baat kaheen naheen ja sakatee. shankha-chakr gadaadhaaree, chaturbaahu peetaambar pahane, mand mand musakaraate hue bhagavaanke charanonpar vah gir pada़aa. usake saare shareeramen romaanch ho aaya, aankhonse aansoo bahane lage, hriday gadgad ho gaya, gala rundh gaya aur vah unase kuchh bhee bol naheen sakaa. thoda़ee derake baad jab kuchh sanbhala, tab anjali baandhakar sir jhukaakar bhagavaan ke saamane khada़a ho gayaa. bhagavaanne musakaraate hue kahaa- 'nishpaap gudaakesh ! tumane karmase, manase, vaaneese jis vastuko vaanchhaneey samajha ho, jo cheej tumhen achchhee lagatee ho, maang lo. main aaj tumhen sab kuchh de sakata hoon.' bhagavaankee baat sunakar gudaakeshane vishuddh hridayase kahaa—'bhagavan! yadi aap mujhapar poornaroopase prasann hain to aisee kripa karen ki main jahaan-jahaan janm loon, hajaaron janmatak aapake charanonmen hee meree dridha़ bhakti banee rahe. bhagavan! ek baat aur chaahata hoon. aapake haathase chhoote hue chakrake dvaara hee meree mrityu ho aur jab chakrase main maara jaaoon, tab mere maans, majja aadi taanbeke roopamen ho jaayen aur ve atyant pavitr ho unakee pavitrata iseemen hai ki unamen bhog lagaanese aapakee prasannata sampaaditaho. arthaat maranepar bhee mera shareer aapake hee kaamamen aata rahe.' bhagavaanne usakee praarthana sveekaar kee aur kahaa- 'tabatak tum taanba hokar hee raho. yah taanba mujhe bada़a priy hogaa. vaishaakh shukl dvaadasheeke din mera chakr tumhaara vadh karega aur tab tum sadaake liye mere paas chale jaaoge.' yah kahakar bhagavaan antarhit ho gaye. aur vah manamen is utsukataake saath bada़ee tapasya karane laga ki kab vaishaakh shukl dvaadashee aaye aur kab apane priyatamake haathonse chhoote hue chakrake dvaara meree mrityu ho, jo mujhe unake pyaarase bhee meethee hogee. antamen vah dvaadashee a gayee. bada़e utsaahake saath vah bhagavaan‌kee pooja karake praarthana karane lagaa

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