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Bhagavad Gita Chapter 4 Verse 30

भगवद् गीता अध्याय 4 श्लोक 30

अपरे नियताहाराः प्राणान्प्राणेषु जुह्वति।
सर्वेऽप्येते यज्ञविदो यज्ञक्षपितकल्मषाः।।4.30।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद

।।4.30।। दूसरे नियमित आहार करने वाले (साधक जन) प्राणों को प्राणों में हवन करते हैं। ये सभी यज्ञ को जानने वाले हैं जिनके पाप यज्ञ के द्वारा नष्ट हो चुके हैं।।

Brahma Vaishnava Sampradaya - Commentary

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