Download Bhagwad Gita 2.19 Download BG 2.19 as Image

⮪ BG 2.18 Bhagwad Gita Swami Ramsukhdas Ji BG 2.20⮫

Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 19

भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 19

य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते।।2.19।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 2.19)

।।2.19।।जो मनुष्य इस अविनाशी शरीरीको मारनेवाला मानता है और जो मनुष्य इसको मरा मानता है वे दोनों ही इसको नहीं जानते क्योंकि यह न मारता है और न मारा जाता है।

हिंदी टीका - स्वामी रामसुख दास जी

 2.19।। व्याख्या  य एनं (टिप्पणी प0 59) वेत्ति हन्तारम्   जो इस शरीरीको मारनेवाला मानता है  वह ठीक नहीं जानता। कारण कि शरीरीमें कर्तापन नहीं है। जैसे कोई भी कारीगर कैसा ही चतुर क्यों न हो पर किसी औजारके बिना वह कार्य नहीं कर सकता ऐसे ही यह शरीरी शरीरके बिना स्वयं कुछ भी नहीं कर सकता। अतः तेरहवें अध्यायमें भगवान्ने कहा है कि सब प्रकारकी क्रियाएँ प्रकृतिके द्वारा ही होती हैं ऐसा जो अनुभव करता है वह शरीरीके अकर्तापनका अनुभव करता है (13। 29)। तात्पर्य यह हुआ है कि शरीरमें कर्तापन नहीं है पर यह शरीरके साथ तादात्म्य करके सम्बन्ध जोड़कर शरीरसे होनेवाले क्रियाओंमें अपनेको कर्ता मान लेता है। अगर यह शरीरके साथ अपना सम्बन्ध न जोड़े तो यह किसी भी क्रियाका कर्ता नहीं है। यश्चैनं मन्यते हतम्   जो इसको मरा मानता है वह भी ठीक नहीं जानता। जैसे यह शरीरी मारनेवाला नहीं है ऐसे ही यह मरनेवाला भी नहीं है क्योंकि इसमें कभी कोई विकृति नहीं आती। जिसमें विकृति आती है परिवर्तन होता है अर्थात् जो उत्पत्तिविनाशशील होता है वही मर सकता है। उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते   वे दोनों ही नहीं जानते अर्थात् जो इस शरीरीको मारनेवाला मानता है वह भी ठीक नहीं जानता और जो इसको मरनेवाला मानता है वह भी ठीक नहीं जानता।यहाँ प्रश्न होता है कि जो इस शरीरीको मारनेवाला और मरनेवाला दोनों मानता है क्या वह ठीक जानता है इसका उत्तर है कि वह भी ठीक नहीं जानता। कारण कि यह शरीरी वास्तवमें ऐसा नहीं है। यह नाश करनेवाला भी नहीं है और नष्ट होनेवाला भी नहीं है। यह निर्विकाररूपसे नित्यनिरन्तर ज्योंकात्यों रहनेवाला है। अतः इस शरीरीको लेकर शोक नहीं करना चाहिये।अर्जुनके सामने युद्धका प्रसंग होनेसे ही यहाँ शरीरीको मरनेमारनेकी क्रियासे रहित बताया गया है। वास्तवमें यह सम्पूर्ण क्रियाओंसे रहित है। सम्बन्ध   यह शरीरी मरनेवाला क्यों नहीं है इसके उत्तरमें कहते हैं