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'भव भेषज रघुनाथ जसु'

घटना १९ जुलाई १९७८ ई० से १५ अगस्त ७८ ई० के मध्यकी है। मैं उच्च रक्तचापके दुस्साध्य रोगसे पीड़ित था। उपर्युक्त अवधिके मध्यतक मेरा यह रोग चरम सीमापर पहुँच गया था। भीलवाड़ा नगरके सम्मान्य चिकित्सकों, वैद्योंका उपचार कराया गया, अनेक ओषधियाँ सेवन कीं, लेकिन कोई सुधार न हुआ। स्वास्थ्यमें निरन्तर गिरावट ही आती रही। यहाँतक कि अब रोग-शय्यासे उठना भी दूभर प्रतीत होने लगा। फिर भी कृपालु भगवान् (श्रीराम) की असीम अनुकम्पासे येन-केन-प्रकारेण नित्य कर्म तथा स्नानादिसे निवृत्
होकर नियमित पूजन एवं हवन आदि तो कर ही लिया करता था। रक्तचाप तथा मस्तिष्कके चक्करोंके कारण चिकित्सकोंकी सम्मतिके अनुसार पढ़ना-लिखना आदि सब बन्द था, यहाँतक कि बोलनेकी अनुमति भी नहीं थी।

दिनांक २४ जुलाई १९७८ को भगवन्नाम कीर्तन (जो कि प्रतिमाह २४ तारीखको मेरी पूज्या, स्वर्गीया माँकी स्मृतिमें घरपर नियमित हुआ करता है - वह) रात्रिके एक बजेतक हुआ। इसके पश्चात् मैंने विश्राम करना उचित समझा; परंतु मस्तिष्कके चक्कर और अनिद्राके रोगके कारण मैं विश्राम न कर सका। हृदयकीतीव्र धड़कन तथा घबराहटसे मैं अपने शरीरको एक क्षणके लिये भी सँभाल नहीं पा रहा था। अपनी इस अस्वस्थताके पूर्व मैं नियमसे श्रीरामचरितमानसके बालकाण्डका पाठ किया करता था; परंतु रक्तचाप तथा चक्करोंके फलस्वरूप अब (चिकित्सकोंके निर्देशानुसार) एकदम बन्द कर देना पड़ा था। उस रातको मैं बहुत तीव्र घबराहटका अनुभव कर रहा था। मुझे लगा कि यह प्राण त्यागकालीन पीड़ा है। अन्तमें अत्यन्त निराश हो, घरके लोगोंसे छिपाकर तथा चिकित्सकोंके आदेशोंकी अवहेलना करते हुए रात्रिके लगभग २ बजेके बाद मैंने श्रीरामचरितमानसका पाठ प्रारम्भ कर दिया। यद्यपि चक्कर आ रहे थे, शरीरकी निर्बलताके कारण नेत्र एक स्थानपर स्थिर नहीं हो पाते थे, फिर भी मैंने पाठ जारी रखा। ओषधियोंके उपचारसे ऊबकर मैं ऐसा करनेको बाध्य हो गया। इसलिये सभी आश्रयोंको छोड़कर 'भव भेषज रघुनाथ जसु' मात्र श्रीरामचरितमानसरूपी महौषधिका आश्रय ले लेना ही अब मैंने उचित समझा क्योंकि 'रघुपति भगति सजीवन मूरी' कहा गया है।जब भगवान् के गुणानुवादमात्रमें भीषण 'भवरोग' । से मुक्ति दिलानेकी शक्ति है तो फिर उनके पावन चरित्रका आश्रय लेनेपर शारीरिक व्याधियोंसे छुटकारा मिल जाना कौन बड़ी बात है ? ऐसा विचारकर, निश्चयपूर्वक मैं उस रात रामचरितमानसका पाठ करने बैठा। पाठ करनेमें मैं ऐसा तल्लीन हुआ कि कुछ पता हो न चला कि प्रातःकाल कब हो गया। भगवान् श्रीरामकी अपूर्व, असीम और अगोचर अनुकम्पासे मैं निरन्तर पाठ करता जा रहा था। उस दिनसे आजतक प्रतिदिन मैं नियमित मानस पाठ कर रहा हूँ और बिना किसी ओषधि सेवनके ही श्रीरामकृपासे अब अपनेमें स्वस्थताका अनुभव भी कर रहा हूँ। मुझे विश्वास है कि प्रभुकृपासे मेरी इस शारीरिक व्याधिका निश्चित रूपसे उन्मूलन होकर मैं शीघ्र ही पूर्ण स्वस्थ हो जाऊँगा। इस प्रकार यह मेरा स्वानुभव है कि परम पवित्र श्रीरामचरितमानसका आश्रय मानसिक तथा शारीरिक व्याधियोंके शमनका एक उत्तम तथा सुगम आधार है।

[ श्रीभंवरलालजी पाराशर ]



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'bhav bheshaj raghunaath jasu'

ghatana 19 julaaee 1978 ee0 se 15 agast 78 ee0 ke madhyakee hai. main uchch raktachaapake dussaadhy rogase peeda़it thaa. uparyukt avadhike madhyatak mera yah rog charam seemaapar pahunch gaya thaa. bheelavaada़a nagarake sammaany chikitsakon, vaidyonka upachaar karaaya gaya, anek oshadhiyaan sevan keen, lekin koee sudhaar n huaa. svaasthyamen nirantar giraavat hee aatee rahee. yahaantak ki ab roga-shayyaase uthana bhee doobhar prateet hone lagaa. phir bhee kripaalu bhagavaan (shreeraama) kee aseem anukampaase yena-kena-prakaaren nity karm tatha snaanaadise nivrit
hokar niyamit poojan evan havan aadi to kar hee liya karata thaa. raktachaap tatha mastishkake chakkaronke kaaran chikitsakonkee sammatike anusaar padha़naa-likhana aadi sab band tha, yahaantak ki bolanekee anumati bhee naheen thee.

dinaank 24 julaaee 1978 ko bhagavannaam keertan (jo ki pratimaah 24 taareekhako meree poojya, svargeeya maankee smritimen gharapar niyamit hua karata hai - vaha) raatrike ek bajetak huaa. isake pashchaat mainne vishraam karana uchit samajhaa; parantu mastishkake chakkar aur anidraake rogake kaaran main vishraam n kar sakaa. hridayakeeteevr dhada़kan tatha ghabaraahatase main apane shareerako ek kshanake liye bhee sanbhaal naheen pa raha thaa. apanee is asvasthataake poorv main niyamase shreeraamacharitamaanasake baalakaandaka paath kiya karata thaa; parantu raktachaap tatha chakkaronke phalasvaroop ab (chikitsakonke nirdeshaanusaara) ekadam band kar dena pada़a thaa. us raatako main bahut teevr ghabaraahataka anubhav kar raha thaa. mujhe laga ki yah praan tyaagakaaleen peeda़a hai. antamen atyant niraash ho, gharake logonse chhipaakar tatha chikitsakonke aadeshonkee avahelana karate hue raatrike lagabhag 2 bajeke baad mainne shreeraamacharitamaanasaka paath praarambh kar diyaa. yadyapi chakkar a rahe the, shareerakee nirbalataake kaaran netr ek sthaanapar sthir naheen ho paate the, phir bhee mainne paath jaaree rakhaa. oshadhiyonke upachaarase oobakar main aisa karaneko baadhy ho gayaa. isaliye sabhee aashrayonko chhoda़kar 'bhav bheshaj raghunaath jasu' maatr shreeraamacharitamaanasaroopee mahaushadhika aashray le lena hee ab mainne uchit samajha kyonki 'raghupati bhagati sajeevan mooree' kaha gaya hai.jab bhagavaan ke gunaanuvaadamaatramen bheeshan 'bhavaroga' . se mukti dilaanekee shakti hai to phir unake paavan charitraka aashray lenepar shaareerik vyaadhiyonse chhutakaara mil jaana kaun bada़ee baat hai ? aisa vichaarakar, nishchayapoorvak main us raat raamacharitamaanasaka paath karane baithaa. paath karanemen main aisa talleen hua ki kuchh pata ho n chala ki praatahkaal kab ho gayaa. bhagavaan shreeraamakee apoorv, aseem aur agochar anukampaase main nirantar paath karata ja raha thaa. us dinase aajatak pratidin main niyamit maanas paath kar raha hoon aur bina kisee oshadhi sevanake hee shreeraamakripaase ab apanemen svasthataaka anubhav bhee kar raha hoon. mujhe vishvaas hai ki prabhukripaase meree is shaareerik vyaadhika nishchit roopase unmoolan hokar main sheeghr hee poorn svasth ho jaaoongaa. is prakaar yah mera svaanubhav hai ki param pavitr shreeraamacharitamaanasaka aashray maanasik tatha shaareerik vyaadhiyonke shamanaka ek uttam tatha sugam aadhaar hai.

[ shreebhanvaralaalajee paaraashar ]

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