Bhagavad Gita Chapter 7 Verse 22 भगवद् गीता अध्याय 7 श्लोक 22 स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते। लभते च ततः कामान्मयैव विहितान् हि तान्।।7.22।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 7.22) ।।7.22।।उस (मेरे द्वारा दृढ़ की हुई) श्रद्धासे युक्त होकर वह मनुष्य (सकामभावपूर्वक) उस देवताकी उपासना करता है और उसकी वह कामना पूरी भी होती है परन्तु वह कामनापूर्ति मेरे द्वारा विहित की हुई ही होती है। हिंदी टीका - स्वामी रामसुख दास जी ।।7.22।। व्याख्या  स तया श्रद्धया युक्तः ৷৷. मयैव विहितान्हि तान् मेरे द्वारा दृढ़ की हुई श्रद्धासे सम्पन्न हुआ वह मनुष्य उस देवताकी आराधनाकी चेष्टा करता है और उस देवतासे जिस कामनापूर्तिकी आशा रखता है उस कामनाकी पूर्ति होती है। यद्यपि वास्तवमें उस कामनाकी पूर्ति मेरे द्वारा ही की हुई होती है परन्तु वह उसको देवतासे ही पूरी की हुई मानता है। वास्तवमें देवताओंमें मेरी ही शक्ति है और मेरे ही विधानसे वे उनकी कामनापूर्ति करते हैं।जैसे सरकारी अफसरोंको एक सीमित अधिकार दिया जाता है कि तुमलोग अमुक विभागमें अमुक अवसरपर इतना खर्च कर सकते हो इतना इनाम दे सकते हो। ऐसे ही देवताओंमें एक सीमातक ही देनेकी शक्ति होती है अतः वे उतना ही दे सकते हैं अधिक नहीं। देवताओंमें अधिकसेअधिक इतनी शक्ति होती है कि वे अपनेअपने उपासकोंको अपनेअपने लोकोंमें ले जा सकते हैं। परन्तु अपनी उपासनाका फल भोगनेपर उनको वहाँसे लौटकर पुनः संसारमें आना पड़ता है (गीता 8। 16)।यहाँ मयैव कहनेका तात्पर्य है कि संसारमें स्वतः जो कुछ संचालन हो रहा है वह सब मेरा ही किया हुआ है। अतः जिस किसीको जो कुछ मिलता है वह सब मेरे द्वारा विधान किया हुआ ही मिलता है। कारण कि मेरे सिवाय विधान करनेवाला दूसरा कोई नहीं है। अगर कोई मनुष्य इस रहस्यको समझ ले तो फिर वह केवल मेरी तरफ ही खिंचेगा। सम्बन्ध  अब भगवान् उपासनाके अनुसार फलका वर्णन करते हैं।