Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 51 भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 51 कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः। जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम्।।2.51।। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।2.51।। बुद्धियोग युक्त मनीषी लोग कर्मजन्य फलों को त्यागकर जन्मरूप बन्धन से मुक्त हुये अनामय अर्थात् निर्दोष पद को प्राप्त होते हैं।। हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी ।।2.51।। योगयुक्त बनने के उपदेश को सुनकर अर्जुन के मन में प्रश्न उठा कि आखिर समभाव से उसको कर्म क्यों करने चाहिये। भगवान् इस प्रश्न का कुछ पूर्वानुमान कर इस श्लोक में उसका उत्तर देते हैं। बुद्धियुक्त मनीषी का अर्थ है वह पुरुष जो जीने की कला को जानता हुआ फल की चिन्ताओं से मुक्त होकर मन के पूर्ण सन्तुलन को बनाये हुये सभी कर्म करता है। दूसरे शब्दों में अहंकार और स्वार्थ से रहित व्यक्ति ही मनीषी कहलाता है।मन के साथ तादात्म्य से अहंकार उत्पन्न होता है और वह फलासक्ति के कारण बन्धनों में फँस जाता है। जीवन में उच्च लक्ष्य को रखने पर ही अहंकार और स्वार्थ का त्याग संभव है।