Bhagavad Gita Chapter 18 Verse 36 भगवद् गीता अध्याय 18 श्लोक 36 सुखं त्विदानीं त्रिविधं श्रृणु मे भरतर्षभ। अभ्यासाद्रमते यत्र दुःखान्तं च निगच्छति।।18.36।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 18.36) ।।18.36।।हे भरतवंशियोंमें श्रेष्ठ अर्जुन अब तीन प्रकारके सुखको भी तुम मेरेसे सुनो। जिसमें अभ्याससे रमण होता है और जिससे दुःखोंका अन्त हो जाता है? ऐसा वह परमात्मविषयक बुद्धिकी प्रसन्नतासे पैदा होनेवाला जो सुख (सांसारिक आसक्तिके कारण) आरम्भमें विषकी तरह और परिणाममें अमृतकी तरह होता है? वह सुख सात्त्विक कहा गया है। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।18.36।। हे भरतश्रेष्ठ अब तुम त्रिविध सुख को मुझसे सुनो? जिसमें (साधक पुरुष) अभ्यास से रमता है और दुखों के अन्त को प्राप्त होता है (जहाँ उसके दुखों का अन्त हो जाता है।)।।