Bhagavad Gita Chapter 18 Verse 35 भगवद् गीता अध्याय 18 श्लोक 35 यया स्वप्नं भयं शोकं विषादं मदमेव च। न विमुञ्चति दुर्मेधा धृतिः सा पार्थ तामसी।।18.35।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 18.35) ।।18.35।।हे पार्थ दुष्ट बुद्धिवाला मनुष्य जिस धृतिके द्वारा निद्रा? भय? चिन्ता? दुःख और घमण्डको भी नहीं छोड़ता? वह धृति तामसी है। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।18.35।। हो पार्थ दुर्बुद्धि पुरुष जिस धारणा के द्वारा? स्वप्न? भय? शोक? विषाद और मद को नहीं त्यागता है? वह धृति तामसी है।।