Bhagavad Gita Chapter 17 Verse 9 भगवद् गीता अध्याय 17 श्लोक 9 कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णरूक्षविदाहिनः। आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः।।17.9।। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।17.9।। कड़वे? खट्टे? लवणयुक्त? अति उष्ण? तीक्ष्ण (तीखे? मिर्च युक्त)? रूखे. दाहकारक? दुख? शोक और रोग उत्पन्न कारक भोज्य पदार्थ राजस पुरुष को प्रिय होते हैं।। हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी ।।17.9।। क्रियाशील तथा कामक्रोधादि प्रवृत्ति वाले रजोगुणी लोगों को इस श्लोक में कथित कटु अम्ल आदि आहार अत्यन्त प्रिय होता है। ऐसे आहार से वह अपने शरीर में शाक्ति का अनुभव तो करता है? परन्तु अन्तत इन सबका परिणाम दुख रोग और चिन्ता ही होता है। इस प्रकार के आहार की रुचि उत्पन्न हो जाने पर उसे संयमित रखना दुष्कर हो जाता है।प्रस्तुत प्रकरण से कोई अध्येता यह न समझ ले कि केवल आहार के परिवर्तन और संयम से ही विचारों का परिवर्तन संभव हो सकता है। भगवान् श्रीकृष्ण का कथन यह है कि सात्त्विक या राजसिक विचारों के लोगों को उपर्युक्त प्रकार के पदार्थ रुचिकर लगते हैं। अर्थात् विचारों के परिवर्तन से आहार में परिवर्तन आता है।